बिरज की होली और ट्रेन में चूत ले ली -1
दोस्तो, मैं अरुण एक बार फिर से अपनी एक नई आपबीती बताने जा रहा हूँ.. जिसे पढ़ने के बाद आप खूब आनन्द लेंगे और अपनी प्रतिक्रिया जरूर लिख भेजेंगे।
वैसे मेरी पहले भी कुछ कहानियां प्रकाशित हुई हैं.. जिनके प्रकाशन के बाद मुझे काफ़ी ईमेल भी आए हैं और मैंने उनके जबाव भी दिए हैं। कइयों ने तो मेरी कहानी को फेक भी बोला था.. मगर कोई बात नहीं क्योंकि दिल का हाल.. दिल वाला ही समझ सकता है। मगर लगता है कि अब लड़कियों और भाभियों ने कहानी पढ़नी कम कर या लगता है कि जैसे पढ़ना ही बंद कर दी है.. क्योंकि मुझे ना तो किसी भाई और ना ही किसी लड़की का अभी तक कोई ईमेल आया।
कोई बात नहीं.. अब सीधा कहानी पर आता हूँ।
बात अभी बिल्कुल ताजी-ताजी है.. अभी होली से 3 दिन पहले की है।
मैं और मेरा एक दोस्त विनोद हम दोनों होली पर हर साल मथुरा वृंदावन ज़रूर जाते हैं.. तो इस बार भी हमारा प्लान शनिवार के दिन का ही बना क्योंकि हम दोनों जॉब करते हैं और छुट्टी बिल्कुल भी नहीं करना चाहते थे।
अब हम दोनों घर से मथुरा जाने के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए निकल गए थे और वहाँ पहुँच कर कर्नाटक एक्सप्रेस ट्रेन की दो जर्नल टिकट लेकर ट्रेन की तरफ चल दिए।
ट्रेन स्टेशन पर जाने के लिए तैयार खड़ी थी।
हम दोनों जैसे ही ट्रेन के पास तक पहुँचे.. तो वो एकदम से चलने लगी.. हम भी जल्दी से एक रिज़र्वेशन वाले डिब्बे में चढ़ गए और देखा कि वहाँ कुछ सीट खाली थीं।
अब हम जैसे ही सीट पर पहुँचे और देखा कि हमारे सामने वाली सीट पर दो लड़कियां.. एक छोटा लड़का और एक आंटी बैठे हुए थे।
एक लड़की की उम्र 26-27 के आस-पास की और दूसरी लड़की 20-22 साल के आस-पास की लग रही थी।
वैसे तो दोनों ही सांवली सी थीं.. मगर छोटी वाली.. जिसके नैन नक्श एकदम मस्त फ़ुर्सत से बनाए हुए लग रहे थे।
उसका फिगर तो माशाअल्लाह.. देखते ही लंड खड़ा हो जाए। मुझमें एक आदत है कि जहाँ देखी कन्या कुँवारी वहीं लाइन दे मारी।
बस कोच में घुसते ही मेरे मुँह से निकला- वाह री राधे.. तेरे बिना हम हैं आधे..
ये बात सुनकर आंटी ने मेरी तरफ देखा और बाकी दोनों लड़कियां हँसने लगीं। हम बैठे ही थे कि तब तक टिकट चैक करने टीटी उसी कोच में आ गया और टिकेट चैक करने लगा।
उसने हमारी टिकट देख कर कहने लगा- वाह जी वाह.. रिजर्वेशन के डिब्बे में लोकल की टिकट.. कहाँ जा रहे हो?
तो मैंने और दोस्त ने दोनों ने जबाव दिया- मथुरा..
टीटी बोला- लाओ निकालो 500 रूपए..
तो जैसे-तैसे मैंने उसे 100 रूपए देकर विदा किया.. और फिर हम दोनों दोस्त आराम से सीट पर बैठ गए।
मुझे एकदम से ध्यान में आया कि यार आज तो भारत-पाक का क्रिकेट मैच था.. तो मैं नेट पर लाइव मैच देखने लगा।
पाक खेल चुकी थी और इंडिया लक्ष्य का पीछा करते हुए 2 विकट खो चुका था। ये बात मैंने अपने दोस्त को बताई- इंडिया की 2 विकट हो गई हैं यार..
हम दोनों इस बारे में बात ही कर रहे थे कि सामने बैठे छोटे लड़के भी पूछा- भाई स्कोर क्या हुआ है?
