जब चुदी हुई चूत की हुई सिकाई-1
नमस्कार दोस्तो, रश्मि की कहानी
जनवरी का जाड़ा, यार ने खोल दिया नाड़ा
से आगे की कहानी है।
पिछली कड़ियों में आपने पढ़ा कि रश्मि के स्कूल का दोस्त देवेन्द्र, अपने साथी मुकेश के साथ मिलकर रश्मि की चूत चोदने में कामयाब हो जाता है। अब आगे की कहानी रश्मि के शब्दों में आपके सामने है …
निशा का जन्मदिन मनाने के बाद उस रात जब मुकेश मुझे घर छोड़ने जाता है तो मुकेश के साथ पहले से मिलीभगत कर चुका देवेन्द्र मुझे उसके खेत पर ले जाता है। मैं शादी से पहले इस तरह का कोई काम नहीं करना चाहती थी लेकिन देवेन्द्र ने अपने जिस्म की गर्मी से मुझे भी गर्म कर दिया और सर्दी भरी उस रात मेरा नाड़ा खोल दिया। पहली बार उसको बाहों में लेकर मैं भी अपनी हद भूल गई और उसने अपना लिंग मेरी योनि में डालकर मेरा कौमार्य भंग कर दिया।
इसमें मेरी भी सहमति थी इस बात से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता लेकिन उस दिन जब घर पहुंची तो मेरी योनि में बहुत दर्द हो रहा था। जिस योनि ने कभी उंगली तक का स्वाद नहीं चखा था आज उस योनि के होंठ 20-21 साल के जवान लिंग का चोदन रस पीने के बाद घायल होकर दुखने लगे थे। गाड़ी में बैठे-बैठे तो कुछ पता नहीं चला मगर जब घर के बाहर उतरकर चलने लगी तो महसूस हुआ कि चुदकर आई हूं। वो तो शुक्र रहा कि रात का समय था, जाड़ों के समय में के लोग 6 बजे ही अपने बिस्तरों में दुबक जाते हैं और धुंध भी काफी थी। किसी ने मुझे चलते हुए नहीं देखा … नहीं तो सारी पोल-पट्टी उसी दिन खुल जाने वाली थी।
मैंने घर पहुंच कर किसी से कुछ बात नहीं की। मन में उदासी भर गई थी, अन्तर्वासना की आग में मैं यह कैसे भूल गई कि मैं कुंवारी लड़की हूं … अगर कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो … अगर किसी को मेरी करतूत के बारे में पता लग गया तो न जाने क्या होगा। मैंने बाथरूम में जाकर पजामी का नाड़ा खोल दिया और नीचे से नंगी होकर लाइट जला ली। कमीज उठाकर पैंटी को देखा तो उस पर रक्त की कुछ बूंदें लग गई थीं। मैं घबरा गई लेकिन खुद को संभालते हुए, अपनी घायल योनि को हल्के से छूकर देखा तो सूजी-सूजी लग रही थी। जैसे उसके होठों को किसी ततैया (ज़हरीले कीट) ने काट लिया हो। मैंने पैंटी को वहीं बाथरूम में निकाल दिया और बाल्टी में डालकर ऊपर से पानी डाल दिया। मैं पजामी पहनकर वापस बाहर आ गई।
तभी माँ ने बाहर से खाने के लिए आवाज़ लगाई तो मैंने अंदर से ही कह दिया- मैं निशा के घर खाना खाकर आई हूँ माँ … आप लोग खाना खाकर सो जाओ, मैं सोते समय बस एक कप चाय बना कर ले लूंगी!
