जवान सौतेली मां की चूत चुदाई की लालसा
अन्तर्वासना के सभी दोस्तों को मेरा नमस्कार. मुझे सेक्सी कहानियां पढ़ने का बहुत शौक है. इसलिए मैं हमेशा ही अन्तर्वासना पर प्रकाशित सेक्सी कहानी पढ़ता हूँ. ऐसे ही एक बाद मेरे भी दिल में भी ख्याल आया कि क्यों न मैं अपनी आपबीती सौतेली मां की चूत चुदाई की सच्ची सेक्स कहानी को आपके साथ शेयर करूं.
ये कामुक कहानी मेरे और मेरी सौतेली मां के बीच की है. शायद आपको भी पसंद आएगी. चूंकि ये मेरी पहली कहानी है. अगर कुछ गलती दिखे, तो नजरअंदाज कर दीजिएगा.
पहले मैं अपना परिचय दे देता हूँ. मेरा नाम हर्षद है. मेरी उम्र 25 साल है और कद 5 फुट 8 इंच का है. मैं दिखने में स्मार्ट नौजवान हूँ. कोई भी लड़की देखते ही मुझ पर फ़िदा हो जाती है.
मैं इंजीनियर हूँ और अभी एक बड़ी कंपनी में मैनेजर हूँ. मेरा गांव पुणे से नजदीक है, यही कोई 30-35 किलोमीटर के फासले पर है.
हमारे घर में मैं, पिताजी और मेरी सौतेली मां रहते हैं. बड़ी बहन शादी हो गयी है और वह अपने ससुराल में है. पिताजी की उम्र 48 साल है. उनका कद भी मेरे जितना ही है. वे एक कंपनी में अफसर हैं. वो अपने काम की वजह से हफ्ते में तीन चार दिन घर से बाहर ही रहते हैं.
मेरी सौतेली मां का नाम अदिति है. उनकी उम्र 35 साल है. उनका कद साढ़े पांच फीट है और फिगर 34-30-38 का है. मेरी सौतेली मां दिखने में खूबसूरत हैं. उनकी चूचियां हरी-भरी हैं और चूतड़ों का आकार एकदम गोल मटोल है. जब मां चलती हैं, तो उनकी मस्तानी चाल देख कर किसी का भी लंड खड़ा हो जाएगा.
मेरी सौतेली मां तो सिर्फ रिश्ते में ही मेरी मां हैं. लेकिन उन्होंने आज तक कभी मुझे इसका अहसास नहीं होने दिया. वो मुझे अपना फ्रेंड ही समझकर बर्ताव करती हैं. मुझे बहुत ही प्यार करती हैं और मेरा बहुत ख्याल रखती हैं.
हम दोनों माँ बेटा बहुत सारी बातें खुलकर करते हैं. एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते हैं. कभी कभी पास बैठकर एक दूसरे के गले में हाथ डालकर बातें करते हुए बैठते हैं. मेरे सिवाए उनके साथ बातें करने के लिए कोई नहीं था क्योंकि पिताजी उन्हें ज्यादा समय नहीं दे पाते थे.
इतना खुलापन होने के बावजूद भी मैंने कभी भी अपनी सौतेली मां को गलत नजर से नहीं देखा था.
ये बात एक साल पहले की है. मैं एक कंपनी में इंटरव्यू के लिए गया था. सौभाग्य से पहली बार में ही मेरा चयन मैनेजर के पद के लिए हो गया. कंपनी ने मुझे मेरी नियुक्ति का पत्र भी दे दिया और अगले हफ्ते ज्वाइन करने को कहा.
मैंने अपनी इस सफलता पर बहुत खुश हो गया था. बाहर आकर मैंने बाईक निकाली और रास्ते से मिठाई की दुकान से पेड़े का डिब्बा खरीद कर कुछ ही मिनट में अपने घर आ पहुंचा.
उस समय दोपहर के साढ़े बारह बजे थे. मैंने उत्साह में मां को आवाज दी, तो वो किचन में थीं. वो बोलीं- हां मैं यहां हूँ … क्या हुआ आज बहुत खुश दिख रहा है हर्षद!
मैं उनके पास जाकर बोला- हां मां … मुझे जॉब मिल गयी है. ये देखो लैटर.
