विधवा की अगन – Antarvasna
लेखिका : नेहा वर्मा
मेरा नाम सुमन है। मेरी उम्र ४० वर्ष की है। मेरे पति का तीन साल पहले एक दुर्धटना में स्वर्गवास हो गया था। मेरी बेटी स्वर्णा की शादी मैंने अभी चार महीने पहले ही सम्पन्न करा दी थी। स्वर्णा का पति शेखर कॉलेज में असिस्टेन्ट प्रोफ़ेसर था। २५ साल का खूबसूरत लड़का था। वो मेरी बेटी को ट्यूशन पढ़ाने आता था। सामने वाले गेस्ट रूम में मेरी बेटी पढ़ा करती थी। पढ़ा क्या करती थी बल्कि यह कहो कि सेक्स में लिप्त रहती थी। दरवाजे की झिरी में से मैं उन दोनों की हरकतों पर नजर रखती थी।
कुछ देर पढ़ने के बाद वो दोनों एक दूसरे के गुप्त अंगो से खेलने लगते थे। कभी शेखर बिटिया के उभरती हुई छातियों को मसल देता था कभी स्कर्ट में हाथ डाल कर चूत दबा देता था। बेटी भी उसका मस्त लण्ड पकड कर मुठ मारती थी। मैंने समझदारी का सहारा लेते हुये उन दोनों की शादी करवा दी ताकि इस जवानी के खेल में कहीं कुछ गलत ना हो जाये।
शादी के बाद वो अभी तक बहुत खुश नजर आ रहे थे। यूँ तो स्वर्णा के साथ अपने घर में ही रहता था, पर अधिकतर वो दोनों रात मेरे यहाँ ही गुजारते थे।
रात को मैं जानकर के नौ या साढ़े नौ बजे तक सो जाती थी, ताकि उन दोनों को मस्ती का पूरा समय मिले। पर इस के पीछे मुख्य बात ये थी कि मैं उनकी चुदाई को दरवाजे की झिरी में से देखा करती थी। मेरे कमरे की बत्ती बन्द होने के कुछ ही देर बाद मेरे कानो में सिसकारियाँ सुनाई पड़ने लग जाती थी। मैं बैचेन हो उठती थी। फिर मिली जुली दोनों की आहे और पलंग की चरमराहट और चुदाई की फ़च फ़च की आवाजें और मदहोशी से भरे उनके अस्पष्ट शब्द कानों में पड़ते थे। मैं ना चाहते हुए ही बरबस ही धीरे से उठ कर दरवाजे के पास आ कर झिरी में से झांकने लगती थी।
शेखर का मोटा और लम्बा मदमस्त लण्ड मेरी आंखो में बस चुका था। शेखर का खूबसूरत चहरा, उसका बलिष्ठ शरीर मुझे बैचेन कर देता था। मेरी सांस तेज हो जाती थी। पसीना छलक उठता था। मैं बिस्तर पर बिना जल की मछली की तरह तड़पने लगती थी। चूत दबा कर बल खा जाती थी। पर यहा मेरी बैचेनी समझने वाला कौन था। धीरे धीरे समय निकलता गया….मैं अब रात को या तो अंगुली से या मोमबत्ती को अपनी चूत में घुसा कर अपनी थोड़ी बहुत छटपटाहट को कम कर लेती थी। पर चूत की प्यास तो लण्ड ही बुझा सकता है।
पर हां मेरे में एक बदलाव आता जा रहा था। मैं सेक्स की मारी अब शेखर के सामने अब सिर्फ़ ब्लाऊज और पेटीकोट में भी आ जाती थी। मैं अपनी छातियो को भी नहीं ढंकती थी। लो कट ब्लाऊज में मेरे आधे स्तन बाहर छलके पड़ते थे। शेखर अब नजरें बचा कर मेरे उभारों को घूरता भी था। मैं जब झुकती थी तो वो मेरी लटकी हुई चूंचियो को देख कर आहें भी भरता था, मेरी गांड की गोलाइयों पर उसकी खास नजर रहती थी। ये सब मैं जानबूझ कर ही करती थी…. बिना ये सोचे समझे कि वो मेरा दामाद है।