सर्दी काफी थी इसलिए टीवी जल्दी ही बंद कर दिया जाता था। रात के करीब 9.30 बजे मैं रसोई में गई। चाय बनाने के बहाने पतीले में पानी गर्म करके अपने कमरे में ले आई। कमरा अंदर से लॉक किया और पतीले को बाथरूम में ले गई। फटाफट बेड की दराज से रूई निकाली और बाथरूम में घुस गई। दरवाज़ा ढाल कर पजामी को उतार दिया और प्लास्टिक की नहाने वाली छोटी मूढ़ी पर बैठकर टांगें फैला दीं और डरते हुए फिर से योनि की तरफ झांकने लगी।
योनि की सूजन कम होने की बजाय बढ़ी हुई सी लगी। मैंने रूई का टुकड़ा गर्म पानी में भिगोया और उसको योनि के आस-पास के एरिया में लगाकर देखा कि कहीं ज्यादा गर्म तो नहीं है। जब रूई का फोहा योनि के बर्दाश्त करने लायक लगा तो धीरे से उस गर्म फोहे को योनि के मुंह पर रख दिया … आह्ह्ह् … थोड़ा चैन मिला। मैंने फोहे को हल्के से दबाया ताकि उसका गर्म पानी मेरी सूजी हुई योनि की सिकाई करता हुआ नीचे गिरे।
जब फोहा ठंडा हो गया तो रूई का दूसरा टुकड़ा लिया और पानी में भिगो कर दोबारा आहिस्ता से योनि की फांकों पर रख दिया। ओह्ह्ह … अब थोड़ा अच्छा लगा। चुदाई का दर्द कम होता हुआ महसूस हो रहा था। फिर तीसरा फोहा लिया और सीधा योनि पर रख दिया … आह्ह्ह … अम्म्म्म … मेरी टांगें और ज्यादा फैलने लगीं। चुदाई का दर्द तो मिट गया लेकिन इस क्रिया ने मुझे फिर से उत्तेजित कर दिया।
अगले गर्म फोहे को मैंने मज़ा लेने के लिए योनि द्वार पर रखा और मेरी आंखें स्वत: बंद हो गईं। इस्स्स … की सिसकारी मुंह से निकल गई। फोहे को योनि में थोड़ा अंदर घुसा लिया और वहीं बाथरूम की दीवार के साथ लग कर टांगें थोड़ी और फैला लीं। आंख बंद होते ही फोहे की जगह देवेन्द्र के लिंग की गर्माहट योनि को फिर तड़पाने लगी। मन तो कर रहा था कि उंगली डाल लूं मगर साथ ही डर रही थी कि कहीं फिर से लहू न निकलने लगे। मैं कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती थी।
मैंने अगला फोहा फिर से गर्म किया और योनि पर रखकर उसको देवेन्द्र का लिंग समझकर अपने वक्षों को दबाना शुरू कर दिया।
‘आह्ह्ह … देवेन्द्र … आ जाओ ना …’ मन ही मन उसके पास होने की कल्पना करने लगी। जैसे वो सामने बैठकर मेरी हालत देखते हुए भी मुझे तरसा रहा है और मुस्कुरा रहा है।
जल्दी ही फोहा ठंडा हो गया हो गया। मैं इस आनन्द का और मज़ा लेना चाहती थी इसलिए आंख बंद किए हुए ही पास में रखे पतीले को टटोलते हुए पानी में हाथ डाला, पतीले का पानी ठंडा पड़ने लगा था, फिर भी फोहा पानी में भिगोया और योनि पर रख लिया … मगर इस बार वो गर्म फोहे वाला आनन्द नहीं मिला। मैंने उस फोहे को योनि पर निचोड़ कर योनि द्वार के आस-पास से पानी की बूंदों को पोंछ दिया।
फिर धीरे से उठकर बाथरूम के दरवाज़े पर टंगे तौलिये से योनि को हल्के हाथ से पौंछा और बाहर आकर पजामी पहन ली। मगर डर था कि कहीं रात को सोते वक्त कुछ गीला पदार्थ निकलकर पजामी पर दाग न कर दे इसलिए अलमारी से पैड निकाला और पैंटी के अंदर सेट करके नाइट वाली ढीली पजामी पहन ली।
इस वक्त तक ठंड बहुत बढ़ गई थी और मुझे कमरे के अंदर भी सर्दी महसूस हो रही थी। मैंने जल्दी से लाइट बंद की और बेड पर रज़ाई ओढ़कर लेट गई। अब योनि में चुदाई वाला दर्द महसूस नहीं हो रहा था।
लेटकर देवेन्द्र के बारे में सोचने लगी। वो है तो काफी हैंडसम लेकिन शादी से पहले ये सब करके मुझे अंदर ही अंदर काफी अफसोस भी हो रहा था। यही सब सोचते हुए रज़ाई गर्म हो गई और मुझे नींद आ गई।
सुबह माँ ने दरवाज़ा खटखटाया तो आंख खुली। उठने का मन तो नहीं था लेकिन चाय बनानी ज़रूरी थी।
इसलिए मुंह-हाथ धोकर किचन में चाय बनाने चली गई। जब चाय बनाने के लिए पानी चढ़ाने का ख्याल आया तो याद आया कि पतीला तो बाथरूम में ही रखा हुआ है। इधर-उधर माँ को देखा, जब रास्ता साफ लगा तो मैं चुपके से अपने कमरे में गई और शॉल के अंदर पतीला छिपाकर ले आई।
