एक अनजान लेकिन प्यारा रिश्ता
सभी लंड धारियों को मेरा लंडवत नमस्कार और चूत की मल्लिकाओं के चूत में उंगली करते हुए नमस्कार!
दोस्तो, आप लोगों ने मेरी पिछली कहानी
एक नारी होने की व्यथा कथा https://www.antarvasnax.com/indian-wife/nari-hone-ki-vytha-katha-part-1/
पढ़ी और उसे सराहा भी जिसके लिए मैं आप लोगों का सहृदय आभारी हूँ। मुझे ढेरों ईमेल मिले जिसके लिए मैं आप सभी लोगों का सहृदय धन्यवाद करना चाहता हूँ।
काफी लोगों ने एक बात पूछी की क्या कहानी इसके आगे भी है या यही इसका अंत है? तो कुछ लोगों ने पूछा कि क्या यह सच्ची कहानी है या केवल कल्पना मात्र?
मित्रो, कहानी उसके आगे भी है और यह कहानी मेरी सच्ची कहानी है जिसमें कुछ शब्दों का हेर फेर है और पात्रों का नाम काल्पनिक है बस।
मैं एक लेखक हूँ और आप सभी को यथार्थ से परिचित करना मेरा एक मात्र उद्देश्य है और एक लेखक को क्या चाहिए, उसके प्रशंसक और उनका ढेर सारा प्यार… जो मुझे आप लोगों से भरपूर मिला है।
दोस्तो, मैं विंश शंडिल्य अपनी पिछली कहानी का अगला भाग लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हूँ और जैसा आपने पिछली कहानी में पढ़ा कि कैसे एक नारी माधवी को कई बुरी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और अंततः उसे एक बुजुर्ग महिला ने अपने घर में शरण दी और उसे अपने अपनी बेटी के जैसा मान सम्मान दिया।
रात में जो हमारी बातें हुई और माधवी ने जो भी मुझे अपने बारे में बताया, फिर सुबह मैंने उसको उसके घर पर छोड़ा और अपने घर आ गया.
घर आकर सोचने लगा कि हम आज 21वीं सदी में जी रहे हैं और क्या सच में एक नारी का सम्मान आज भी उसे प्राप्त नहीं है। जो लड़की या औरत हिम्मत कर जाती है वो अपने सपनों की दुनिया बना लेती है लेकिन आज भी 70 प्रतिशत से ज़्यादा महिलाएं हैं जो आज भी किसी न किसी की हवस का शिकार होती हैं और हम औरतों को ही गलत कहते हैं। कभी कभी तो आत्मग्लानि होती है ऐसे परिवेश का हिस्सा बनकर जहाँ एक नारी सम्मानित होकर भी सम्मानित नहीं। क्या हम एक पूर्ण विकसित स्वदेश का यही सपना अपनी आँखों में सजा रहे हैं। जब तक हम नारी का सम्मान करना नहीं शुरू करेंगे, सच मानिए हम अपना और अपने रिश्तों का भी कभी सम्मान नहीं कर पाएंगे।
किसी भी नारी का या औरत का मन इतना निश्छल होता है कि उसके हृदय को उसके बिना कहे ही समझ सकते हैं, ऐसे जैसे बहते पानी के आर पार सारी वस्तुएँ हम अपनी आँखों पूर्ण रूपेण देख सकते हैं। हम कभी भी कोई भी सही या गलत बात कहें या किसी भी नारी से कहें फिर चाहे वो माँ हो, बीवी हो, बहन हो, बेटी हो, दोस्त हो, वो बिना किसी किन्तु परंतु के उस बात को बड़ी ही सहजता से स्वीकार कर लेती है, जैसे हमने जो कहा है वही एक मात्र सत्य है और बाकी सब मिथ्या और भ्रम।
फिर हम पुरुष उनको दुख देने में कभी पीछे नहीं रहते…
क्यों?
और नारी की निश्छलता को अपना हथियार बना कर हम लालची लोग उसी का शिकार करते हैं और यह भूल जाते हैं कि हमारा यह छल, खेल या वासना किसी की इहलीला भी समाप्त कर सकता है या किसी का जीवन भी बर्बाद कर सकता है।
मैं इसी ऊहापोह में था और यही सारी बातें सोच रहा था कि ना जाने कब मुझे निद्रा ने अपने अंदर समाहित कर लिया और मेरी आँख शाम को 6 बजे खुली, तब जब किसी ने मेरे फोन पर फोन किया।
नंबर पहचान का नहीं था क्योंकि कोई नाम लिखा हुआ नहीं आ रहा था.