उन्होंने नियुक्ति पत्र पढ़ा, तो वो भी बहुत खुश हो गईं.
उन्होंने मेरा अभिनंदन किया और मुझे अपने गले से लगा लिया. मैंने भी पेड़े का डिब्बा किचन की पट्टी पर रखकर उनको अपनी बांहों में भर लिया.
उन्होंने मेरे माथे पर किस किया, फिर मेरे दोनों गालों पर किस किया.
मां मुझे बांहों में भरे हुए थीं और वे मेरी पीठ सहला रही थीं.
मां बोलीं- हर्षद, आज मैं बहुत खुश हूँ.
उनका सर मेरे कंधे पर टिका हुआ था. उनके कड़क स्तन मेरे सीने पर दबे जा रहे थे. मैं भी उनकी पीठ पर अपने हाथ फेर रहा था. मेरे दिल में आज कुछ कुछ होने लगा था. उनकी गर्म सांसें मेरे बदन को उत्तेजित कर रही थीं. मुझे सौतेली मां की चूत चुदाई के लिए उकसा रही थी.
बात आगे बढ़ने से पहले ही मैं बोला- मां पिताजी कहां हैं?
वो बोलीं- अभी आ जाएंगे, वो कुछ काम के लिए बाहर गए हैं.
मैंने कहा- मैं पेड़े लाया हूँ … आप दोनों का मुँह मीठा करना है.
वो बोलीं- ठीक है, पहले फ्रेश हो जाओ. बाद में पहले भगवान को प्रसाद चढ़ा कर सभी को देना … समझे!
‘ठीक है मां..’ कहते हुए मैं बाथरूम में चला गया.
जल्दी जल्दी फ्रेश होकर मैंने भगवान को प्रसाद चढ़ाया, उन्हें नमस्कार किया और बाहर आ गया.
फिर मैंने मां को पेड़ा खिलाया और उन्होंने मुझे खिलाया. इतने में पिताजी भी आ गए.
हम दोनों को प्रसन्न देख कर पिताजी बोले- हर्षद क्या बात है … आज तुम दोनों बहुत खुश दिख रहे हो!
मैंने उन्हें लैटर दिखाया और मेरे जॉब लगने के बारे में सब कुछ बोल दिया.
वैसे भी लैटर में सब कुछ लिखा था. पेमेंट और ज्वाइनिंग डेट भी लिखी थी.
ये सब पढ़ कर पिताजी भी बहुत खुश हो गए. मैंने उनके चरण स्पर्श किये और उनको पेड़ा खिलाया.
उनकी आंखों में आंसू आ गए थे. मैंने बोला- पिताजी आप क्यों रो रहे हैं?
पिताजी बोले- नहीं हर्षद, ये ख़ुशी के आंसू हैं. मैं तुम्हारी सफलता से आज बहुत खुश हूँ. बेटा तुम अपने पैरों पर खड़े होने जा रहे हो. हर्षद मुझे तुम पर नाज है.
ये कहकर पिता जी ने मुझे गले से लगा लिया. मां भी हमारे साथ शामिल हो गईं. हम तीनों एक दूसरे के साथ गले मिल कर अपनी ख़ुशी मनाने लगे.
ये सच में मेरे लिए बहुत ही हसीन पल था.
फिर पिताजी बोले- अदिति, खाना लगाओ … मैं फ्रेश होकर आता हूँ.
वो बाथरूम में चले गए. मां भी किचन में चली गईं. मैं डायनिंग टेबल पर कुर्सी लेकर बैठ गया.
मां ने खाना परोसा और हम तीनों बातें करके खाना खाते रहे. मैं मां के सामने बैठा था और पिताजी उनकी बगल में थे. मुझे रोटी देते समय मां को कुछ ज्यादा ही झुकना पड़ रहा था, तो मुझे उनके गोरे, कड़क स्तन दिख रहे थे. मैं भी गौर से मां के मम्मे देख रहा था. ये मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.
मां भी मुझे देख रही थीं कि मेरी नजरें उनके मम्मों पर हैं. ये देख कर आज मां की नजरें कुछ बदली सी थीं. वो मुझे बार बार देख रही थीं और मैं उनके मम्मों को निहार रहा था.
