मस्त पड़ोसन भावना आंटी
दोस्तो, आज मैं आपको अपने बचपन की एक कहानी सुना रहा हूँ, जब मैंने पहली बार किसी औरत की चुदाई का मज़ा लिया।
मेरा नाम अविजित है मगर सब मुझे अवि ही बुलाते हैं।
बात तब की है जब मैं 10+2में था। मैं और मेरा दोस्त रिंकू, हम दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे, दोनों के घर भी पास पास थे, सो अक्सर एक साथ ही बैठ कर पढ़ते थे। पढ़ते क्या थे, नई नई जवानी चढ़ी थी तो ज़्यादा बातें तो सेक्स की ही होती थी, किस के चूचे बड़े हैं, किसकी गांड बड़ी है, बस सारा दिन इसी चक्कर में उलझे रहते थे।
ऐसे ही एक दिन हम दोनों मेरे ही घर बैठे पढ़ रहे थे, हल्की हल्की सर्दी के दिन थे, दोनों छत पर ही बैठे थे, पहले थोड़ी देर पढ़े, फिर सेक्सी बातें शुरू कर दी, बात बढ़ते बढ़ते बढ़ गई, और हम दोनों ने अपने अपने लंड निकाले और मुट्ठ मारने लगे, रिंकू मुझे देख कर मुट्ठ मार रहा था और मैं उसको देख कर, दोनों ये देख रहे थे कि पहले कौन झड़ता है।
इसी जोश में हम आस पास के बारे में सब भूल गए।
तभी एक तेज़ आवाज़ हमें सुनी- ओए हरामियो, यह क्या कर रहे हो?
हमने उस तरफ देखा, साथ की ही छत पर हमारी पड़ोसन, 40 साल की, भावना आंटी खड़ी हमें देख रही थी, हम दोनों ने अपने अपने लंड अपनी अपनी पैंट में डाले और जैसे ही जाने लगे, आंटी ने फिर पुकारा- जाते कहाँ हो, अगर हिले तो तुम दोनों के घर बता दूँगी कि पढ़ने के बहाने तुम क्या करते हो।
हमारे तो पाँव वहीं जम गए कि ‘लो जी, आज तो पक्का जूते पड़ेंगे।’
हम दोनों रुक गए तो भावना आंटी ने मुझे पुकारा- ओए अवि, इधर आ!
मैं उनके पास गया- ये सब क्या कर रहे थे, शर्म नहीं आते गंदे काम करते हुये?
मैंने कहा- सॉरी आंटी!
यह बात अलग है कि मैंने कई बात भावना आंटी के नाम की भी मुट्ठ मारी थी, खूबसूरत, गोरी चिट्टी, मांसल बदन, सुंदर चेहरा, दो बच्चों की माँ, मगर फिर भी बहुत सेक्सी लगती थी मुझे।
मगर अब मैं अपनी उसी सुंदर आंटी के सामने सर झुकाये खड़ा था।
मेरी सॉरी को उन्होंने अनसुना कर दिया, और बोली- सॉरी की बात नहीं है, ये जो तुम कर रहे हो, ये गलत है, इससे जिस्म में कमजोरी आ जाती है, कल को शादी होगी तो बीवी को क्या मुँह दिखाओगे?
हम दोनों चुप, क्या जवाब देते।
वो फिर बोली- इधर आओ, मैं तुम्हें समझाती हूँ, तू भी आ!
कह कर उसने हम दोनों को अपनी छत पे बुला लिया, छोटी सी तो दीवार थी, हम दोनों शर्मिंदा से दोनों दीवार फांद के आंटी की छत पर चले गए।
आंटी आगे आगे चल पड़ी और हम दोनों डरे डरे से उसके पीछे।
गहरे मैरून रंग की नाइटी में आंटी अपने बड़े बड़े चूतड़ मटकाती जा रही थी।
बरसाती में पहुँच कर आंटी एक कुर्सी पर बैठ गई।
बेशक आंटी ने अपनी नाइटी के ऊपर से स्वेटर पहन रखा था, मगर स्वेटर के आगे से सारे बटन खुले थे, जिस वजह से यह साफ पता चल रहा था कि आंटी ने नाइटी के नीचे से कुछ नहीं पहना था।
बैठते ही आंटी ने पूछा- कब से चल रहा है ये सब?
मैंने कहा- करीब साल भर हो गया।
‘तो पिछले एक साल से तुम लोग हाथ से कर रहे हो?’ आंटी ने पूछा।
हम दोनों ने हामें सर हिलाया।
‘और कभी यह सोचा इसका कितना नुकसान होता है, अभी सारे पटाखे चला दोगे तो दिवाली पे क्या करोगे, बोलो?’ आंटी ने पूछा।
हम दोनों क्या बोलते, दोनों चुप!