मैंने फोन उठाया- हैलो?
उधर से आवाज़ आई- उठ गए आप?
मैं तो सोच में पड़ गया, यह तो माधवी की आवाज़ थी।
मैंने कहा- जी, लेकिन आपको कैसे पता कि मैं सो रहा था?
माधवी- मुझे पता है क्योंकि मैंने आपको 4-5 बार फोन किया लेकिन आपने फोन नहीं उठाया तो मैं समझ गई कि आपका ऑफिस आज बंद है और आप रात भर सोये नहीं हैं तो अभी आप सो रहे होंगे इसलिए मैंने अभी फिर से आपको फोन किया।
मैंने कहा- जी वो बस आँख लग गई थी। आप बताइये कैसे याद किया?
माधवी- माफ कीजिएगा, कल रात आप मेरे कारण सो नहीं पाये।
मैंने कहा- अरे नहीं, इसमे माफी की क्या बात है।
माधवी- फिर भी, मैंने बस ऐसे ही फोन कर लिया, आपसे बात करने का मन कर रहा था तो!
मैंने कहा- ठीक है। अगर कोई काम है तो बताइये?
माधवी- अरे नहीं कोई काम नहीं है। मैं दिन भर बैठी आपके बारे में ही सोच रही थी कि पहली बार कोई मिला जिसके साथ मैंने पूरी रात बिताई और उसने मुझे छूआ तक नहीं और खुद से बढ़ कर मुझे सम्मान दिया। आजकल ऐसा होता कहाँ है, लेकिन आपने मुझे गलत साबित कर दिया कि सभी पुरुष एक जैसे ही होते हैं और कल रात आपसे मिलने के बाद पता चला कि कुछ गंदे लोगों के कारण सभी बदनाम हो जाते हैं। मैं कल पूरी रात आप के साथ थी और अगर आप चाहते तो पिछले और लोगों कि तरह आप भी मेरा फायदा उठा सकते थे लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया और मुझे सही सलामत मेरे घर पर भी पहुंचाया। मैं आपका ये एहसान कैसे उतारूँगी।
मैंने कहा- इसमें अहसान की क्या बात है, यह तो मेरा उत्तरदायित्व था कि अगर आपको मेरी सहायता की आवश्यकता है तो मैं आपकी सहायता में तत्पर रहूँ। और रही बात रात की… तो मुझे एक स्त्री का सम्मान करना आता है, मैं शरीर को नहीं मन को जीतना चाहता हूँ। कल रात मैंने आपकी सहायता की, हो सकता है कल जब मुझे किसी की सहायता चाहिए होगी तो कोई मेरी भी सहायता के लिए तत्पर होगा। बस इतना सा मेरा स्वार्थ था और कुछ नहीं। बात रही शरीर की या हवस की तो मैं शारीरिक सम्बन्धों के विपरीत नहीं हूँ। मैं तो बस उसके खिलाफ हूँ जो बिना मन का होता है, अनुचित होता है या किसी दबाव में होता है। अगर बात शारीरिक सम्बन्धों की है तो फिर दोनों की सहमति आवश्यक है। अन्यथा ये सब गलत है।
माधवी- आप सच में बहुत अच्छे हैं। जैसे आपका मन है, वैसे ही आप भी हैं।
मैंने कहा- अब आप मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही हैं।
माधवी- अरे नहीं, मैं बिल्कुल सच बोल रही हूँ।
कुछ और देर तक बातें करने के बाद हमने अपनी वाणी को विराम दिया और अपनी अपनी दिनचर्या में लग गए।
शाम का समय था तो मैं उठा और अपने लिए एक प्याली चाय बनाई, पीने लगा और माधवी के बारे में सोचने लगा।
तभी कुछ देर बाद फिर से माधवी का फोन आया। मैंने फोन उठाया और पूछा जी बताइये अब क्या हुआ?
माधवी- कुछ नहीं बस ऐसे ही पता नहीं क्यों आपसे बहुत बात करने का मन कर रहा है आज तो मैं फोन कर ले रही हूँ। कहीं मैं आप को परेशान तो नहीं कर रही हूँ?
