काश मैं उन भाभी को चोद पाता
मैं डी के हरियाणा के एक गांव का पला बढ़ा और अब शहर में रह कर कालेज में पढ़ रहा हूं, एथलीट हूं, खूब गोरा और कसा हुआ बदन है। औसत लंबाई मगर कलाई जितना हथियार साथ रखता हूं। अब तक ज्यादा पिंकी तो हाथ नहीं लगी हैं लेकिन जितनी भी लगी हैं उन्हें लाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
यह हिन्दी एडल्ट स्टोरी तब की है जब मैं अपने एक काम के सिलसिले में मुंबई गया था। वापसी उसी दिन की थी और मुझे रिजर्वेशन नहीं मिली थी। गाड़ी में ज्यादा भीड़ नहीं थी इसलिए उम्मीद थी कि सीट मिल जाएगी।
अब इसे किस्मत ना कहूं तो क्या कहूं, मैं जिस खाली सीट पर जाकर बैठा, कुछ देर बाद उस पर दो भाभियां आकर बैठीं। आखिर मेरी सीट तो थी नहीं मैं बाहरी कोने की तरफ सिकुड़ गया। उनमें से एक भाभी खूब गोरी, लंबी, मजबूत और पतले शरीर वाली तेईस चौबीस साल की थी, उसकी गोद में नन्हा सा बालक था, जबकि दूसरी भाभी सांवली लेकिन पहले वाली से भी ज्यादा सुंदर थी। उसका कद कम था, पतली कमर रसीले होंठ थे, जरा मोटे मगर कसे हुए मम्मे और थिरकती गांड।
उस वक्त वह निढाल सी लग रही थी।
दोनों भाभी ने सूट सलवार पहने हुए थे और साथ में थोड़ा सा ही बैगेज था। आते ही गोरी वाली भाभी ने सीट पर तौलिया बिछा कर बच्चे को लेटाया और उसे चादर औढ़ा दी।
सांवली वाली भाभी ने अपनी चुन्नी अपने सिर पर कस कर बांध ली, उसकी आंखों से साफ लग रहा था कि उसे सिर में भारी दर्द था।
मैं अपना नावल पढ़ने की कोशिश करने लगा। एक अपराधबोध तो होता ही है कि अपनी सीट पर नहीं बल्कि दूसरों की सीट पर बैठा हूं।
तभी गोरी वाली भाभी ने पूछ लिया- आपकी सीट कहां है?
मैंने झिझकते हुए बताया कि रिजर्वेशन नहीं है, टीटी आ जाए तो सीट मिल जाएगी। फिर जोड़ा कि अगर सीट न मिली तो मैं इधर उधर बैठ जाऊँगा।
उन्होंने फिर ज्यादा बात नहीं की।
सांवली भाभी ने सीट पर पीठ टिका कर आंखें बंद कर लीं। ट्रेन ने चलने के लिए सीटी बजी तो गोरी वाली भाभी को याद आया कि उसने पानी नहीं लिया है। बच्चा साथ था इसलिए वह चिंतित हुई। उसने जल्दी से खाली बोतल निकाली और बाहर चली ही थी कि ट्रेन सरक पड़ी।
वह थम गई।
उसे देख मैं बिना कुछ सोचे तेजी से नीचे उतरा और सामने काउंटर पर पचास का नोट फेंक कर दो पानी की बोतलें उठा कर तेज होती ट्रेन में चढ़ आया। दुकानदार उल्लू की तरह मुंह फाड़े देखता रहा, मैंने चिल्लाकर सॉरी कहा और वापस सीट पर आ गया।
गोरी वाली भाभी के पास मुझे शुक्रिया कहने के लिए शब्द नहीं थे। मैं खुश था कि इतनी सुंदर भाभी के काम आया। अब तक मेरे मन में कुछ भी गलत ख्याल नहीं था। इस बार मैं बैठा तो उन्होंने खुद बातचीत शुरू कर दी।
उन दोनों के पति नेवी में थे और मुंबई बेस पर तैनात थे, वे दिल्ली अपने घर आ रही थीं। गोरी भाभी ने अपना नाम कनक और सांवली ने सुमन बताया। कुछ ही घंटों में हम इतनी गप्प मार चुके थे कि जैसे सालों से एक दूसरे को जानते हों।
हालांकि सुमन भाभी के सिर में दर्द था, लेकिन बातें वही ज्यादा कर रही थी, कनक भाभी बस बातों में साथ दे रही थी।
उन्होंने पूछा कि मेरी शादी हो गई है, तो मेरे नहीं कहने पर कारण पूछने लगीं।
मैंने सुमन से चुटकी ली- आपकी तो हो गई, बताओ क्या मिला शादी करके?