उस वक्त इस तरह के काम करते हुए बड़ा डर लगता था। कहीं माँ को कुछ शक हो गया तो कॉलेज जाना बंद हो जाएगा और मैं नहीं चाहती थी कि मेरी पढ़ाई बीच में ही अधूरी रह जाए।
सुबह के 8.30 बजे निशा का फोन आया- रश्मि तू कॉलेज आ रही है ना …
मैंने कहा- नहीं यार, अभी तो कॉलेज शुरू हुए हैं आज थोड़ी थकान हो रही है। आज रहने दे ना, छुट्टी कर लेते हैं। वैसे भी अभी कौन सा पढ़ाई हो रही है क्लास में।
वो बोली- हां, मैं भी तुझसे यही कहने वाली थी। कल बर्थडे पार्टी के बाद आज मैं भी काफी थकी हुई हूं। मेरा भी कॉलेज जाने का मूड नहीं है। आज रहने देते हैं, कल ही चलेंगे कॉलेज … कहकर उसने फोन काट दिया।
मैंने नहा-धोकर खाना बनाया और टीवी देखते हुए खाने लगी। मां भी खाना खाकर पड़ोस वाली काकी के यहां चली गई और पाप भी हुक्का पानी पीने निकल गए। खाना खाकर मैंने बर्तन-भांडे भी धोकर रख दिए और हॉल में आकर टीवी पर सीरियल देखने लगी।
दोपहर होने को आई थी … टीवी पर सीरियल देखते-देखते सुस्ताने का मन किया तो मैं वहीं हॉल में सोफे पर लेट गई। टीवी स्क्रीन की तरफ देखते-देखते आंखें भारी होने लगीं। मैं सोने ही वाली थी कि अचानक मेरी कमर के नीचे घर्रर … घर्रर … होने लगी, जैसे हल्का करंट लग रहा हो। मैं उछलकर सोफे से नीचे गिर गई। पलटकर देखा तो नीचे फोन दबा हुआ था।
धक-धक … धक-धक … कलेजा दहक गया। मैंने फोन उठाकर देखा तो देवेन्द्र का नम्बर फ्लैश हो रहा था।
गुस्से में तुरंत फोन उठाकर उसको डांटा- यार ये क्या तरीका है? तुमने तो जान ही निकाल दी होती मेरी!
वो बोला- के होया मेरी जान! एक बार में ही जान निकल गई तेरी?
मैंने झेंपते हुए कहा- हट्ट! बेशर्म कहीं का! हर वक्त इन्हीं बातों में दिमाग चलता है क्या तुम्हारा?
“इब तो कितै भी ना चालता मरजाणी, बस तेरे बारे में सोच कै ही खड़ा रह है …”
“हप्प … चलो, मैं तुमसे बात नहीं करती!”
वो बोला- हाय डार्लिंग! इसा जुल्म क्यों करै है! जी ना लागता तेरे बिना इब!
मैंने कहा- यार … कुछ और बात कर ले ना … ये ‘गंदी बात’ करने में ज्यादा मज़ा आता है क्या तुम्हें?
वो बोला- तेरी कसम … अभी भी अंडरवियर फाड़कर बाहर निकलने खातर क्लेश कर रया है! हाय … रश्मि!
वैसे उसकी अश्लील बातों में मज़ा तो मुझे भी आ रहा था मगर झूट-मूट का नाटक कर रही थी। मैंने बाहर की तरफ देखा और अंदर जाकर बात करना ठीक समझा। मैं उठकर अंदर वाले कमरे में चली गई क्योंकि अगर गलती से माँ ने मुझे किसी के साथ ऐसी बातें करते हुए सुन लिया तो शामत आ जाएगी इसलिए वहां पर बात करना ठीक नहीं था।
मैंने अपने रूम में जाकर दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया.
देवेन्द्र फोन पर लगा हुआ था- कहां गई … कहां गायब हो गई … मैं यहां रोमैंटिक मूड में हूं और तू घर के काम में लगी हुई है?
मैंने बेड पर लेटते हुए कहा- कुछ नहीं, अपने कमरे में आई हूं, अब बताओ … क्या कह रहे थे।
वो बोला- दे दे ना …
मैंने कहा- क्या!
वो बोला- पप्पी!
मैंने फिर पूछा- कहां की?
वो बोला- ओए होए … जहां की तेरा जी करता हो, वहां की दे दे!
मैंने कहा- तुम्हें कहां की पसंद है!
वो बोला- मुझे तो तू सारी ही पसंद है।
उसकी बातें सुनकर मेरा मूड भी बनने लगा और मैंने हल्के से अपने स्तनों को मसाज देना शुरू हो गया।
वो बोला- के बात होई डार्लिंग … चुप क्यों हो गी?
मैंने कहा- कुछ नहीं बस ऐसे ही। तुम बताओ क्या कर रहे हो?
उसने कहा- मेरा तो खड़ा है … बेशक हाथ लगा कै देख ले!
मैंने कहा- रहने दो, कल की सूजन तो अभी तक उतरी नहीं है।
वो बोला- कहां से सूज गई मेरी रानी …
मैंने कहा- जहां कल तुमने अपना डाला था।
वो बोला, अच्छा … तो बताया क्यों नहीं तूने?