इतने में पिताजी का खाना हो गया और वो बोले- तुम लोग आराम से खा लो. मैं आराम करने जा रहा हूँ.
वो चले गए.
मां बोलीं- हर्षद, तुम ये क्या बार बार घूर-घूर कर मुझे देख रहे थे? ऐसा मुझमें तुझे क्या नया दिख रहा है? तुम बहुत बदमाशी कर रहे हो.
मैंने कहा- कुछ नहीं मां … बस मैं तो ऐसे ही देख रहा था. मुझे माफ कर दो.
वो हंसकर बोलीं- अरे हर्षद मैं तुम पर गुस्सा नहीं कर रही हूँ … मैंने तो तुम्हें ऐसे ही बोला. वैसे भी तुम्हारी यही उम्र तो है ताक-झांक करने की.
मैंने उनकी हंसी देखी, तो सामान्य हो गया.
कुछ ही देर में हमारा खाना भी हो गया और मां सभी बर्तन लेकर किचन में अपना काम करने लगीं.
मैं उठ कर अपने रूम में चला गया.
कमरे में मैं अपने बेड पर लेटा था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी. बार बार मेरी आँखों के सामने वही सारे दृश्य आ रहे थे. मां और मैं एक दूसरे के पीठ पर हाथ फेर रहे थे. उनके स्तनों का दबाव मेरे सीने पर मुझे मस्त कर रहा था. फिर खाना खाते वक्त दिखने वाले सेक्सी मम्मों को देख कर मैं गर्म हुए जा रहा था.
मैं खुद अपने आपको कोसने लगा कि मैं अपनी मां के बारे में कितना गंदा सोचता हूँ.
यही सब सोच कर मुझे कब नींद आ गई, इसका कुछ पता ही नहीं चला.
कुछ देर बाद मां ने मुझे जगाया- हर्षद चलो … उठो फ्रेश हो जाओ. मैं चाय बनाती हूँ. तुम तैयार हो जाओ, हमें मंदिर जाना हैं.
मैं उठा और बाथरूम में जाकर फ्रेश हो गया, फिर तैयार हो गया.
पिताजी भी तैयार हो कर मन्दिर जाने के लिए सोफे पर बैठे थे. मां चाय लाईं और हम तीनों ने चाय पी ली.
फिर मन्दिर के लिए निकल गए. पैदल जाने में कुछ ही मिनट का रास्ता था.
ये गणेशजी का बड़ा मन्दिर था. हम लोग बातें करते चल रहे थे.
पिताजी बोले- आज मंगलवार का बहुत ही शुभ दिन है. हर्षद तुमने बहुत बड़ी खबर सुनायी है आज. ये सब भगवान की कृपा है बेटा. इसलिए मैंने ही अदिति को बोला कि हम मन्दिर होकर आएं.
मैं बोला- हां अच्छा हुआ पिताजी. मैं भी आपको यही कहने वाला था.
फिर हम दर्शन करके उधर बगीचे में थोड़ी देर बातें करने लगे. कुछ देर बाद हम सब घर आ गए. तब तक करीब शाम के साढ़े सात बज गए थे.
मां बोलीं- मैं खाना बनाती हूँ.
ये कह कर मां किचन में चली गईं. मैं और पिताजी टीवी चालू करके हॉल में ही सोफे पर बैठ गए. मेरी नजरें किचन में गईं, तो मां के हिलते हुए चूतड़ मुझे दिख रहे थे. उनके मस्त गोल मटोल चूतड़ मुझे उत्तेजित करने लगे थे. वे इधर उधर हिलतीं, तो उनकी गांड के दोनों फलक ऊपर नीचे हो रहे थे. जब मां नीचे को झुकतीं, तो उनके दोनों चूतड़ों के बीच वाली दरार साफ दिख रही थी.
ना चाहते हुए भी मेरी नजरें उस तरफ बार बार जा रही थीं. मैं टीवी कम, अपनी मां के मदमस्त जोवन को ही ज्यादा देख रहा था.
एक बार तो मेरी और मां की नजरें टकरा भी गईं. मैं नजरें मिलते ही सकपका गया, मगर वो मुझे देख कर हंसने लगीं. मां अब बार बार मुझे देखते हुए अपना काम करती रहीं.