दोनों हंस पड़ीं।
सुमन बोली- हां मिला ना, कनक के गोद में देख ही रहे हो और मेरे तो दो दो हैं।
मैं थोड़ा शरारती हुआ- बच्चों का मुझे शौक नहीं, और तो कुछ नहीं मिला न? अब देखो, पति वहां और आप यहां!
“हां यह बात तो है। अक्सर महीनों दूर रहना पड़ता है। पर टाइम निकल जाता है।”
मैंने दो-एक बार नोटिस किया कि कनक बीच बीच में लगातार मुझे देख रही थी, जैसे ही मैं देखता वह नजरें चुरा जाती।
अब मेरा ध्यान उस पर जाने लगा। लाल किनारी वाले सफेद सूट सलवार में बहुत खूबसूरत लग रही थी। वैसे भी उसका पतला सीधा और मजबूत शरीर किसी का भी ईमान खराब करने के लिए काफी थी।
रात हो चली थी, लोग एक एक कर सो रहे थे, सुमन भी करवट लेकर लेट गई। मुझे सीट नहीं मिली थी, इसलिए मैंने दोनों सीटों के बीच में नीचे चादर बिछा ली। दोनों मेरे इतने करीब थीं, लेकिन मैं शराफत का लबादा ओढ़े उन्हें बस महसूस कर रहा था।
वे तो फिर भी शादीशुदा थीं, पर मैं ठहरा कुंवारा लड़का। बिना पानी छोड़े मुझे नींद नहीं आने वाली थी।
कनक ने बच्चे की तरफ करवट ले रखी थी। शायद उसने बच्चे को दूध पिलाया होगा तो उसका सूट कमर पर से काफी उठा हुआ था। खिड़की में से बीच बीच में आती रोशनी में उसका दूधिया रंग चमक रहा था। मेरा मन किया कि उसे थोड़ा आगे करके उसके पीछे लेट जाऊँ और उसकी चिकनी कमर की तरफ से हाथ डालकर उसके मुलायम दूध खूब मसलूं और तन कर लकड़ी हो चुका अपना मूसल सलवार के ऊपर से ही उसकी गांड में ठोक दूं।
सोचने से ही इतना एक्साइट था कि मैंने पजामे में हाथ डाल लिया। लौड़ा इतना सेंसटिव हो रहा था कि हल्के से टच से आंसू छोड़ने को तैयार था। मेरे होंठ खुल गए थे, आंखों के सामने बस कनक की कमर थी और लौड़े पर तेजी से चलता हाथ।
मैं सतर्क था कि अगर कोई आता दिखाई दे तो तुरंत रुक जाऊं, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि मेरी गांड फट गई।
मैंने ऐसे ही रुटीन चेक के लिए सुमन पर नजर डाली तो वह आंखें खोले एकटक मुझे देख रही थी। मेरे हाथ जहां के तहां जाम हो गए, बहुत शर्म आई, मैंने लौड़े पर से हाथ हटा कर दोनों कान पकड़े तो वह हंस पड़ी, मेरी तरफ जरा सरक कर बोली- घणी पसंद आ री है तो बात करूं के?
हैरानी से मेरा मुंह खुल गया… वह सीधे बात करेगी मुझे सपने में भी गुमान नहीं था। उसका मुंह मेरे एकदम पास था। वैसे भी वह इतनी सलोनी और सुंदर थी कि एकदम चढ़ जाने का मन करे।
मैंने जानबूझ कर अपना मुंह उसके बिल्कुल पास किया और उसकी सांसें महसूस करते हुए बोला- सॉरी बोल तो दिया, बात करेगी तो वो पकड़कर मारेगी मुझे।
“इसे पीटने से तो अच्छा है कि थोड़ी मार खा लेना।” उसने मेरे लौड़े की ओर इशारा करते हुए कहा तो मेरा सिपाही फिर औकात पर आ गया।
अजब स्थिति थी। अजनबियों से भरी ट्रेन में मैं एक खूबसूरत भाभी के मुंह से मुंह लगा बातें कर रहा था।
मैंने अपना मुंह और पास कर उसके गालों से टच करते हुए ऐसे ही कहा- नींद नहीं आ रही?