मैंने कहा- तुम डॉक्टर हो क्या?
वो बोला- अजी हम तो इसा इलाज कर देंगे कि बार-बार तेरा सुजवाने का मन किया करेगा!
मैंने कहा- अच्छा! तो फिर मुझे ही बता दो कैसे इलाज करना है … मैं खुद ही कर लेती हूँ.
वो बोला- कल मिल लिए, फिर बताऊंगा।
इतने में बाहर मेन गेट खुलने की आवाज़ हुई तो मैंने चुपके से कहा कि मैं बाद में बात करती हूं … लगता है माँ आ गई।
कहकर मैंने फोन एक तरफ रख दिया और किताब उठा ली।
माँ ने कहा- रश्मि … तेरे पापा नहीं आए क्या अभी तक?
मैंने कहा- नहीं माँ!
बोली- बेटी, एक कप चाय बना ले फिर।
मैं उठकर रसोई में चाय बनाने चली गई।
चाय पीकर माँ ने कहा- आज कुछ सब्जी भी नहीं है घर में। चल मेरे साथ … बाज़ार से कुछ ले आते हैं।
मैंने अपना पर्स उठाया और माँ के साथ सब्जी लेने बाज़ार के लिए निकल गई। वापस आते-आते शाम हो गई और सूरज लगभग छिप ही गया था। हाथों में सब्जी के पॉलीबैग लटकाए मैं मेन गेट की तरफ बढ़ने लगी तो पीछे से किसी ने माँ को आवाज़ दी- राम राम ताई!
माँ ने कहा- राम-राम बेटा, जीता रह …
मैंने मुड़कर देखा तो काकी का लड़का टिंकू था। टिंकू मुझसे उम्र में एक साल छोटा था। मैं 19 की दहलीज पार कर रही थी तो वो 18 का हुआ होगा।
मगर आज उसने मुझे माँ के सामने देखकर अजीब सी स्माइल पास की जिसका मतलब मैं समझ नहीं पाई।
एक दो बात करके माँ का हाल-चाल पूछने के बाद वो अपने गेट में अंदर घुस गया और हम अपना मेन गेट खोलकर अंदर चल दिए। शाम के 5.30 बज गए थे और मैंने गैस चूल्हे पर कुकर रख दिया। फटाफट सब्जी छोंक दी और आंटा गूँथकर रख दिया। 6.30 तक पापा भी घर आ गए।
हम तीनों ने खाना खाया और 8 बजे तक सब लोग फ्री होकर टीवी देखने बैठ गए।
बैठे-बैठे सीरियल देख ही रही थी कि अंदर रूम से फोन के रिंग बजने की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। साथ ही माँ के भी कान खड़े हो गए। मैंने इस वक्त उठ कर जाना ठीक नहीं समझा। वो कहते हैं ना चोर की दाढ़ी में तिनका।
मैं खुद में तो चालाक बनने की कोशिश कर रही थी मगर ये भूल गई कि हम दुनिया में चाहे किसी को भी बेवकूफ बना लें लेकिन अपने माँ-बाप को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता।
जब फोन बजकर बंद हो गया तो मैंने राहत की साँस ली।
लेकिन कुछ सेकेण्ड के अंतराल के बाद फोन फिर से बजने लगा। माँ ने मेरी तरफ देखा और कहा- रश्मि, तेरा फोन बज रहा है, तुझे सुनाई नहीं दे रहा क्या?
मैंने कहा- देखती हूं माँ … शायद निशा का होगा।
माँ बोली- जब तक जाकर देखेगी नहीं तो पता कैसे चलेगा किसका है.
मैंने अंदर जाते हुए दरवाज़ा हल्के से ढाल दिया। फोन बेड पर पड़ा हुआ रिंग कर रहा था। उठाकर देखा तो देवेन्द्र फोन पर फोन किए पागल हुआ जा रहा था।
मैंने एक कोने में जाकर चुपके से हल्लो किया और कहा- यार, मैं माँ-पापा के साथ टीवी देख रही हूं, अभी बात नहीं कर सकती।
वो बोला- अच्छा सुन, इतना बता कल कॉलेज आ रही है ना?
मैंने फुसफुसाते हुए कहा- हां, आ रही हूं, अब फोन रखो।
फोन रखकर मैं कमरे से बाहर आई तो माँ रसोई में चूल्हे के पास खड़ी हुई थी।
मैंने माँ की तरफ देखा और चुपचाप जाकर टीवी देखने लगी। डर रही थी कि माँ को कहीं शक तो नहीं हो गया है.
इस शृंखला के दो भाग अभी शेष हैं.
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अगला भाग: जब चुदी हुई चूत की हुई सिकाई-2
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