इतने में पिताजी बोले- तो हर्षद कंपनी कब ज्वाइन कर रहे हो?
मैं बोला- अगले हफ्ते एक जनवरी से करने के लिए कहा गया है.
पिताजी- अच्छा है हर्षद … खूब दिल लगा कर काम करना … किसी को शिकायत का मौका मत देना.
इतने में हॉल में मां आईं और वो मेरी तरफ देख कर हंसते हुए बोलीं- किस मौके की बात कर रहे हो.
जब पिताजी ने उन्हें समझाया.
तो वो मुझे आंख मारकर बोलीं- वैसे ही बहुत होशियार है मेरा हर्षद. उसे कुछ बताने की जरूरत नहीं है. खुद ही सब समझ जाता है.
उनकी इस बात का अर्थ मुझे कम समझ में आया था. तब भी उनकी दबती आंख ने मुझे हिम्मत दे दी थी.
मैं भी उनकी तरफ देख कर मुस्कुराने लगा.
फिर पिताजी बोले- हां वो तो है ही.
हम सब हंसने लगे.
फिर कुछ देर टीवी देखने के बाद मां बोलीं- चलिए मैं खाना लगाती हूँ … नौ बज गए हैं. आपको कल सुबह आठ बजे ऑफिस भी जाना है ना!
पिता जी को ये याद आया, तो वो भी उनकी हां में हां मिलाते हुए हाथ धोने चले गए.
मां किचन में चली गईं.
मैं उनके सेक्सी चूतड़ों को देखता रह गया.
कुछ देर बाद मैं भी उठा और हाथ धोकर आ गया. तब तक मां ने खाना परोस दिया था. हम सभी ने साथ में खाना खा लिया.
पिताजी अपने बेडरूम में चले गए. मैं भी अपने रूम में चला गया. मां किचन में अपना काम समेटने लगीं.
मैं रात को सोते समय सिर्फ एक जांघिया में ही सोता हूँ. लेकिन अभी ठंडी की वजह से मैंने लुंगी और बनियान भी पहनी हुई थी.
मैं लेट गया, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी. आंखें बंद करने के बाद न चाहते हुए भी मुझे मां के कड़क और सेक्सी स्तन, गोल-मटोल हिलते हुए चूतड़ और उनके गर्म हाथों का स्पर्श बार बार गर्म कर रहा था. उनकी गर्म सांसें मेरे गालों पर मुझे महसूस हो रही थीं.
ये सब सोचकर मेरे बदन में कुछ कुछ होने लगा था. मेरा लंड आहिस्ता आहिस्ता खड़ा होने लगा था. मुझे अब लगने लगा था कि मेरा लंड जांघिया को फाड़कर बाहर आने की कोशिश कर रहा है.
मैंने लुंगी में हाथ डालकर जांघिया को नीचे कर दिया … और लंड को आजाद कर दिया. फिर ऊपर से लुंगी ठीक करके लंड ढक लिया. इस समय मेरा लंड अपने पूरे आकार में था. मेरा लंड सात इंच लंबा और किसी मोटी ककड़ी सा मोटा है. इतना भीमकाय लंड भला एक चुस्त जांघिया में कैसे रह सकता था.
इतने में मां मेरे कमरे का दरवाजा खोल कर अन्दर आ गयी और बोलीं- हर्षद ठंड ज्यादा है ना … तो मैं तुझे ये कम्बल देने आयी थी. मैंने आँख खोल कर मां को देखा, तो पाया कि उनकी नजरें मेरी लुंगी में बने हुए तंबू पर थीं. मैं घबराकर उठकर बैठ गया. मेरी तो फट गयी थी. ठंडी में भी मुझे पसीना आ रहा था.
मां की मस्त जवानी मुझे उनको चोदने के लिए बेचैन कर रही थी. आगे मैं आपको सौतेली मां की चूत चुदाई की कहानी को आगे लिखूंगा.
आपके मेल का मुझे इन्तजार रहेगा.
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जवान सौतेली मां की चूत चुदाई की इच्छा की कहानी का अगला भाग: जवान सौतेली मां की चूत चुदाई की लालसा-2
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