उसकी वासना भरी निगाहें मुझसे छिपी नहीं रही। मुझे धीरे धीरे ये सब पता चलने लगा था। इससे मेरे मन में वासना और भी भड़कने लगी थी। विधवा के मन की तड़प किसे मालूम होती है? सारी उमंगें…. सारी ख्वाहिशें…. मन में ही रह जाती हैं…. फिर चलती है आगे सिर्फ़ एक कुन्ठित और सूनी जिन्दगी….। पर एक दिन ईशवर ने मेरी सुन ली…. और मुझ पर महरबानी कर दी। और मैं शेखर से चुद गई। मेरी जिन्दगी में बहार आ गई।
जब भी स्वर्णा ससुराल में होती थी तो अकेलापन मुझे काटने को दौड़ता था। मैं ब्ल्यू सीडी निकाल कर टीवी पर लगा लेती थी। उस शाम को भी ९ बजे मैंने सारा घर बन्द किया और टीवी पर ब्ल्यू पिक्चर लगा कर बैठ गई। चुदाई के सीन आने लगे …. मैंने अपनी ब्रा निकाल फ़ेंकी और सिर्फ़ एक ढीला सा ब्लाऊज डाल लिया। नीचे से भी पेन्टी उतार दी। फ़िल्म देखती जाती और अपनी चूंचियाँ दबाती जाती…. कभी चूत मसल देती…. और आहें भरने लगती…. बाहर बरसात का महौल हो रहा था। कमरे में उमस भी काफ़ी थी। पसीना छलक आया था।
इतने में घर के अन्दर स्कूटर रखने की आवाज आई। मैंने टीवी बन्द किया और यूं ही दरवाजा खोला कि देखूं कौन है। सामने शेख्रर को देख कर मैं हड़बड़ा गई। अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों का मुझे ख्याल ही नहीं रहा। शेखर मुझे देखता ही रह गया।
“शेखर जी…. आओ…. आ जाओ…. इस समय…. क्या हुआ….?”
“जी….वो स्वर्णा के कुछ कपड़े लेने थे…. वो ऊपर सूटकेस में रखे हैं….”
“अच्छा लाओ मैं उतार देती हूँ।” मैंने स्टूल रखा और उस पर चढ़ गई।
“शेखर ! मुझे सम्हालना….!”
शेखर ने मेरी कमर थाम ली। मुझे जैसे बिजली का करण्ट दौड़ गया। उसका एक हाथ धीरे से नीचे कूल्हों पर आ गया। मुझे लगा कि काश मेरे चूतड़ दबा दे। मेरे शरीर में सिरहन सी दौड गई। मैंने सूटकेस खींचा तो मेरा संतुलन बिगड़ गया। पर शेखर के बलिष्ठ हाथों ने मुझे फूल की तरह झेल लिया। सूटकेस नीचे गिर पड़ा। और मैं शेखर की बाहों में झूल गई। मेरा ब्लाऊज भी ऊपर उठ गया और एक चूंची बाहर छलक पड़ी।
शेखर भूल गया कि मैं अभी भी उसकी बाहों में ही हूं। मैं उसकी आंखो में देखती रह गई और वो मुझे देखता रह गया।
“श्….श्….शेखर्…. अब उतार दो….” मैं शरमाते हुए बोली। वो भी झेंप गया….पर शरीर की भाषा समझ गये थे….
“ह…. हां हां…. सॉरी….!” उसने मेरा ब्लाऊज मेरे नंगे स्तन के ऊपर कर दिया। मैं शरमा गई।
“आपकी तबियत तो ठीक है….?”
