कमाल की हसीना हूँ मैं-18

कमाल की हसीना हूँ मैं-18

उन्होंने मुझे बेडरूम में लाकर बिस्तर पर लिटा दिया। फिर वो मेरी बगल में लेट गये और मेरे चेहरे को कुछ देर तक निहारते रहे। फिर मेरे होंठों पर अपनी उँगली फ़िराते हुए बोले, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि तुम जैसी कोई हसीना कभी मेरी बाँहों में आयेगी।”

“क्यों? भाभी तो मुझसे भी सुंदर हैं !” मैंने उनसे कहा।

“होगी.. लेकिन तुममें ऐसा कुछ है जिसके लिये मैं आज तक तरस रहा था… तुम सबसे ही अलग हो।”

“अब और हिम्मत नहीं है लेकिन मन नहीं भरा, एक बार और मुझे वो सब दे दो। अपने दूध से मुझे भिगो दो।” मैंने उनके कान को अपने दाँतों से काटते हुए कहा।

“अब इसका खड़ा होना मुश्किल है। आज शाम से काफी काम करना पड़ा ना, इसलिये बेचारा मुरझा गया है।” फिरोज़ ने अपने लंड की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

“अरे ! मैं किस लिये हूँ। अभी देखती हूँ कैसे यह नहीं तनता। अभी इसे खड़ा करती हूँ !” कहकर मैं उनके लंड को सहलाने लगी।

कुछ देर तक सहलाने पर भी कोई खास असर नहीं पड़ा तो मैंने उनको चित्त करके लिटा कर उनके लंड को अपने दोनों मम्मों के बीच लेकर उसे अपने मम्मों से सहलाने लगी। उनके लंड में हल्का सा तनाव आ रहा था लेकिन वो कुछ ही देर में वापस चला जाता था।

फिर मैंने उनके निप्पल को दाँतों से धीरे-धीरे काटना शुरू किया तो उनके जिस्म में उत्तेजना बढ़ने लगी लेकिन अभी तक लंड अपनी पूरी जवानी पर नहीं आया था।

आखिरकार मैं उनके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। अपनी जीभ निकाल कर उनके लंड को और उनकी गेंदों को चाटने लगी। बीच-बीच में हल्के-हल्के से उनके लंड पर अपने दाँत भी गड़ा देती।

मेरे जेठ जी लंड अब तन गया था। मैं उसे चाटने के साथ-साथ अपने हाथों से भी सहला रही थी। इस बार उनकी टाँगों को मोड़ कर फ़ैलाने की बारी मेरी थी। मैंने उनकी टाँगों को फैला दिया और उनकी दोनों टाँगों के बीच उनकी गेंदों के नीचे अपनी जीभ फिराने लगी। दोनों गेंदों के नीचे जहाँ दोनों टाँगों का जोड़ होता है वो हिस्सा बहुत ही सेंसटिव था, वहाँ जीभ फ़िराते ही उनका लंड एकदम सख्त हो गया।

मैंने अपने सर को उठाकर इतराते हुए उनकी आँखों में झाँका और मुस्कुरा दी, “देखा? जीत किसकी हुई। अरे औरतों का बस चले तो मुर्दों के लंड भी खड़े कर के दिखा दें।”

“मान गये तुमको… तुम तो वियाग्रा से भी ज्यादा पॉवरफुल हो !” फिरोज़ भाईजान ने कहा।

“अब तुम चुपचाप पड़े रहो… अब तुम्हें मैं चोदूँगी। मेरे इस पागल आशिक को खुश करने की बारी अब मेरी है।”

मैं अपनी जुबान से निकल रहे लफ्जों पर खुद हैरान रह गई। पहली बार इस तरह के शब्द मैंने किसी गैर-मर्द से कहे थे।

“तुम्हारे इस गधे जैसे लंड का आज मैं सारा रस निचोड़ लूँगी। भाभी को अब अगले एक हफ़्ते तक बगैर रस के ही काम चलाना पड़ेगा।” कहते हुए मैं उनके ऊपर चढ़ गई और अपने हाथों से उनके लंड को अपनी चूत पर सेट करके अपना बोझ उनके लंड पर डाल दिया। उनका लंड वापस मेरी चूत की दीवारों को रगड़ता हुआ अंदर धंस गया।

