पतिव्रता नारी-1
लेखिका : नेहा वर्मा
मैं दिल्ली में एक ऑफ़िस में काम करती हूँ। मेरे पति और मेरी, हम दोनों की महनत से घर ठीक से चल जाता था। मेरे पति एक कनिष्ठ वैज्ञानिक थे। वे हमेशा कुछ ना कुछ करते ही रहते थे। मेरे पति की मेहनत आखिर रंग लाई, उनका पेपर आखिर पास हो गया और उन्हें उसके लिये तीन माह के लिये अमेरिका जाने के लिये आज्ञा मिल गई थी।
जाने से पहले उन्हें मेरी बहुत चिन्ता हो गई थी। दिल्ली जैसी जगह पर हादसे होने की खबर से वो चिन्तित थे। अन्त में उन्होंने यह फ़ैसला किया कि वे अपने छोटे भाई को इन तीन महीने के लिये बुला लेंगे।पर उनकी बात पापा ने ठुकरा दी। पापा ने उन्हें मना कर दिया, कारण था कि उसके फ़ाईनल समेस्टर की परीक्षा थी। फिर मैंने ही उन्हें एक उपाय बताया कि मेरे साथ ही ऑफ़िस में मेरे दो जान पहचान के हैं यदि वे यहाँ तीन महीने के लिये यहाँ रुक जाये तो मुझे आराम हो जायेगा। पहले तो उन्होंने शंकित दृष्टि से मुझे देखा फिर उन्होंने उनसे मिलना चाहा। पर उन्हें मेरे पत्निव्रता होने पर कोई शक नहीं था। जी हाँ, वैसे भी मैं अपने पति के अलावा किसी से चुदवाया भी नहीं था।
… मेरा मतलब है शादी के बाद… समझ रहे हैं ना आप… मैंने अपने दोनों कलीग रोहन और मोहित को मैंने पति से मिलवा दिया। उनके मासूम से चेहरे और भोला भाला सा व्यवहार उन्हें भा गया और उन्होंने तुरन्त हाँ कह दी।
मेरे पति दो तीन दिन तक तो उन दोनों से रोज मिलते, उनके साथ चाय पीते… और उन्हें टटोलते रहते… पर वो इतने सीधे साधे थे कि उन पर शक किया ही नहीं जा सकता था। फिर वो दिन भी आया कि वे शान्त मन से अमेरिका के लिये रवाना हो गये।
उनके जाते ही मुझे खाली खाली सा लगने लगा। मुझे समझ में आता था कि अब मैं क्या करूँ? उनकी तो आदत थी रोज शाम को शराब पीने की और मुझसे फिर वो छेड़छाड़ करते… कभी मेरी चूचियाँ दबाते तो कभी मुझे चूम लेते… कभी मेरी गाण्ड के गोले दबा देते तो कभी कभी मेरी गाण्ड में अपनी अंगुली डाल कर गुदगुदाते…
फिर खूब उत्तेजित हो कर मुझे चोद देते थे। मुझे भी इसमें बहुत आनन्द आता था।
चार-पाँच दिन गुजर गये… मैं बहुत बोर होती थी। रोहन और मोहित तो शाम को खाना खाकर अपने कमरा में गप्पें मारते और सो जाते थे। आज मैंने तो शराब की बोतल अलमारी से निकाल ही ली और डबल पेग व्हिस्की और सोडा निकाल कर बर्फ़ डाल दी। गर्मी के दिन थे तो मैं अपना गिलास लेकर तीसरी मंजिल की छत पर आ गई। एक किनारे पर कुर्सी डाल कर बैठ गई और धीरे धीरे शराब की चुस्कियाँ लेने लगी। सच मानो… अकेले में बिल्कुल मजा नहीं आ रहा था। आप ही बतायें, इस भरपूर जवानी में बिना लण्ड की पूजा किये आनन्द कैसे आता।
“हाय दीदी…”
मैंने नीच झांका… रोहन खड़ा था
“हाय… नीचे क्या कर रहे हो… यहीं ऊपर आ जाओ…!”
“जी… मोहित को आने दो…”
“अरे वो आ जायेगा… तुम तो आ जाओ…”
कुछ ही क्षण में रोहन छत पर था। तेजी से आया था सो उसकी सांस फ़ूली हुई थी। अंधेरा सा होने लगा था सो छत की लाईट जला दी थी। वो आकर मेरे समीप ही दीवार पर बैठ गया।
“दारू है क्या?”
“हूँ… लोगे क्या?”
“नेहा दीदी… आप दारू पीती हैं? अच्छा… कैसा लगता है…?”