“नहीं…. बस…. ठीक है….” बाहर बादल गरज रहे थे। लगता था बादल बरसने को है।
उसने सूटकेस खोला और कपड़े निकाल लिये। उसकी नजर मेरे ऊपर ही जमी थी। वो मेरे हुस्न का आनन्द ले रहा था। मेरे जिस्म में जैसे कांटे उग आये थे। इतने में बरसात शुरु हो गई।
शेखर ने मोबाईल से स्वर्णा से बात की कि मां की तबियत कुछ ठीक नहीं है और बरसात भी शुरु हो गई है….इसलिये रात को वो यहीं रुक रहा है। सुनते ही मेरी सांस रुक गई…. हाय राम….रात को कहीं ये….? क्या चुद जाऊंगी….? पर मेरा एक मन कह रहा था कि शायद आज ऊपर वाले की जो इच्छा है….आज होने दो। मेरा मन बहुत ही चन्चल हो रहा था…. मैला भी बहुत हो रहा था…. मेरे जिस्म में एक आज एक तड़प थी, जो शेखर बढ़ा दी थी। मैंने पलट कर शेखर को देखा…. वो मेरे चूतड़ों की गोलाईयों को देखने में मग्न था। मेरे चेहरे पर पसीने की बून्दें छलक आई।
“क्या देख रहे हो….?” मैंने कांपते होठों से कहा।
“जी…. आप इस उमर में भी….लड़कियों की…. सॉरी….” वो कह कर झेंप गया।
“कहो…. क्या कह रहे थे…. लड़कियों की क्या….?” मेरी सां भी तेज हो उठी
वो मेरे पास आकर मेरे ब्लाऊज के बटन लगाने लगा। मेरी सांसे बढ़ गई…. छातियाँ फ़ूलने पिचकने लगी। वासना ने मेरे होश खो दिये…. काश शेखर मेरी छाती दबा दे….!
“सम्भालो अपने आप को मां जी….” पर मुझे कहाँ होश था। मैं धीरे से उसकी छाती से लग गई और उसका शरीर सहलाने लगी।
“मां जी….ये क्या कर रही है आप….!” उसने मेरे सर पर हाथ रख दिया और सहलाने लगा।
“शेखर विधवा की अगन कौन समझ समझ सकता है…. ये तन की जलन मुझे जला ना दे….” मेरा सीना फ़ूलने और पिचकने लगा था। मैंने अपनी छाती उसकी छाती से रगड़ दी।
“मां…. अपने पर काबू रखो…. मन को शांत रखो…. !” शेखर ने लड़खड़ाते स्वर में कहा। वह भी बहक रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था। उसने मेरे बाल खींच दिये और मेरा चेहरा ऊपर उठा दिया। मेरे होंठ थरथराने लगे। शेखर अपना आपा खो बैठा। मेरे से लिपट पड़ा। उसके होंठ मेरे कांपते होठो से आ लगे। आग शान्त होने की बजाए और भड़क उठी। बाहर बादल गरज के साथ बरस रहे थे। उसके हाथ मेरे स्तनों को थाम चुके थे। ब्लाऊज आधा खुला हुआ था….मेरे बोबे बाहर छलक रहे थे। शखर के अन्दर आग सुलग उठी।
“मां…. मुझसे अब नहीं रहा जा रहा है….मेरा लण्ड चोदने के लिये बैचेन हो रहा है….” मेरे सामने ही उसने निर्लज्जता से अपने सारे कपड़े उतार डाले और नंगा हो गया। उसका मोटा और तगड़ा लण्ड देख कर मेरी चूत तड़प उठी। उसने अब मेरा ब्लाऊज उतार डाला और मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया। मेरा पेटीकोट जमीन पर आ गिरा। उसका कड़कता हुआ लण्ड सीधा खड़ा तन्ना रहा था। मैं शरम के मारे सिमटी जा रही रही थी। पसीना पानी की तरह बह निकला…. अंततः मैं बिस्तर पर बैठ गई। उसका लण्ड मेरे मुख के करीब था। उसने और पास ला कर मुँह के पास सटा दिया। मैंने ऊपर देखा…. बाहर बिजली कड़की….शायद बरसात तेज हो चुकी थी।
“मां ….! ले लो लण्ड मुँह में ले लो….! चूस लो….! अपना मन भर लो…. !” उसने अपना लण्ड मेरे चेहरे पर बेशर्मी से रगड़ दिया। उसकी लण्ड की टोपी में से दो बूंद चिकनाई की छलक उठी थी।