“उफ़्फ़ऽऽऽ हर बार मुझे लगता है कि तुम्हारा लंड गले तक घुस जायेगा। भाभी कैसे झेलती होंगी आपको?” मेरे मुँह से एक हल्की सी दर्द भरी आवाज निकली।

ऐसा लग रहा था कि शायद उनके लंड ने ठोक-ठोक कर अंदर की चमड़ी उधेड़ दी हो। मेरी चूत इस बार तो दर्द से फ़टी जा रही थी। मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों से सख्ती से दबा कर किसी भी तरह की आवाज को मुँह से निकलने से रोका।

“इसे झेल नहीं पाती है… तभी शायद इधर-उधर मुँह मारती फिरती है।” उन्होंने कहा।

“फिर तो उन्हें वो मज़ा मिल नहीं पाता होगा जो इस वक्त मुझे आ रहा है।”मैंने उनके सीने पर उगे बालों को अपनी मुठ्ठी में भर कर खींचा तो वो भी उफ़्फ़ कर उठे।

“क्या कर रही हो? दर्द हो रहा है!”

मैंने हँसते हुए कहा, “कुछ दर्द तो तुम्हें भी होना चाहिये ना।”

मैं अब जोर-जोर से उनके लंड पर अपनी कमर को ऊपर नीचे करने लगी। वो मेरे दोनों मम्मों को अपने हाथ में लेकर बुरी तरह मसल रहे थे। मैं अपने दोनों घुटनों को मोड़ कर उनके लंड पर बैठी हुई थी।

इस तरह पता नहीं कब तक हम दोनों की चुदाई चलती रही। हम दोनों ने आँखें बंद कर रखी थी और बस एक दूसरे के साथ चुदाई का मज़ा ले रहे थे। मैं उनके ऊपर झुक कर अपने लंबे बालों को उनके सीने पर फ़िरा रही थी। मैंने अपनी चूत के मसल्स से उनके लंड को बुरी तरह जकड़ रखा था।

कुछ देर बाद मेरे जिस्म में वापस सिहरन होने लगी तो मैं समझ गई कि मेरा निकलने वाला है, मैंने फिरोज़ भाईजान के ऊपर लेट कर अपने दाँत उनके सीने में गड़ा दिये। मेरे नाखून उनके कंधों में धंसे हुए थे और मुँह खुल गया था।

मुँह से एक इत्मीनान की “आआऽऽऽहहऽऽऽऽ” निकली और मैं एक बार फिर खल्लास होकर उनके ऊपर पसर गई।

उनका अभी तक रस निकला नहीं था, इसलिये अभी वो मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे लेकिन मैं थक कर चूर हो गई थी। इस एक रात में ना जाने कितनी बार मैंने रस की बौछार उनके लंड पर की थी। जिस्म इतना थक चुका था कि अब हाथ पैर हिलाने में भी जोर आ रहा था लेकिन मन था कि मान ही नहीं रहा था।

उन्होंने मुझे अपने ऊपर से उठाया और बिस्तर पर चौपाया बना कर झुका दिया। मेरे हाथ मुड़ गये और मेरा मुँह तकिये में धंस गया। उन्होंने मेरी कमर को बिस्तर के किनारे करके घुमाया और बिस्तर के नीचे खड़े हो गये। इस हालत में मैं अपनी कमर उनकी तरफ़ उठा कर बिस्तर में धंसी हुई थी।

वो बिस्तर से उतर कर नीचे खड़े हो गये और पीछे से मेरी चूत पर अपने लंड को सटा कर धक्का मार दिया। मेरी चूत एक बार फिर दर्द से काँप गई।

मेरा मुँह तकिये में धंसा होने के कारण सिर्फ कुछ ‘गूँ-गूँ’ जैसी आवाज निकली और मेरी चूत पर उनका वार चालू हो गया। इस तरह मैं अपने जिस्म को उठाये हुए नहीं रख पा रही थी। नशे में मेरा जिस्म उनके धक्कों से बार-बार इधर उधर लुढ़कने लगता और इसलिये उन्हें अपने हाथों से चूत को सामने की ओर रखना पड़ रहा था।