आंटी फिर बोली- और अगर तुम लोगों के घर यह पता चले कि तुम दोनों पढ़ने के बहाने इकट्ठे हो कर मुट्ठबाजी करते हो तो?
आंटी के मुँह से यक शब्द ‘मुट्ठबाजी’ बड़ा अजीब सा लगा, मतलब आंटी को भी मुट्ठ मारने के बारे में सब पता है।
‘देखो तुम दोनों नादान हो, तुम्हें अभी अच्छे बुरे की समझ नहीं है, अगर इतनी ही आग लगी थी, तो किसी को ढूंढ लेते, किसी से मिल लेते, यूं हाथ से करने की क्या ज़रूरत है।” आंटी ने समझाया।
दरअसल आंटी ने अपना पत्ता फेंका था, मगर अनुभवहीन होने के कारण हमें पता ही नहीं था कि आंटी क्या कह रही थी।
रिंकू बोला- आंटी, किस को पूछते, ऐसे कैसे कोई हमें करने देती, और न ही हमारे पास इतने पैसे होते हैं कि किसी को भाड़े पे ला सकें।
“अरे वाह, मतलब अभी मूंछें ठीक से फूटी नहीं और भाड़े वाली का भी पता है जनाब को?’ आंटी ने टोंट मारा।
हम दोनों फिर चुप।
जब आंटी ने देखा कि दोनों नौसिखिये हैं, तो वो बोली- देखो अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ।
रिंकू बोला- आंटी एक बार हमने एक लड़की से बात की थी, और वो हम दोनों के साथ मान भी गई थी, मगर दिक्कत यह थी कि हमारे पास को जगह नहीं थी।
आंटी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और बोली- तू दिखता ही है या सच में है भी?
मैं समझ गया कि आंटी ने बिना कहे रिंकू को चूतिया बता दिया है।
मैंने थोड़ा सा स्थिति को संभालने के लिए कहा- आंटी, आप इसकी बात पर मत जाइए, देखिये, इस उम्र में के लड़कों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन है, हमें तो सब हजम है।
मैंने कह तो दिया, पर डर भी लगा कि अगर आंटी मेरी बात समझ गई कि मैंने उसको ही चोदने की प्रोपोज़ल रख दी है, तो जूते भी पड़ सकते हैं।
आंटी ने मुझे भी बड़े ध्यान से देखा और बोली- मतलब क्या है तुम्हारा?
अब फिर मेरी फट गई, मगर फिर थोड़ा संभाल कर, थोड़ी हिम्मत करके मैं बोला- आंटी मेरे कहने का मतलब यह है कि हमें तो पहली बार यह तजुरबा करके देखना है, चाहे कोई भी लड़की या औरत हो, हमारा तो उदघाटन होना है, बस हमारा उदघाटनी मैच खेलवा दे कोई!
मैंने कहा तो आंटी मुस्कुराई और बोली- किसी से भी कर लेगा, चाहे कोई भी हो?
मैंने पूरी स्माइल देकर कहा- हाँजी, कोई भी हो, बस औरत हो।
आंटी ने अपनी ठुड्डी पर हाथ रख कर कुछ सोचा और बोली- चल पहले अपना औज़ार तो दिखा!
मतलब मेरा चलाया तीर आंटी के लगा, या आंटी का चलाया तीर मेरे लगा, मगर बात दोनों की बन गई।
मैंने कहा- ये तो मरा पड़ा है।
आंटी बोली- निकाल तो, मरे हुये तो ज़िंदा भी हो जाते हैं।
मैंने अपनी पैंट खोली और नीचे खिसका दी, आंटी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास खींचा और मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लिया।
उसके बाद रिंकू को भी पास बुलाया और उसका लंड भी अपने दूसरे हाथ में पकड़ लिया और लगी रगड़ने…
उसके हाथ लगने की देर थी कि हम दोनों के लंड टनाटन तन गए।
‘अरे वाह, बहुत जोश है तुममें तो, बड़ी जल्दी तन गए दोनों!’ आंटी ने बड़े प्यार से कहा और मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और लगी चूसने।
सच में जन्नत का मज़ा आ गया, जिस औरत को सोच कर मैं मुट्ठ मारा करता था, वो मेरा लंड चूस रही है।
मैंने भी थोड़ी हिममत दिखाई और आंटी की नाइटी के ऊपर से ही उसके गोल मटोल बोबे को धीरे से पकड़ के देखा।
आंटी ने मेरा लंड अपने मुँह से निकाला और बोली- अरे अच्छी तरह दबा ले!
