जनरल बोगी का सफर
मेरे अत्यंत प्रिय पाठक-पाठिकाओ,
काफी लंबे अंतराल के पश्चात आज पुन: आपकी सेवा में एक नितांत अनूठे, अविस्मरणीय और आश्चर्यजनक किन्तु सुखद हादसे की प्रस्तुति कर रहा हूँ। इस कहानी से पूर्व मेरी पिछली कहानी
पेट से नीचे की भूख
करीब दो साल पहले प्रकाशित हुई थी.
यहाँ यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि लगभग 20 वर्षों तक चले इस संस्मरण की नायिका का कुछ महीने पूर्व ही निधन हो चुका है और आज अचानक उसकी याद ने उद्वेलित कर दिया अत: यह श्रद्धांजलि प्रस्तुत है।
मेरे एक बहुत नजदीकी रिश्तेदार की मृत्यु पश्चात तेरहवीं में मुझे अचानक मद्रास (अब चेन्नई) जाना पड़ा। वापसी में रिज़र्वेशन न मिलने के कारण, आप अंदाज लगा सकते हैं कि, कितने धक्के/सामान और शरीरों द्वारा दबने/कुचलने के बाद बमुश्किल तमाम किसी तरह से तमिलनाडू एक्सप्रेस की जनरल बोगी में दोनों टोयलेट्स के बीच में खड़े होने की जगह मिली।
करीब 2 घंटे विलंब से यात्रा आरंभ हुई और कुछ ही समय में मैंने आसपास का जायजा लिया कि 35-36 घंटे की यात्रा कैसे कटेगी? अब तक मुझे खड़े-खड़े करीब डेढ़ घंटे हो चुके थे। मेरे अगल-बगल एक पुरुष और एक स्त्री बहुत कम जगह में सिकुड़ कर बैठे हुए थे।
मैंने उनसे अँग्रेजी में पूछा कि वो कहाँ तक जाएंगे और क्या मुझे भी उस अति सूक्ष्म जगह में बैठा सकेंगे?
उन्होंने, खासकर महिला ने बहुत बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा कि हाथ तो हिला नहीं पा रहे हैं तुमको कहाँ घुसेड़ लें.
तो मुझसे निकाल गया कि दिल में जगह होनी चाहिए!
जिस पर उसका तपाक से जवाब था कि अगर घुस सको तो घुस जाओ दिल में।
बहरहाल उन दोनों ने खुद सट कर मुझे महिला के बगल में जगह दी और मैं भी उसी तरह से सट कर बैठ गया। इसी दरम्यान मैंने टोयलेट में जाकर अपनी जींस उतार कर ढीला ढाला जाँघिया (जोकि मैं समान्यतया सफर में ही पहनता हूँ ताकि अपने लंड को भी आराम दे सकूँ) और मद्रास से खरीदी सामने से खुली हुई लुँगी पहन कर बाहर आ गया ताकि रात कुछ आराम से बैठ कर कट सके।
मेरे बाद वह महिला भी टोयलेट गई और गाउन पहन कर कुछ देर में फ्रेश होकर बाहर आ गई। मैंने महसूस किया कि उसने हल्की सी लिपस्टिक भी लगा ली थी. यह लिपस्टिक मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है और इसे देख कर मेरा दिल चिल्लाने लगता है कि इस लिपस्टिक को ओंठों से चाट/चूस लो।
लेकिन मजबूर था क्योंकि एक तो उसने बैठने कि जगह दी थी दूसरे भाषा की समस्या थी क्योंकि मैं उन्हें तमिलियन समझ रहा था।
मैंने स्टेशन के बाहर से एक मस्तराम की किताब खरीद ली थी तो उसे ही खोल कर उस महिला के बगल में बैठ कर पढ़ने लग गया। मैंने महसूस किया कि वह महिला कनखियों से किताब पर ध्यान दे रही थी और अपने आसपास भी देख रही थी।
मैंने भी आसपास के परिवेश पर ध्यान दिया तो पाया कि हम दोनों के अलावा सभी गहरी निद्रा में, जिसको जैसी जगह नसीब हुई, एक दूसरे के ऊपर पड़े हुए थे.
उस महिला ने भी मुझे इधर-उधर का जायजा लेते हुए देखा, फिर अपने साथ के पुरुष को आवाज लगाई, हिलाया डुलाया पर वो इतनी गहरी नींद में था कि अगर कोई उसे उठा कर भी फेंक देता तो वह न उठता।
मैंने उस महिला से पूछा कि क्या उसे किसी मदद की आवश्यकता है?