मैंने कहा- जी बिल्कुल नहीं, आप मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं कर रही हैं। और मैं आपकी मनःस्थिति समझ सकता हूँ कि जब कोई आपको समझने वाला मिले तो मन कि क्या दशा होती है ये मुझे भली भांति अवगत है।
माधवी- जी आपने बिल्कुल सही कहा। मेरे अब तक के जीवन काल में मेरे पिता के बाद आप दूसरे ऐसे पुरुष हैं जिन्होंने मुझे समझा है।
उसके बाद करीब 2 मिनट तक हम दोनों ही शांत थे, मुझे तो ऐसा लग रहा था कि मेरा शब्दकोश ही खाली हो गया है, मैं एकदम निरुत्तर फोन को कान पर लगाए बैठा था और शायद माधवी की भी यही स्थिति थी तभी उसके मुख:विवर से कोई भी शब्द स्फुटित नहीं हो रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो हमारी हृदय गति रुक सी गई है और हमारी मूक वार्तालाप चल रही है। ये पहली बार मेरे साथ था कि इस शांति में भी एक अलग सा क्रंदन था।
खैर कुछ क्षण पश्चात माधवी ने चुप्पी तोड़ी- चाय पी ली आपने?
मैंने कहा- जी पी रहा हूँ। और आपने?
माधवी- मैंने पी ली। बस बैठी हुई हूँ और आपसे बातें कर रही हूँ। कुछ समान लेने बाज़ार जाना है लेकिन अकेले जाने का मन नहीं कर रहा है तो सोच रही हूँ क्या करूँ?
मैंने कुछ नहीं कहा और चुप ही रहा।
माधवी- एक बात बोलूँ आप बुरा तो नहीं मानेंगे?
मैंने कहा- जी बोलिए?
माधवी- क्या आप मेरे साथ बाज़ार चलेंगे अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो?
मैंने कहा- जी मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मुझे अभी सब्जी लेने जाना है, फिर खाना भी बनाना है।
माधवी- क्यों ना हम आज खाना बाहर ही खाएं? क्या कहते हैं आप?
मैंने कहा- वो तो ठीक है! लेकिन आप की चाची जी? उनका क्या होगा?
माधवी- मैंने उनके लिए बना दिया है और वो गर्म कर के खा लेंगी और मैंने उनको बता भी दिया है कि कुछ काम से बाज़ार जा रही हूँ, थोड़े देर से आऊँगी।
मैंने कहा- ठीक है, फिर मैं आधे घंटे में आता हूँ, आप तैयार रहो और आप मुझे अपने घर के बाहर ही मिलना।
माधवी- ठीक है, मैं आपका इंतज़ार कर रही हूँ।
मैं अपनी कुर्सी से उठा और नहाकर तैयार हुआ और निकल गया उसके घर के तरफ करीब आधे घन्टे में मैं उसके घर के पास पहुंच गया।
वो अपने घर के बाहर ही मेरी प्रतीक्षा में लीन थी। पहली बार मैंने देखा था किसी स्त्री को प्रतीक्षा रत। आज वो बिल्कुल ही अलग लग रही थी, सजी धजी बहुत नहीं थी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उसने शृंगार न किया हो।
उसका शरीर न तो बहुत पतला था और न ही मोटा, मध्यम आकार का पूर्ण विकसित शरीर उसके हर अंग को बहुत ही सुंदरता से गौरवान्वित कर रहा था, उसने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उसी से मिलता हुआ उसका सैंडिल और उसकी चूड़ियाँ भी थी।
कल की अपेक्षा आज उसका व्यक्तित्व कुछ ज़्यादा ही दमक रहा था, चेहरा बिल्कुल गुलाब सा कोमल दिख रहा था, उस पर गुलाबी डिजाइनर बिंदी, कान में गुलाबी रंग के झुमके और उसके होठों पर गुलाबी रंग का लिपस्टिक, बाल खुले हुये, पूरी तरह से एक आकर्षक और मंत्रमुग्ध कर देने वाला रूप।
लेकिन कल की अपेक्षा उसमें एक बात अलग थी कि आज उसने सिंदूर लगा रखा था जो कल उसके माथे पर नहीं था।
शाम के 7:25 हो रहे थे, मैं उसके पास पहुंचा और उससे पूछा कि कहीं मुझे देर तो नहीं हो गई।
उसने मुस्कुरा कर कहा- नहीं बिल्कुल नहीं।
मैंने उसे अपनी गाड़ी पर बैठने का इशारा किया, वो आकर बैठ गई और मैंने गाड़ी बढ़ा दी।
उसके शरीर से एक बहुत ही मादक लेकिन हल्की महक आ रही थी जो किसी को भी पागल करने के लिए काफी थी। हम चुपचाप चलते रहे और करीब 20 मिनट बाद हम एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के पास पहुँच गए। मैंने अपनी गाड़ी जमा की और हम आगे को बढ़ चले।
वो बिल्कुल मेरी बराबरी में और नजदीक चल रही थी। कोई भी देखे तो हमें पति पत्नी ही समझता उस समय और शायद लोग समझ भी रहे थे।
उसका रूप वहाँ के दूधिया उजाले में ऐसा चमक रहा था जैसे अंधेरे में जुगनू चमकता है और लगभग सभी की आँखें उसी पर आकर रुक जा रही थी।
थोड़ी देर हमने कुछ समान खरीदा और ऐसे ही आस पास घूम रहे थे पर न तो वो मुझसे कुछ बोल रही थी और न ही मैं। कुछ देर बाद मैं चुप्पी तोड़ते हुये कहा- आपको कुछ खाना है?