वह पीछे नहीं हटी, हौले से बोली- तुमने भगा दी।
वह इतनी मदहोशी में बोल रही थी कि मैं खुद को रोक नहीं सका। एक बार हौले से आसपास नजर डाली और उसके तपते गालों पर होंठ रख दिए। उसकी खामोश सहमति देख मैंने बिना देर किए उसके होंठ हौले हौले चूसने शुरू किए।
आह… क्या फीलिंग थी। उसके होंठ इतने कोमल थे कि मैं उसे पाने के लिए मचल गया। इसके बाद मैं उसकी गर्दन चूमते हुए छातियों पर आया कि तभी आहट महसूस हुई। मैं झट से अलग हो गया।
कोई बिना देखे वहां से गुजर गया था।
मैंने मायूसी में उसकी तरफ देखा, वह करवट बदल कर दूर हो गई। मैंने एक सैकेंड कुछ सोचा और फिर अपनी चादर उठा कर उसके पीछे लेट गया। वह एकदम उठने को हुई लेकिन मैंने उसे दबाए रखा और चादर से दोनों को ढक लिया। वह मुझे हटाने के लिए छटपटाने लगी लेकिन मैंने उसके कंधे में हौले से काट लिया और उसके पेडू पर हथेली रख कर उसे अपने लौड़े पर कस कर चांप लिया। अब वह जितनी हिलती, लौड़ा उतना ही चुभता।
उसने फुसफुसा कर कहा- यहां कुछ करने की सोचना भी मत!
मैं उसी तरह पीछे से उसकी गर्दन चूमता रहा तो वह सिसियाई- मैं मर जाऊँगी।
मैंने फिर भी कुछ नहीं कहा और अपनी हथेली उसके सपाट पेट से सरका कर सीधे सलवार के अंदर घुसा दी।
‘अहहहह…’ उसकी सिसकी निकली।
मेरा हाथ उसकी हल्की मुलायम झांटों में पानी छोड़ती गर्म तर चूत पर पड़ा। मैंने एक उंगली मोड़ कर उसकी चूत में फिसलाई और फिर बाहर निकाल कर चाट ली।
तभी फिर किसी के आने की आहट हुई, हम दोनों वहीं जम गए। पकड़े जाने के डर से रोमांच ज्यादा बढ़ गया था। मैंने सूट के नीचे से उसकी ब्रा में से होते हुए उसके मुलायम चूचे पकड़े और कस कर दबाने लगा।
जरा सी देर में ही उसकी सांसों में तूफान आ गया और फिर उसका शरीर लकड़ी के कुंदे की तरह सख्त होकर ढीला पड़ गया। उसका काम हो गया था, वह शांत पड़ी लंबी सांसें ले रही थी।
वह कुछ शांत हुई तो मैंने कान में कहा- प्लीज, रहा नहीं जा रहा।
“पर कैसे करेंगे? अंधेरे में और किसी को तो नहीं पर कनक को तो पता चल ही जाएगा।”
“तो?”