जिस पर उसने हिन्दी में जवाब दिया कि वह चेक कर रही थी कि उसका पति ठीक से सो रहा है या नहीं.
मुझे शर्म सी महसूस हुई कि वह हिन्दी जानती है फिर भी मैं उसके बगल में बैठ कर मस्तराम जी के साइंस को समझने की कोशिश कर रहा हूँ।
मैंने झेंपते हुए कहा कि मैं उसे तमिलियन समझ रहा था.
तो उसने पूछा- क्या मैं इतनी काली लगती हूँ? पर मुझे आपकी ये शर्मीली नजाकत बहुत पसंद आई। लाओ, अब ये किताब मुझे दे दो, तुम बहुत देर से मुझे गीली कर रहे हो.
मेरे यह पूछने पर कि ‘उनके पति’, वह बोली- अब आठ बजे से पहले नहीं उठेंगे, सो डोंट वरी. और मुझे पिंकी कहते हैं, तुम?
मैंने अपना नाम पीटर, दिल्ली का रहने वाला बताया।
तो पिंकी बोली कि वह भी दिल्ली में ही रहती है और किताब मेरे हाथ से छीन ली।
पढ़ते पढ़ते ही हम लोग बातचीत में भी मशगूल रहे और परिचय बढ़ा लिया। उसने पूछा कि क्या मैं उसका दोस्त बनना पसंद करुंगा?
तो मैंने कहा- कोई बेवकूफ ही इतना अच्छा आफ़र ठुकरा सकेगा. और मैं बेवकूफ नहीं हूँ.
“देखो पीटर, मैं तुम से उम्र में 5 साल तो बड़ी होऊँगी ही, तो समझ लो।”
तो मैंने कहा- मैं दोस्ती में सिर्फ और सिर्फ दोस्त को महत्व देता हूँ- उम्र, जात,रंग या स्वार्थ को नहीं।
और जैसे हम हाथ मिलाते हैं ठीक उसी तरह से उसने मेरी लुंगी में हाथ डाल कर लंड को पकड़ कर हिला दिया। मैंने भी उसके गाउन की चौड़ी बाहों में हाथ डाल कर उसकी चूची दबा दी और बाद में उसको किस कर लिया। सबसे अच्छी बात यह थी कि आस पास सभी जिंदा लाश की तरह 3 बजे रात में सो रहे थे।
पिंकी बोली यार सब सो रहे हैं, मैं 69 पोजीशन में तुम्हारा लंड चूसूँगी। तुम एक चादर मेरे ऊपर डाल दो और अगर कोई उठ जाए तो मेरा सिर हटा देना। चूसे या चुदवाए कई साल हो गए.
तो मैंने उसकी चादर को डबल करके अपने पैरों पर इस तरह से डाला कि पता ही न चले कि कोई मेरा लंड चूस रहा है।
मुझे भी लगा कि एक बार लंड झड़ जाएगा तो चोदने में मजा आएगा, इसीलिए राजी हो गया।
मेरा कई महिलाओं से वास्ता पड़ा लेकिन उस उम्र की इतनी बिंदास और सेक्सी महिला से पहली बार पाला पड़ा। बाद में पता चला कि वह आखिरी बार कोई 5 साल पहले चुदी थी. उसकी इस अदा पर मुझे बहुत प्यार आया मैंने और 3-4 बार उसकी पप्पी ले ली तो उसने मेरा मुंह हटाते हुए कहा- डोंट डिस्टर्ब मी … बहुत भूखी हूँ।
उसका लंड चूसने का स्टाइल जैसे लौलीपोप चूसने जैसा था। कोई जल्दी नहीं, बहुत निश्चिंतता के साथ धीरे धीरे चूसना फिर जीभ को लंड के चारों तरफ, मचलते हुए, सारा सलाइवा लपेटना कुछ देर लंड को आराम देना और फिर चूसना और इस तरह से उसने मेरे स्खलित वीर्य को पूरा पूरा निगल लिया और फिर थक कर निढाल हो कर उठ कर बैठ गई।
मैं भी थका-थका सा पर बहुत प्यार से उसे देख रहा था। उठते ही उसने हुकुम सुना दिया कि मैं उसके पैरों कि तरफ सिर करके उसके गाउन में घुस कर उसकी बुर को अपनी जुबान का प्यार दूँ और तब तक जब तक वो मना न करे।
सो यहाँ भी पिंकी मोहतरमा की झांटों भरी बुर को चाटने लगा क्योंकि मैं तो हमेशा से ही महिलाओं कि आज्ञाओं का पालन करता रहा हूँ.