इस तरह जब बार-बार परेशानी हुई तो उन्होंने मुझे बिस्तर से नीचे उतार कर पहले बिस्तर के कोने में कुशन रखा और फिर मुझे घुटनों के बल झुका दिया। अब मेरी टाँगें ज़मीन पर घुटनों के बल टिकी हुई थीं और कमर के ऊपर का जिस्म कुशन के ऊपर से होता हुआ बिस्तर पर पसरा हुआ था। कुशन होने के कारण मेरे नितंब ऊपर की ओर उठ गये थे। ये पोजीशन मेरे लिये ज्यादा सही थी।

मेरे किसी भी अंग पर अब ज्यादा जोर नहीं पड़ रहा था। इस हालत में उन्होंने बिस्तर के ऊपर अपने हाथ रख कर अपने लंड को वापस मेरी चूत में ठोक दिया। कुछ देर तक इस तरह ठोकने के बाद उनके लंड से रस झड़ने लगा।

उन्होंने मेरी चूत में से अपना लंड निकाल कर मुझे सीधा किया और अपने वीर्य की धार मेरे चेहरे पर और मेरे बालों पर छोड़ दी। इससे पहले कि मैं अपना मुँह खोलती, मैं उनके वीर्य से भीग चुकी थी। इस बार झड़ने में उन्हें बहुत टाईम लग गया।

मैं थकान और नशे से एकदम निढाल हो चुकी थी। मुझमें उठकर बाथरूम में जाकर अपने को साफ़ करने की भी हिम्मत नहीं थी। मैं उसी हालत में आँखें बंद किये पड़ी रही। मेरा आधा जिस्म बिस्तर पर था और आधा नीचे। ऐसी अजीबोगरीब हालत में भी मैं गहरी नींद में डूब गई। पता ही नहीं चला कब फिरोज़ भाईजान ने मुझे सीधा करके बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे नंगे जिस्म से लिपट कर खुद भी सो गये।

बीच में एक बार जोर की पेशाब आने की वजह से नींद खुली तो मैंने पाया कि फिरोज़ भाईजान मेरे एक मम्मे पर सिर रखे सो रहे थे। मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरा सिर नशे में घूम रहा था और पूरा जिस्म दर्द से टूट रहा था।

इसलिये मैं दर्द से कराह उठी। मुझसे उठा नहीं गया तो मैंने फिरोज़ भाईजान को उठाया।

“मुझे सहारा देकर बाथरूम तक ले चलो प्लीज़ !” मैंने लड़खड़ाती ज़ुबान में उनसे कहा।

उन्होंने उठ कर मुझे सहारा दिया तो हाई-हील सैंडलों में मैं लड़खड़ाते कदमों से उनके कंधे पर सारा बोझ डालते हुए बाथरूम में गई। वो मुझे अंदर छोड़ कर वहीं खड़े हो गये।

“आप बाहर इंतज़ार कीजिये… मैं बुला लूँगी”, मैंने कहा।

“अरे कोई बात नहीं… मैं यहीं खड़ा रहता हूँ… अगर तुम गिर गईं तो?”

“छी! इस तरह आपके सामने इस हालत में मैं कैसे पेशाब कर सकती हूँ?”

“तो इसमें शर्माने की क्या बात है? हम दोनों में तो सब कुछ हो गया है… अब शर्म किस बात की?” उन्होंने बाथरूम का दरवाजा भीतर से बंद करते हुए कहा।

मैंने शर्म के मारे अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरा चेहरा शर्म से लाल हो रहा था। लेकिन मैं इस हालत में अपने पेशाब को रोकने में नाकाम थी और नशे में मुझसे खड़ा भी नहीं रहा जा रहा था। इसलिये मैं कमोड की सीट पर इसी हालत में बैठ गई।

जब मैं फ्री हुई तो वो वापस मुझे सहारा देकर बिस्तर तक लाये। मैं वापस उनकी बाँहों में दुबक कर गहरी नींद में सो गई।

कहानी जारी रहेगी।

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