“शेखर….! मेरे लाल….! ला दे दे….! ” मैं बैचेन हो उठी। मैंने उसके लण्ड की चमड़ी उपर की और लाल सुपाड़ा बाहर निकाल लिया। और अपने मुँह में रख लिया। मैं लण्ड चूसने में अभ्यस्त थी….उसका सुपाड़ा को मैंने प्यार स्र घुमा घुमा कर चूसा। मन की भड़ास निकालने लगी। इतना जवान लण्ड…. कड़क….बेहद तन्नाया हुआ…. शेखर सिसकारियाँ भरने लगा।
“हाय मां…. ! क्या मेरा निकाल दोगी पूरा….! ” मैंने थोड़ा और चूस कर कर छोड़ दिया फिर शेखर को अपनी नीची निगाहों से इशारा किया। शेखर मुझसे लिपट गया। मेरा नंगा जिस्म उसकी बाहों में झूल गया। मेरा जिस्म अब आग में जल रहा रहा था। मैं बेशर्मी से अपने आपको उससे लिपटा रही थी। उसने मुझे प्यार से बिस्तर पर लेटाया। मैंने शरमाते हुए अपने पांव खोल दिये। शेखर ने मेरी टांगे खींच कर अपने मुख के पास कर ली । मेरी चूत खिल उठी….चूत के पट खुल गये थे….अब कुछ भी अन्दर समेटने को वो तैयार थी। उसने अपने होंठ मेरी चूत से सटा दिये।
मेरी चूत गीली हो चुकी थी। उसकी लपलपाती जीभ ने मेरी चूत को एक बार में चाट लिया और जीभ से मेरी योनि-कलिका चाटने लगा। बीच बीच में उसकी लम्बी जीभ मेरी चूत में भी उतर जाती थी। मुझे ऐसा सुख बहुत सालों बाद मिला था। मेरी चूत मचल उठी ….और मैंने अंगड़ाई लेकर अपनी चूत को और ऊपर उभार दिया। मैं अपने मन की पूरा करना चाहती थी। उसके दोनों हाथ मेरे बोबे को मसल रहे थे। मुझे तन का सुख भरपूर मिल रहा था। मैं अपने अनुसार ही अपना बदन शेखर से मसलवा और चुसवा रही थी।
“हाय रे….मेरे लाल…. ! तूने आज मेरे मन को जान लिया है…. ! हाय रे…. ! ला अब अब तेरे लण्ड को मस्त कर दूं…. !” मैंने उसे उठा कर सामने खड़ा कर दिया और उसका लण्ड अपने हाथो में ले लिया। मैंने उस पर खूब थूक लगाया और उसे मलने लगी….
“माँ चुदवा लो अब…. ! मुझसे नहीं रहा है…. ! देखो आपकी चूत भी कैसे फ़ड़क रही है…. !” मेरी बैचेन चूत का हाल उससे छुपा नहीं था।
अब मैं उसके लण्ड को मुठ मार रही थी।
“हाय क्या कर रही हो….! मेरा निकल जायेगा ना….!” पर मैंने उसे ओर जोर से मुठ मारने लगी।
“निकल जाने दे ना….! निकाल दे अब…. ! कर दे बरसात…. !” मुझे उसके लण्ड को झड़ते हुए देखना था और उसका स्वादिष्ट वीर्य का भी स्वाद लेना था।
उसका शरीर ऐठने लगा मैं समझ गई थी कि अब शेखर झड़ने वाला है….उसके लण्ड को मैंने और जोर से दबा कर मुठ मारी और उसका लण्ड अपने मुँह में डाल लिया। और लण्ड को जोर से दबा दिया।
“हाय मांऽऽऽऽऽ…. ! मेरा निकला…. ! गया मैं तो…. !” उसकी पिचकारी छूट पड़ी…. उसका वीर्य मेरे मुख में भरने लगा…. फिर से एक बार पुरानी यादे ताज़ा हो गई। सारा वीर्य मैंने स्वाद ले लेकर पी लिया।
“ये क्या…. ! आपने तो मेरा माल निकाल ही दिया…. !”
“तुमने कहा था ना…. ! अपना मन भर लो…. ! वीर्य का मजा कुछ ओर ही होता है…. ! फिर रात भर तो तुम यही हो ना…. ! प्लीज…. ऐसा मौका पता नहीं फिर मिले ना मिले….!” मैंने अब उसे समझाया।
शेखर हंस पड़ा। और मेरी बगल में लेट गया,” मां…. मुझे आपकी जैसी प्यारी सास कहां मिलेगी…. ! हम छुप छुप कर ऐसे ही मिलेंगे। देखना आपकी चूत कैसी मदमस्त हो जायेगी !”