अच्छा, पता नहीं क्यों … पर जबसे सेक्स से परिचय हुआ, मेरी 2 कमजोरियाँ या चाहत बहुत ज्यादा रही हैं; पहला लाल या नारंगी रंग की लिपस्टिक वाले होंठों को बहुत प्यार से चूसना और दूसरा झांटों वाली चूत के सहारे बहते हुए चूत रस का मजे ले-ले कर रसास्वादन करना।
पिंकी तो झांटों का खजाना थी, इतनी लंबी झांटें की आप कंघी कर के मांग निकाल दें। इसलिए मेरी तो बल्ले-बल्ले हो गई। मैं बता नहीं सकता कि कितना अकल्पनीय आनंद मुझे मिला।
सुबह कोई 4 बजे उसने मुझे हटा कर बगल में बैठने के लिए उठाया और मैं फिर सो गया।
लगभग 9 बजे मेरी नींद खुली जब उसका पति मुझे चाय के लिए विजयवाड़ा में उठा रहा था। तब तक उन लोगों ने साइड वाली 2 सिंगल सीटों का जुगाड़ करके अपना व मेरा सामान वहाँ रख कर अपना आसन जमा लिया था।
उन्होंने चाय के साथ उनकी सीट भी शेयर का आमंत्रण दिया.
उन लोगों का सूटकेस खाली जगह में रख कर मैंने 2 सिंगल सीटस को एक बर्थ में तब्दील कर दिया और अपने बैग को तकिया बना कर एक आदमी के सोने की व्यवस्था बना दी और दिन भर हम में से कोई एक लेटता और 2 बैठे-बैठे बातचीत करके अपना समय व्यतीत करते रहे और हमने करीब 40 घंटे के सफर के पश्चात अपने शहर दिल्ली पहुंचना था।
पिंकी के हसबैंड रवि से बातों-बातों में पता चला कि उसका एक्सपोर्ट का बिजनेस है और कम से कम महीने में दो बार वो विदेश यात्रा करता है। अकेला ही जाता है काम और ऐश करता है।
मैंने पूछा- पत्नी को नहीं ले जाते या ऐश कराते?
तो उसने कहा- ये क्या करती या क्या करना चाहती है, न मैं जानता हूँ, न जानना चाहता हूँ। इसकी लाइफ है, जैसे चाहे एंजॉय करे। न मैं राम है न कभी मैंने सीता की कल्पना की।
उसने मेरे बारे में भी जानकारी ली, अपनी पत्नी के बारे में भी बताया। मैंने भी कई बार उत्सुक होकर उसकी पत्नी के बारे में सवालात किए।
अचानक उसने पूछा कि उसकी पत्नी मुझसे उम्र में बड़ी है, फिर मैं क्यों उसमे इंटरेस्ट ले रहा हूँ?
मैं भी उसके अचानक के इस अप्रत्याशित सवाल से घबरा गया और वो मेरे चेहरे की हवाइयों को देख कर बहुत ज़ोर से हंसा. यहाँ तक की उसकी हंसी से पिंकी भी सोते से उठ गई और सवालिया नजरों से हमारी तरफ देखने लगी।
रवि ने सिगरेट निकाली, मुझे और अपनी पत्नी को दी और फिर सुलगा कर लाइटर हमारी तरफ बढ़ा दिया। मैंने जवाब देने के बजाय सिगरेट का कश लेना बेहतर समझा।
कुछ देर बाद पिंकी ने अपने साथ लाया हुआ खाना सर्व किया और हम खाने में लग गए।
उसके बाद मैं लेट कर सो गया।
शाम को चाय के लिए उठने से पहले पहले मेरे कानों में उन दोनों की कुछ आवाजें सी सुनाई दी जिसमें रवि पिंकी को बता रहा था कि उसने पिंकी को मुझे सक करते हुए देखा था। पिंकी को कैसा लग रहा था? क्या ये आदमी डिपेंडेबल है? और यह कि अगर पिंकी को अच्छा लगे तो वह मुझसे दोस्ती कायम रख सकती है, उसे कोई एतराज नहीं होगा क्योंकि पिंकी ने सब जानते हुए भी हमेशा उसकी हरकतों को नज़रअंदाज़ किया है।
मैं चुपचाप सोने का नाटक करता रहा।
फिर उन्होंने चाय के लिए उठाया तब तक 7 बज चुके थे।
उसके बाद तो सारा समय जनरल बोगी की थकान, कष्ट और इधर-उधर की बातों का जिक्र करते-करते ही निकल गया और हम दिल्ली पहुंच गए।
चलते समय रवि और पिंकी दोनों ने अपने घर आमंत्रित किया और हमने बाय बाय कर लिया।
शनिवार सुबह पिंकी का फोन आया कि लंच हमारे साथ करना है।
मैं भी 2 दिनों के लिए अकेला था इसीलिए 2 दिन की ड्रेस रख कर कहीं जाने की तैयारी कर रहा था पर पिंकी के फोन से बाकी सब प्रोग्राम कैन्सल कर दिए।
मेरे पहुंचते ही पिंकी मुझसे लिपट गई, स्माइल दी और बोली- यार तूने तो मेरा दिल ही चुरा लिया।
पनकी ने गुलाबी रंग की साड़ी पहन रखी थी. मैंने पिंकी के दोनों हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिए। उसके बाद मैंने पिंकी के होंठों को चूसना शुरू किया तो वह भी मेरे होंठों को चूमने लगी और अपनी पूरी जीभ मेरे मुख में अन्दर तक घुसा देती।
मैंने उसकी ब्लाऊज में हाथ डाला.. उसकी चूचियाँ आग की तरह गर्म थी। मैंने पिंकी का ब्लाउज उतारा, फिर उसकी ब्रा भी उतार दी और पिंकी के पिंक निप्पल मेरी आँखों के सामने थे। मुझे उसके मम्मे चूसने में बहुत मजा आया।
पिंकी इसके बाद बोली- चूमना चूसना बहुत हो गया, कुछ और भी करना है या नहीं?