कह कर आंटी उठी और उसने अपनी नाइटी उतार दी।
एकदम से एक साढ़े पाँच फुट की गदराए बदन की औरत हमारे सामने साक्षात नंगी हो गई।
नाइटी उतार के आंटी फिर से नीचे बैठ गई और इस बार उसने रिंकू का लंड अपने मुँह में लिया और लगी चूसने।
हम दोनों उसकी पीठ, गालों और बोबों को सहला कर मज़े ले रहे थे। हमने तो सोचा भी नहीं था कि ये ऐसे और इतनी आसानी से मान जाएगी।
थोड़ा बहुत दबाने सहलाने के बाद हमने भी अपने अपने कपड़े उतार दिये।
आंटी ने हम दोनों के लंड छोड़े और एक दरी सी उठा कर नीचे फर्श पर बिछा दी और खुद उस पर लेट गई- आओ, पहले कौन आता है! आंटी बोली।
हम दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे, तो रिंकू ने मुझे ही इशारा किया।
मैं आंटी के पास गया तो आंटी ने अपनी टाँगें फैला दी।
हल्के बालों वाली, गोरी चूत, पहले बार इतने पास से देखी।
मैंने अपने हाथ की उँगलियों से आंटी की चूत को खोल कर देखा, अंदर से गुलाबी रंग की चूत देख कर मन में अपार खुशी हुई।
आंटी ने मेरी तरफ देखा और पूछा- चाटेगा क्या?
मैंने कभी चूत चाटी तो नहीं थी, मगर ब्लू फिल्मों में बहुत चाटते देखा था और मन में इच्छा भी थी कि कभी मौका मिला तो चूत चाट कर ज़रूर देखूँगा, मैंने कहा- हाँ दिल तो है चाटने का!
‘तो सोचता क्या है…’ कह कर आंटी ने मेरा सर पकड़ा और अपनी चूत से मेरा मुँह लगा दिया।
मैंने पहले ऊपर से आंटी की चू’त तो चूमा और फिर धीरे धीरे से अपनी जीभ से चाटने लगा।
आंटी ने मेरा सर अपने दोनों हाथों में पकड़ रखा था और मेरे बालों को सहला रही थी। जब मैंने उसकी चूत के अंदर अपनी जीभ फेरी तो आंटी ने अपनी मोटी गुदाज़ जांघों में मेरा सर को जकड़ लिया और उसके मुँह से ‘उफ़्फ़’ करके आवाज़ आई।
वो ‘ऊह… आह… उफ़्फ़… सी सी…’ करती रही और मैं चाटता रहा।
आंटी ने रिंकू का लंड पकड़ा और अपने मुँह में ले लिया और लगी चूसने।
थोड़ी देर की चटाई के बाद आंटी बोली- बस अब और मत चाट, अब अंदर डाल दे और पेल मुझे!
मैंने वैसे ही किया, अपना लंड आंटी की चूत पर रखा और अंदर डाल दिया और धीरे धीरे चोदने लगा।
एक बार तो आँख बंद कर के भगवान को भी धन्यवाद दिया ‘हे भगवान, बड़ा शुक्र है तेरा, जो आज मैं एक लड़के से एक मर्द बन रहा हूँ।’
सच पहली चुदाई में जो मन फीलिंग आती है उसका कोई जवाब नहीं।
चलो धीरे धीरे से तेज़ तेज़ शुरू हो गया।
आंटी की चूत भी पानी छोड़ रही थी, फ़चफ़च की आवाज़ आ रही थी और साथ में आंटी की ‘ऊँ… ऊँ…’ क्योंकि मुँह तो रिंकू का लंड था सो और कोई आवाज़ तो वो निकाल नहीं सकती थी।
जोरदार चुदाई में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, और बस इसी जोश में मैं झड़ गया, मेरे माल की पिचकारियाँ आंटी की चूत में ही गिरी। जब मैं झड़ गया तो आंटी बोली- अरे क्या हुआ, बड़ी जल्दी झड़ गया, मेरा तो अभी हुआ नहीं, चल कोई बात नहीं पहली बार है न,
चल रे तू आ, और आराम से करना।
मैं पीछे हट गया और रिंकू ने अपना लंड आंटी की चूत में डाल कर चुदाई शुरू कर दी।
मैं पहले तो थोड़ा असमंजस में था, मगर फिर भी मैंने हिम्मत करके अपना लंड आंटी के मुँह के पास किया।
‘क्यों, चुसवाना है क्या, मगर एक शर्त है, अगर ये भी जल्दी झड़ गया, तो तुझे फिर से आना पड़ेगा, मेरी तसल्ली होनी ज़रूरी है।’ आंटी बोली।
मैंने हामी भर दी, आंटी मेरा लंड चूसने लगी। सच में उसको लंड चूसने का हुनर आता था, 2 मिनट में ही मेरा लंड फिर से तन गया। मगर मेरा लंड तना ही था कि रिंकू ने भी माल की पिचकारी मार दी।
‘अरे यार, क्या है, 2 मिंट तो रुका करो, क्या लौंडे यार आजकल के, 2 मिनट भी नहीं रोक पाते, चल यार अब तू ही आ जा!