तो दोस्तो, यहाँ से स्टोरी में ट्विस्ट आया।
लड़के का नाम समीर था.. और उसकी छोटी बहन ने पूछा- समीर, क्या स्कोर बताया इन्होंने?
तो मैंने उससे कहा- यार मुझे मैच में मजा नहीं आ रहा है.. समीर तुझे देखना है तो देख ले यार..
इतना कहते ही समीर ने अपनी छोटी बहन को आवाज़ दी- पूजा दी.. आ जाओ मैच देखते हैं।
फोन चार्जिंग पर लगा होने से उन्हें मेरी सीट पर ही बैठना पड़ा।
मगर हम अब एक सीट पर तीन हो गए थे.. बीच में समीर बैठा था.. सीधी तरफ मैं और लेफ्ट में पूजा थी। पूजा की टाँगें मेरी जाँघ और मेरी टाँगें पूजा से भिड़ी हुई थीं। मुझे आदत है कि लड़की पास हो और उसे ना छेड़ूँ.. ऐसा हो नहीं सकता।
पूजा से टाँगें टच होने से मेरे अन्दर का शैतान जैसे जाग सा गया हो।
मैंने पूजा की तरफ देखा.. तो वो तो पहले से ही मेरी तरफ देख रही थी।
बात करने की शुरूआत मैंने ही की.. मैंने पूछा- पूजा यार तुम्हें भी मैच का शौक है क्या?
उधर से जबाव आया- सच कहूँ यार.. तो बहुत ज्यादा तो नहीं है.. पर जब खाली होती हूँ.. तो देख लेती हूँ।
फिर ऐसे ही 30 मिनट तक हमारी बातें होती रहीं।
इतने में मेरा एक पैर सो सा गया.. और मैं उसे ठीक करने के लिए मसलने लगा। जैसे-जैसे मैं अपनी टांग को मसल रहा था.. वैसे-वैसे मेरा हाथ पूजा की जाँघों को भी टच हो रहा था।
ये पूजा भी महसूस कर रही थी और वो एकदम से पूछने लगी- क्या हुआ?
तो मुझे लगा कि शायद पूजा को अच्छा नहीं लगा।
मैंने कहा- यार मेरा पैर सो सा गया है।
मैंने अपने पैर को उसकी जाँघों से थोड़ा सटा कर मलने लगा। कुछ देर बाद पूजा अपनी जांघें खुद ही मेरे हाथों से टच करने लगी।
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उसकी इस हरकत से मेरा लौड़ा अपनी 6″ की औकात में आ गया।
अब पूजा भी मेरी तंबू बने लंड की तरफ देख रही थी और पूजा की आँखें भी अब कुछ नशीली सो लगने लगी थीं।
इधर समीर का पूरा ध्यान मैच पर था मेरे दोस्त विनोद का ध्यान आंटी से बात करते हुए बड़ी बहन को लाइन देने में था। मेरा तो लंड जैसे चालकर भर आने की तैयारी में था।
अब पूजा और मेरी आँखों-आँखों में बातें होने लगी थीं।
मैं पूजा से कहने लगा- चलो यार.. टायलेट में चलते हैं।
मगर उसने आँखों से नहीं का इशारा किया।
मेरा लंड अब पैन्ट के अन्दर दर्द करने लगा.. तो मैंने सोचा कि यार ये तो आ नहीं रही है। मेरे पास भी बस 1 घंटा ही बचा है.. क्योंकि ट्रेन को चलते हुए एक घंटा हो चुका है.. और मथुरा पहुँचने में ट्रेन 2 से 2.5 घंटे लेती है।
जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने सोचा कि क्यों ना टायलेट में जाकर मुठ मारकर अपने आपको शांत किया जाए।
मैं वहाँ से उठा और टायलेट में आकर मुठ मारने लगा।
मुझे 10 मिनट ही हुए होंगे कि तभी किसी ने दरवाजा बजा दिया.. मैंने भी लंड को पैन्ट के अन्दर करके जैसे ही दरवाजा खोला देखा.. सामने पूजा थी और उसने एक बार इधर-उधर देखा और सीधा अन्दर घुस आई।
क्यों दोस्तो, मजा आ रहा है ना.. ऐसे ही मजा बनाए रखना.. जल्दी ही दूसरे पार्ट में पूजा चुदने वाली है।
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कहानी का अगला भाग : बिरज की होली और ट्रेन में चूत ले ली -2
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