“अरे पीनी हो तो बोलो…”
“वो मोहित पीता है…”
“तो जा… कमरे में से बोतल… सोडा और बर्फ़ ले आ… बैठना हो तो कुर्सी भी ले आना।”
रोहन बाहर के कमरे में पड़ी खाट उठा ले आया… फिर जाकर बोतल… सोडा… और बर्फ़ भी ले आया। इतनी देर में मोहित भी आ गया था।
दीदी… छत पर कितना अच्छा लग रहा है… आपकी आज्ञा हो तो हम रात को ऊपर ही सो जाये… वो चहकता हुआ सा बोला
अच्छा आईडिया है… रोहन… मेरा भी बिस्तर यहीं लगा देना। मोहित ये लो तुम्हारा ड्रिंक…
रोहन अपना और मेरा बिस्तर लगाने को नीचे चला गया। दोनों नई उमर के जवान लड़के… दुबले पतले से… सलीके वाले थे। मोहित ने सिगरेट निकाली और मुंह से लगा ली। सिगरेट जलाई और एक गहरा कश लिया।
(वैधानिक चेतावनी… सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।)
“मोहित कैसी लगती है सिगरेट?”
“दीदी, ट्राई करोगी?”
मैं उठी… और खाट पर मोहित के समीप ही बैठ गई। उसने अपनी सिगरेट मेरी तरफ़ बढ़ा दी और अपने ही हाथ से मेरे होंठों पर लगा दी।
“धीरे से… नेहा दीदी…”
मैंने धीरे से एक कश खींचा पर सावधानी के बावजूद भी गले में धुंआ लग गया। मुझे तेज खांसी उठी। मोहित ने जल्दी से मेरी पीठ को थपथपाया… थोड़ी सी पीठ को सहलाई… मुझे एक मीठी सी सिहरन हुई। मैंने जाने क्या सोच कर अपना मुख और झुका कर उसकी जांघों पर रख दिया। वो मेरी पीठ सहलाता रहा… मुझे महसूस हुआ कि जैसे मेरे पति मेरी पीठ सहला रहे हैं और कुछ ही देर में वो मेरी गाण्ड में अंगुली पिरो देंगे। मैंने उसकी दोनों जांघें थाम ली। उसके लण्ड की महक भी आ गई।
“बस… बस… हो गया दीदी… पहली बार ऐसा होता है…”
पर तब तक मेरी दृष्टि उसके लिये बदल चुकी थी। नशा असर करने लगा था। उसे भी नशा होने लगा था। मैंने अपनी नशीली नजरें उठा कर मोहित की ओर देखा… मैंने धीरे से उसके कंधे पर अपना सर रख दिया। तब तक रोहन आ चुका था। वो बहुत ध्यान से हमें देख रहा था। पर मुझे इससे क्या फ़रक पड़ता भला? मुझ पर तो अब धीरे धीरे वासना का भूत सवार होता जा रहा था। मैंने अपनी एक चूची मोहित की बाहों पर दबाई और एक आह भरी…
“दीदी… यह आपको क्या हो रहा है…?” शायद ऐसा करने से वो कुछ समझ चुका था।
“मोहित… बस सिगरेट का असर है…!”
मैंने अपनी मांसल चूची जोर से उसकी बांह से एक बार और रगड़ दी… और एक आह सी भरी। उसने मेरी चूची को धीरे से दबाते हुये अपनी बाहों से दूर कर दी।
तभी रोहन बोला- दीदी… आओ कुर्सी पर बैठ जाओ…
“अरे चुप रहो ना… मुझे तो मोहित की गोदी में बैठना है… कुछ कड़क सा मुझे भीतर चाहिये…”
मोहित धीरे से बोला- नेहा दीदी… बोलो क्या चाहिये…? लण्ड की बात कर रही हो क्या?
“इस्स… साले मोहित के बच्चे… लण्ड… सच देगा क्या… देखूँ तो कितना मोटा है?”
मोहित ने ताकत लगा कर मुझे उठाया और कुर्सी पर बैठा दिया।
“ऐ रोहन… जरा ये साड़ी तो उतार दे… देख कैसी फ़ंस रही है !!” मुझे कुछ तड़प सी महसूस हुई।
रोहन ने सब कुछ भांप लिया था। उसका लण्ड भी खड़ा होने लगा था। तभी मैंने जानकर के अपनी साड़ी को उतार दिया… और साथ में पेटीकोट भी ढीला कर दिया।
“अब साले रोहन तू क्या कर रहा है… चल उतार तो अपनी पैन्ट… और ये हरामी मोहित…”
“दीदी, उतार तो रहा हूँ…”
दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुस्कराये… दोनों ने अपनी पैन्ट उतार दी। मुझे दोनों का तम्बू सा तना हुआ लण्ड चड्डी के ऊपर से ही नजर आ रहा था। मुझे नशे में सब कुछ मोहक सा लग रहा था।
“हम्म… रे… हंसो साले भड़वो… मुझे क्या रण्डी छिनाल समझ रखा है… अरे मैं तो पतिव्रता नारी हूँ, ये अपना लौड़ा मुझे क्या दिखा रहा है?”