“हां मेरे शेखर…. मैं भी तुम्हें बहुत प्यार दूंगी….! “
बरसात का एक दौर थम चुका था। मुझे पता था शेखर में अभी जवानी भरपूर है, कुछ ही देर उसका लण्ड फिर फूल जायेगा और अभी फिर से वो मुझ पर चढ़ जायेगा। जवान माँ चोदने को मिल रही है भला कौन छोड़ेगा।
शेखर को मैं अपने बेटे के समान मानती थी, आज उसने अपनी विधवा मां की तड़प जान ली थी और उसने मेरी दुखती रग को पकड़ लिया था। मुझे इस अजीब से रिश्ते से सनसनी हो रही थी। ये काम चोरी से करना था….और चोरी में जो मजा है वो और कहां।
मेरा हाथ शेखर के शरीर पर चल रहा था। उसका लण्ड फिर खड़ा हो चुका था। मेरी चूत तो चुदने के लिये पहले से तैयार थी…. ! पर अभी गाण्ड मराने का मजा और लेना था। एक बार झड़ने के बाद मुझे पता था कि अब वो देर से झड़ेगा। फिर पहले रस का भी तो आनन्द लेना था सो मुठ मार कर उसका पूरा मजा ले लिया था। बरसात फिर से जोर पकड़ रही थी। मैं उल्टी लेट गई…. और पांव खोल दिये। मेरे दोनों चूतड़ खिल उठे। बीच की मस्त दरार में एक फूल भी था। शेखर मेरी पीठ पर सवार हो गया। लण्ड का निशाना फूल था। खड़ा लण्ड दरार में घुस पड़ा, मोटे और लम्बे लण्ड का अहसास दोनों चूतड़ो के बीच होने लगा। एक लाजवाब स्पर्श और लण्ड का अससास….बहुत सुहाना लग रहा था और लण्ड ने अपने मतलब की चीज़ ढूंढ ली। मुझे उसका लण्ड मेरी दरार में अपनी मोटाई का अहसास करा रहा था।
मुझे लगा कि आज गाण्ड भी मस्त चुदेगी…. उसका सुपाड़ा मेरे फूल को दबा रहा था। थूक भरा उसका लण्ड फूल को चूमता हुआ अन्दर जाने लगा। मैंने अपनी गाण्ड ढीली छोड़ दी। बहुत सालों बाद गांड चुद रही थी इसलिये थोड़ा दर्द हुआ। पर आनन्द का मजा कुछ और ही था। कुछ ही समय में उसका लम्बा लण्ड गाण्ड में पूरा जड़ तक बैठ गया था। मैं अपनी कोहनियो पर हो गई थी। मेरे दोनों बोबे नीचे झूल रहे थे।
अब शेखर ने भी अपनी कोहनियो का सहारा ले कर अपनी हथेली से मेरे बोबे को अपने हाथों में ले लिया। पीछे से उसकी कमर चलने लगी। मेरी गाण्ड चुदने लगी। मैं आनन्द से भर उठी…. उसके धक्के तेजी पकड़ने लगे। मैं मदहोश होती जा रही थी। शेखर के शरीर का भार मुझे फूलों जैसा लग रहा था। कमर उठा कर वो मेरी गाण्ड को सटासट पेल रहा था। मेरा जिस्म वासना में लिपटा हुआ था। उसका हर धक्का मुझे अपनो सपनों को पूरा करता नजर आ रहा था। कुछ देर पेलने के बाद उसने अपना लण्ड निकाल लिया। मैंने भी आसन बदला….अब मुझे भी अपनी चूत को गहराई तक चुदवाना था। इसलिये मैंने शेखर को नीचे लेटाया और उसके खड़े लण्ड पर बैठ गई। लण्ड को चूत में डाला और एक ही बार में जड तक घुस डाला। और दर्द से चीख पड़ी। सालों बाद चूत सिकुड़ कर तंग हो गई थी। सो ्दर्द का अहसास हुआ। मेरे झूलते हुये बोबे उसने पकड़ लिये और मसकने लगा। चूंचक को खींचने लगा। मैं उस पर लण्ड पर बैठ गई और अपनी कमर चलाने लगी। ऊपर से चुदने में गहरी चुदाई हो जाती है।