माधवी- नहीं अभी तो नहीं, अगर आप कहें तो खा लेते हैं लेकिन मेरा मन आज मूवी देखने को कर रहा है। अगर आप कहें तो मूवी देखने चलें।
मैंने कुछ सोचा और हाँ कह दिया तो उसने कहा- रुकिए, मैं अभी टिकट लेकर आती हूँ.
मैंने उसे मना किया तो उसने कहा- आपने मेरे लिए इतना कुछ किया तो क्या मैं आपके लिए इतना नहीं कर सकती?
बहुत मना किया मैंने लेकिन वो मानी नहीं और जा कर एक मूवी की दो टिकट लेकर आई।
अभी 8:35 हो रहे थे और 8:45 की पिक्चर थी। जब तक वो टिकट लेकर आई तब तक मैंने उसके लिए जूस खरीद लिया था। वो आई तो मैंने उसको पीने के लिए दिया तो उसने कहा- इसकी क्या जरूरत थी।
खैर फिर हम जूस पीते पीते हाल में चले गए, तब तक मूवी का भी समय हो गया था। हम जाकर अपनी जगह पर बैठे, उसने सबसे पीछे की सीट बुक कराई थी।
मूवी शुरू हुई और हम सभी मूवी देखने में व्यस्त हो गए लेकिन जहाँ हम बैठे थे वहाँ ए.सी. सीधे हमारे ऊपर था तो एक तो मुझे ठंड परेशान कर रही थी और दूसरी माधवी की मादक खुशबू बार बार मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ले रही थी। मेरा ध्यान मूवी पर जा ही नहीं रहा था.
खैर कैसे भी करके हमने पूरी मूवी देखी और हम बाहर आ गए।
मैंने कहा- चलो अब खाना खा लेते हैं क्योंकि हम लेट हो रहे हैं, तुम्हें घर भी छोड़ना है।
उसने कहा- ठीक है।
हमने खाना खाया, मैंने गाड़ी निकाली और हम उसकी घर की तरफ चल दिये।
रात के 11:30 हो रहे थे, मुझे उसे भी घर छोड़ने की जल्दी थी और मुझे भी घर पहुँचने की!
करीब 15 मिनट बाद हम उसके घर पहुँच गए, उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा और अपने घर में चली गई, फिर मैं अपने घर के लिए निकाल गया।
कुछ देर में मैं भी घर पहुँच गया, गाड़ी खड़ी करके अपने ड्राईंग रूम में जाकर बैठ गया और अपना फोन देखा जो काफी देर से बंद था।
उसमें वाट्स ऐप पर बहुत सारे संदेश आये हुए थे। मैंने उन्हे देखना शुरू किया तो उनमें से कई संदेश तो माधवी के थे और कुछ एक दोस्तों के, एक ऑफिस से भी था कि कल मुझे ऑफिस नहीं जाना है क्योंकि इस सप्ताह मेरी जगह किसी और को छुट्टी लेनी थी और मुझे उसकी जगह पर काम करना था। उसने अपनी छुट्टी रद्द कर दी थी.
मैंने माधवी के संदेश खोले। पहले तो उसमें ढेर सारी फोटो थी जिसमें उसने अपनी आज की फोटो भेजी थी और ना जाने कब उसने मेरी और अपनी भी तस्वीर ले ली थी। लेकिन तस्वीरें सारी बहुत अच्छी थीं।
अभी मैं देख ही रहा था कि उसका दोबारा संदेश आया- घर पहुँच गए?
मैं- हाँ।
माधवी- क्या कर रहे हो?