इतना सुनते ही मैंने पिंकी की साड़ी उतार दी, फिर पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया … क्या मरमरी टांगें थीं पिंकी की … मोटी जांघें … पर सेक्सी भी उतनी ही ज्यादा!
पिंकी ने गुलाबी रंग की ही पेंटी पहनी हुई थी, वो सामने से पूरी गीली हुई पड़ी थी क्योंकि पिंकी की चूत लगातार पानी छोड़ रही थी.
मैंने जब पिंकी की पेंटी के अन्दर हाथ डाला तो वो एकदम मचल गई और मेरी पैन्ट में हाथ डालने लगीं, चेन खोल कर पैंट नीचे सरका कर लंड हाथ में पकड़ा और बिना कुछ भी बोले नीचे बैठकर मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगी।
कुछ देर बाद मैंने पिंकी को बेड पे लिटाया और उसकी पेंटी उतार कर उसकी टांगों को चौड़ा कर उसकी चूत खोल दी, पिंकी की चूत भी अंदर से पिंक पिंक थी. मैं अपना मुँह उसकी चूत पर रख जीभ अन्दर-बाहर करने लगा। पिंकी मेरी हरकत से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करने लगी।
कुछ देर के बाद मैं अपना लंड पिंकी की पिंकी के अन्दर डालने लगा. अभी आधा लंड ही अन्दर गया होगा कि उसने मुझे रोकते हुए कहा- ओह… रुक यार… बहुत टाइम बाद मेरी चूत में लंड जा रहा है.. धीरे धीरे डाल, दर्द हो रहा है!
मैंने फिर रुक-रुक कर धीरे-धीरे से अपना लंड उसकी चूत में अंदर की ओर सरकाना शुरू किया। उसके बाद मैंने उसके मुँह पर अपना एक हाथ रख कर पूरा लंड घुसा दिया.
वो एकदम तड़प सी उठी। अन तो मैं पूरे जोश में लंड आगे-पीछे करने लगा।
थोड़ी देर बाद पिंकी ने जो जोर जोर से सिसकारियां भरनी शुरू की, वो मुझे अभी तक भी याद है।
पिंकी इस प्रकार सिसकार रही थी जैसे सनी लियोनी अपनी क्सक्सक्स फिल्मों में करती है। वो चिल्ला-चिल्ला कर ‘ओह.. शआह.. अअह.. इस्स.. आह.. ओहहहह..’ पिंकी की उत्तेजक चीखें/सीत्कारें तो रिकॉर्ड करने योग्य थीं।
मैं कम से कम 20 मिनट तक बिना रुके पिंकी की चूत चुदाई करता रहा और उसके बाद मैंने अपना सारा पानी पिंकी की चुत में उड़ेल दिया।
ऊसके बाद तो हम दोनों का यह नियम सा हो गया था कि सप्ताह में एक बार तो हम चोदन चुदाई की आनन्द दायक प्रक्रिया करते ही थे.
इस यादगार दोस्त से कोई 20 वर्षों का साथ कुछ दिन पहले ही छूटा है. ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे।
दोस्तो, उम्मीद है यह प्रस्तुति आपको पसंद आएगी। अपने विचारों से मुझे सदैव की तरह मेल से अवगत कराइएगा।
सादर,
आपका ही पीटर
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