उसका सुपाड़ा भी फूल कर कुप्पा हो रहा था। उसने मेरे चूतड़ दबा कर अब नीचे से झटके मारने चालू कर दिये। उसके झटके मुझे अब चरम सीमा पर ले जा रहे थे….मेरी चूत उसके लण्ड को गहराई तक ले रही थी….गहरी चुदाई से अन्दर लगती भी जा रही थी पर मैं ऐसा मौका नहीं छोड़ने वाली थी। पर शेखर अब चरमसीमा पर पहुंचने लगा था। उसने अब मुझे दबा कर नीचे पलटी ले ली। और मेरे ऊपर चढ़ गया।
उसके धक्के बढ़ गए…. मेरा जिस्म भी अब उत्तेजना की सीमा को पार करने लगा। मेरे चूतड़ उछल उछल कर उसका साथ बराबरी से दे रहे थे….वो लण्ड पेले जा रहा था…. मेरा कस बल सब निकलने वाला था….
“हाय रेऽऽऽ ….! चोद दे रे …. ! मै मरी…. ! हय्…. ऊईईईऽऽऽअऽऽ….! मैं गई…. ! लगा रे…. ! जोर से लगा रे….!”
“आह्ह्ह्ह्….मेरा भी निकला रे…. ! मांऽऽऽ हाय्…. !” उसके धक्के बेतहाशा तेज होते गये…. पर मैं…. झड़ने लगी…. उसके धक्के चलते रहे और मैं झड़ती रही…. मेरी सारी तमन्नाये पूरी हो चुकी थी।
“हाय्…. ! मेरा निकला रे…….. ! मैं गया….आह्ह्ह !”
“निकाल दे अपना रस बेटा…. निकाल दे…. ! झड़ जा….! आजा मेरे सीने से लग जा….मेरे राजा !” शेखर थोड़ा सा कसमसाया और उसके लण्ड ने अपनी पिचकारी छोड़ दी। अपना पूरा जोर लगा कर मेरी चूत अपना रस भरने लगा। जोर लगाता रहा…. झड़ता रहा और निढाल हो कर मेरे ऊपर ही लेट गया। फिर धीरे से साईड में आ गया। हम दोनों लम्बी लम्बी सांसें भरते रहे….फिर शेखर मुझसे लिपट कर लेट गया।
“मां…. आप बहुत दिनों से व्याकुल थी ना !”
” हां मेरे लाल…. ! तुम लोगों को देख कर मेरे मन में भी अरमान जाग उठे….एक आग लग गई तन में…. मुझे भी आज जैसी भरपूर चुदाई चाहिये थी।”
“आप तो सच में चुदाई की कला जानती हैं…. सब तरफ़ से ….जी भर कर….चुदवा लिया आपने….!”
मैंने अपना एक चूचुक उसके मुँह में घुसेड़ते हुए कहा,” देख स्वर्णा को पता नहीं चलना चाहिये…. और अपनी चुदाई भी ऐसी ही चलनी चाहिये….!”
“हाँ माँ जी….माँ चोदने का मजा ही अलग होता है….! अब लोग मुझे मादरचोद कहेंगे ना !” मैं जोर जोर से जी भर कर हंसी….चुदाई के बाद मेरा मन हल्का हो गया था…. मेरा बदन खुशी से खिलने लगा था। मेरे में एक नई उमंग आ चुकी थी…. अब मैं पूरी बेशर्मी के साथ शेखर के रह सकती थी….चुदा सकती थी…. मेरे बदन में जवान लड़कियों सी चंचलता…. और फ़ुर्तीलापन आ गया था…. मैंने अपने टांगें फिर से चौड़ी कर दी….
“आओ शेखर….फिर से चढ़ जाओ मेरे ऊपर…. बरसात बिलकुल बन्द हो चुकी थी ….पर ऊपर वाले ने मेरे ऊपर खुशियों बरसात कर दी थी….
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