मैंने फिर से आंटी की चूत में अपना डाला, मगर अंदर तो पहले ही हम दोनों के माल से भरा पड़ा था।
मैंने आंटी को कहा- अंदर तो भरा पड़ा है!
आंटी ने कहीं से एक कपड़ा उठाया और अपनी सारी चूत और आस पास को साफ किया।
‘ले अब डाल के देख…’ आंटी बोली।
मैंने फिर से डाला, इस बार थोड़ा टाईट गया, मगर 2 मिनट की चुदाई में ही आंटी ने पानी छोड़ छोड़ कर चूत को लबालब कर दिया। इस बार मुझे काफी टाइम लगा, मैं चाहता था कि मेरा माल न छूटे, और सच में मेरा माल छूटा भी नहीं।
मौसम अच्छा था, वरना पसीना पसीना हो जाता।
आंटी भी पूरी मस्त हो रही थी, वो भी मुझे शाबाशी दे रही थी।
और फिर आंटी का जोश बढ़ने लगा, उसकी तड़प बढ़ लगी, हमें भी पता चल गया कि आंटी का होने वाला है।
और फिर आंटी झड़ी, और पूरे ज़ोर से झड़ी।
मुझे खूब गालियाँ दी ‘साले कुत्ते, मार दिया तूने, हरमजादे, मर गई, हाये… ऊह.. आह…’ कहते आंटी शांत हो कर लेट गई।
मैं लगा रहा, अब सिर्फ आंटी लेटी हुई थी, रिंकू उसके बोबे चूस रहा था, उसका लंड आंटी के हाथ में था, जो फिर से पूरा तना हुआ था।
रिंकू बोला- जल्दी कर यार, मुझे एक बार और करना है।
मैंने अपनी स्पीड बढ़ाई और आंटी के चूत को दोबारा अपने पानी से भरा, मगर आंटी ने कोई जोश नहीं दिखाया, क्योंकि उसका काम तो हो चुका था।
मेरे उतरते ही ही रिंकू आंटी के ऊपर चढ़ गया और लगा उसकी चूत बजाने।
थोड़ी देर बार एक बार फिर से आंटी तड़पी, मगर बोली कुछ नहीं, सिर्फ ‘ऊह… आह…’ करके फिर से शांत हो गई।
उसके थोड़ी देर बार रिंकू ने भी अपना माल आंटी की प्यासी चूत को पिला दिया।
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कुछ देर आराम करने के बाद मैंने आंटी से पूछा- आंटी क्या आगे भी आप हमें ऐसे ही अपना प्यार देती रहोगी?
वो बोली- क्यों नहीं, जब जिसका दिल करे आ जाना, मगर थोड़ा दम बढ़ाओ यार, इतने थोड़े से टाइम से मज़ा नहीं आता, एक जना एक बार तो मेरा पानी गिराओ, फिर मज़ा है, दो दो ट्रिप तुम लगाओ, चार ट्रिप मैं लगाऊँ।
मैंने कहा- पर आंटी आपको ये क्या सूझी हम लोगों से सेक्स करने की?
‘अरे यार, मैंने तो जब तुमको देखा तो तुम दोनों के लंड देख कर मैंने सोचा कि अगर ये कुँवारे लंड मुझे मिल जायें तो मज़ा आ जाए, बस मैंने तुम पर ट्राई मारी और बात बन गई, वैसे भी मैं बहुत दिनों से प्यासी थी, अब तुम्हारे अंकल की तो उम्र हो गई, उनके बस की रही नहीं, तो फिर तुम ही सही! कह कर आंटी हंसी।
और हम दोनों भी क्योंकि एक बहुत ही तजुर्बेकार औरत हमें मिल गई थी, जो हमें सम्पूर्ण मर्द बनाने के लिए पर्फेक्ट थी।
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