“दीदी… वो तो जोर मारेगा ही ना… बताओ ना चुदना है क्या? मजा आयेगा !” मोहित धीरे से बोला।
“तू क्या समझता है कि आज तक मैं चुदी नहीं हूँ…? अरे ये चूत तो मेरी अब तक भोसड़ा बन चुकी है।” नशा मुझ पर वासना के साथ बहका रहा था।
“दीदी… एक बार अपनी मुनिया दिखाओ तो पता चले… लाओ एक पेग बना दूँ।” यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
“मुनिया क्या… ये भोसड़ा… देखोगे… फिर देखो, दोनों मुझे अपना अपना लौड़ा दिखाओगे ना?”
मुझे नशे में समझ कर दोनों मुझसे खेल कर कर रहे थे। पर मुझे भी इसमे बहुत बहुत आनन्द आ रहा था। मैंने दारू पीते हुये नाटक जारी रखा…
कितना आनन्द आ रहा था उन दोनों से इतनी अश्लील बातें करना… मैंने झटक कर अपनी टांगों में उलझा हुआ पेटीकोट जानबूझ कर नीचे गिरा दिया। बिना पैन्टी के मैं अब बिल्कुल नंगी थी। उफ़्फ़ ! कैसा मजा आ रहा था ! दो जवान लड़कों के मध्य मैं नंगी बैठी हुई थी। मैंने आगे सरक कर अपनी चूत को फ़ैला दी और दोनों अंगुलियों से चूत को फ़ाड़ कर उन्हें दिखाई। जाने छत की मामूली सी रोशनी में उन्हें क्या दिखाई दिया होगा। पर मुझे बहुत जोर से झुरझुरी छूट गई। दोनों लपक कर पास आ गये…
“दीदी… एक बार फिर से प्लीज…!”
मैंने उन्हें खोल कर फिर से दिखा दिया। दोनों अपनी आँखें फ़ाड़ कर ध्यान से मेरी खुली हुई शेव की हुई चिकनी चूत को देख रहे थे। मोहित ने तो अपनी जीभ खोल कर मेरी चूत की ओर बढ़ा दी और लपक कर एक लम्बी सी चूत की चुस्की ले ली।
“ओह्ह्ह… माँ… मर गई मैं तो… साले हरामजादे… कहा ना ! मैं पतिव्रता हूँ… खबरदार जो हाथ लगाया।”
“दीदी… कितनी रस से भरी है… चूसने दो ना…!”
“चल उधर खड़ा हो जा और अपना लौड़ा बाहर निकाल…!”
दोनों ने अपनी चड्डी उतार दी और उनके तने हुये लण्ड सीधे खड़े हुये थे। इतने सुन्दर कि मेरी तो नजरें ही नहीं हट रही थी उन पर से। मेरी चूत कड़कने लगी… फ़ड़फ़ड़ाने लगी… पानी उगलने लगी। हाय ! पर क्या करती। मैं अपनी चूत खोले उस पर अपनी अंगुली सहलाने लगी।
उफ़्फ़्फ़… मोहित अपना लौड़ा रगड़ ना… आह रगड़ यार !
दीदी… यूँ तो ये झड़ जायेगा।
“तो क्या हुआ… देख मैं भी तो झड़ूँगी ना…… कर ना यार… कितने नखरे करता है यार…”
दोनों ने अपना लण्ड धीरे धीरे घिसना आरम्भ कर दिया। कितना कड़क लण्ड… कैसा घिस रहे थे… लाल सुपारा… उस पर एक सुन्दर सा छेद… मेरा मन कर रहा था कि उन्हें हाथ बढ़ा कर जोर से पकड़ लूँ और उन्हें रगड़ डालूँ। मेरी अंगुली मेरी चूत पर तेजी से चलने लगी।
“दीदी… बहुत हो गया… चोदने दो ना…”
“आह… चुप हो जा साले… बिना लौड़े के ही कैसा आनन्द आ रहा है…”
“नेहा दीदी… प्लीज मान जाओ ना… देखो तो ऐसे तो ये झड़ जायेगा…”
“अरे मुठ्ठ मार ना यार जोर से… और जोर से हाथ चला…”
“इस्स्स… हाय रे दीदी…”
फिर जोर से पिचकारी के रूप में उनका वीर्य झर झर करके उछल कर मेरे तक आने लगा। वो जान करके मेरे नजदीक आकर मेरे अंगों पर वीर्य छलकाने लगे। तभी मेरी भी रस की धारा छूट पड़ी। हम तीनों ही अपना अपना काम रस छोड़ रहे थे… मैं तो उत्तेजना और नशे के मारे निढाल सी होने लगी थी। मैं कुर्सी से उतर कर धीरे से नीचे बिस्तर पर लेट गई और गहरी निद्रा में डूब गई। सुबह जब नींद खुली तो मैं छत पर नहीं, अपने कक्ष में अपने बिस्तर में नंग धड़ंग सो रही थी। नीचे कारपेट पर मोहित और रोहन नंगे ही सो रहे थे।
नेहा वर्मा
कहानी जारी रहेगी।
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