“तो क्या डफर, वो मेरी फैमिली फ्रेंड भी है। कहीं बोल दिया तो लाइफ खराब हो जाएगी।”
कोई रास्ता न देख मैं चुपचाप अपनी जगह आ गया। वह समझ गई कि मैं नाराज हो गया हूं। मेरी तरफ करवट लेकर वह नजदीक आई ओर मेरा मुंह अपनी तरफ खींचा, मैंने दूर कर लिया।
फिर उसने एकदम पास आकर मेरे होंठ चूस लिए पर मैंने रिएक्शन नहीं दी।
वह कुछ पल ऐसे ही देखती रही और फिर एकदम मेरे पजामे में हाथ डालकर मेरे लौड़े को जकड़ लिया। मेरी आह निकल गई, मुलायम गर्म हाथ का स्पर्श होते ही लौड़ा और खूंखार हो गया।
उसने पजामा थोड़ा सा पलटा और लौड़ा बाहर निकाल कर मुठ मारने लगी। मैं काफी देर से खुद को काबू कर रहा था, अब नहीं रहा गया। लौड़े से तेज धार निकली, जो इधर उधर बारिश की तरह बरस गई।
तभी कनक कुछ हिली, सुमन ने झट से हाथ हटा कर करवट ले ली। मैंने भी पजामा झट ऊपर खींचा और आंखें बंद कर ली।
बस इतना ही टाइम मिला।
आंखों की कोर से देख रहा था कि कनक उठकर बैठ गई है। उसने अपनी नंगी कमर पर उंगली फिराई और फिर नाक के पास ले जाकर सूंघा।
मर गए… शायद मेरी पिचकारी उसे गीला कर गई थी।
एक दो मिनट वह उसी तरह बैठी रही फिर मेरी तरफ करवट बदल कर लेट गई। उसने बारी बारी सभी सीट का मुआयना किया पर कुछ समझ नहीं आया।
रात के बारह बज रहे होंगे। ट्रेन भागी जा रही थी और एक भी यात्री जाग नहीं रहा था।
फिर उसने कुछ ऐसा किया मैं हैरान रह गया, मेरे उभार को देखते हुए वह सूट के ऊपर से ही अपने निप्पल पर उंगली घुमाने लगी। थोड़ी देर बाद उसने सलवार के ऊपर से ही चूत रगड़नी शुरू की। मैं अद्भुत नजारा देख रहा था। कनक का गोरा पेट अंधेरे में भी चमक रहा था।
उसने सलवार का नाड़ा ढीला किया और हाथ अंदर डाल लिया। हाथ की तेजी से समझ सकता था कि वह कितना मजा ले रही है। इधर मेरा लौड़ा पत्थर हुआ जा रहा था। आखिर मुझसे सब्र नहीं हुआ और मैं उठ कर उसके ऊपर चढ़ गया।
वह घबरा गई… मुझे धकेलते हुए नीचे से निकलने की कोशिश की।
पर एक तरफ उसका बच्चा था और दूसरी तरफ मैंने रास्ता रोक रखा था। वह बुरी तरह कसमसा रही थी। मुझे अब सुमन की चिंता नहीं थी, बस मैंने सलवार के ऊपर से ही घस्से लगाने शुरू कर दिए।
उसने विरोध करना छोड़ टांगें चौड़ी कर ली थीं। मुझे डर था कि पीछे से कोई आ न जाए या कोई यात्री जाग न जाए। मैंने जल्दी से जल्दी फारिग होना चाहता था, पर अभी कुछ देर पहले ही झड़ा था और चूत की गरमाई भी नसीब नहीं थी, इसलिए आसान नहीं था।
मैंने खतरनाक फैसला लिया, उसकी सलवार नीचे धकेली और लौड़ा धकेल दिया। उसने जांघें भींच लीं लेकिन जांघें रस से भीगी और चिकनी थी, मेरा लाड़ा जांघों में ही घुस गया। मैंने दस बारह जोरदार धक्के लगाए कि फिर से पानी छूट गया।
आनन्द में गोते लगाते मैंने एक दो सैकेंड आंखें बंद रखीं फिर चुपचाप नीचे अपनी जगह आकर चादर ढक ली।
आगे मैं इंतजार करता रहा कि कब मौका मिले लेकिन गाड़ी एक स्टेशन पर डेढ़ घंटा रुकी रही, कई यात्री जाग गए थे।
इसके बाद मौका नहीं मिला। बस मैं कभी कनक को तो कभी सुमन को मौका मिलता ही सहला देता, या वे मेरे लंड पर हाथ फेर देतीं।
अगला दिन भी यूं ही निकल गया और हम दिल्ली पहुंच गए।
मैंने लाख चाहा पर उन्होंने न अपना नंबर शेयर किया और न घर का पता दिया।
लड़कियों के पीछे पड़ जाना मेरी फितरत नहीं है, इसलिए मैं भी मन मसोस कर चला आया। मुझे लगा कि मेरी सुहागरात आधी अधूरी रह गई हो!
लेकिन आज तक मुझे खुद पर तरस आता है कि क्यों न उन्हें वाशरूम के लिए राजी कर लिया। आखिर इतनी खूबसूरत लेकिन घरेलू बालाएं रोज रोज थोड़े ही मिलती हैं।
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