मैं- कुछ नहीं, जो संदेश आए हैं उन्हें ही पढ़ रहा हूँ। लेकिन एक बात बताओ तुमने हमारी फोटो कब ली?
माधवी- जब हम मूवी देखने जा रहे थे तभी ली शायद आपने ध्यान नहीं दिया।
मैं- हो सकता है।
माधवी- आज मुझे तो बहुत मज़ा आया। कई साल बाद मुझे मेरे होने का एहसास हुआ। नहीं तो अब तक तो ऐसा लग रहा था कि मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। बस काम, घर, ऑफिस, खाना और कुछ नहीं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
मैं- इसमें धन्यवाद की क्या बात है। मुझे भी आज बहुत दिन बाद अच्छा लगा।
माधवी- आप कल क्या कर रहे हैं?
मैं- मतलब?
माधवी- मतलब कल आपका ऑफिस है?
मैं- क्यों? कोई काम है क्या?
माधवी- नहीं, बस ऐसे ही पूछ लिया।
मैं- नहीं, कल मेरा ऑफिस नहीं है। और अभी कल का कोई प्लान भी नहीं है।
माधवी- ठीक है, चलिये कल बात करते हैं। शुभ रात्रि!
मैं- शुभ रात्रि!
मैंने बात खत्म करके फोन एक तरफ रख दिया, कपड़े बदले और बालकनी में जा कर सिगरेट पीने लगा। सिगरेट पीने के बाद मैं अपने कमरे में गया और बिना किसी चिंता के सो गया क्योंकि कल की कोई बात नहीं थी छुट्टी थी।
पूरे दिन थके होने के कारण मुझे बड़ी चैन की नींद आई।
दूसरे दिन सुबह 9 बजे मैं सो कर उठा। अपने दिनचर्या से निवृत्त होकर मैंने चाय बनाई और बालकनी में खड़ा होकर चाय पीने लगा और पिछले दिन की बातें सोचने लगा। सच में बहुत ही अच्छा लगता है जब आपको कोई अपने दिल से आदर देता है और जब आप किसी को खुशियाँ भेंट में देते है। ऐसा ही समय कुछ कल का था। कल सच में वो बहुत खुश थी जैसे उसकी मुलाक़ात पहली बार खुशियों से हुई थी। उसका साथ मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
अभी मैं इन्ही बातों में खोया था कि मेरे फोन की घंटी बजी और मेरे दिल ने कहा कि ये माधवी की ही कॉल होगी और सच में उसकी ही कॉल थी।
मैंने फोन उठाया और कहा- हैलो!
माधवी- गुड मॉर्निंग!
मैं- गुड मॉर्निंग!
माधवी- कैसे हैं आप, और क्या कर रहे हैं?
मैं- कुछ नहीं, बस अभी सो कर उठा, चाय बनाई और पी रहा था. आप क्या कर रही हैं?
माधवी- मैंने भी अभी घर का सारा काम किया और अभी नहा कर आई तो सोचा आपको कॉल कर लूँ।
मैं- अच्छी बात है। और ऑफिस कितने बजे है?
माधवी- आज मेरा ऑफिस नहीं है। आज दिन भर मैं फ्री हूँ। तो अभी तक तो कुछ नहीं समझ आया कि क्या करना है लेकिन देखती हूँ। वैसे आज तो आप का भी ऑफिस नहीं है तो कुछ प्लान बनायें क्या?
मैं- कैसा प्लान?
माधवी- कहीं घूमने चलने का? या मूवी का? या लंच का?
मैं- जैसा आप ठीक समझो? आप बताओ क्या मन कर रहा है?
माधवी- कहीं घूमने चलते हैं फिर लंच साथ में करेंगे।
मैं- ठीक है फिर कितने बजे चलना है बताओ मैं आ जाता हूँ।
माधवी- नहीं, मैं आज आपके घर आती हूँ, वहाँ से चलेंगे।
मैं- ठीक है। कितने देर में आ रही हो?
माधवी- मैं एक घंटे में आ जाऊँगी।
मैं- ठीक है।
हमारी बात खत्म हुई और मैं फिर बालकनी में आ गया और एक सिगरेट जला ली। आज बाहर मौसम भी बहुत अच्छा हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि बारिश होने वाली है।
खैर मैं भी नहाया और तैयार होकर माधवी की प्रतीक्षा में लीन हो गया।
करीब 1:30 घंटे बाद वो आई और उसने दरवाजे की घंटी बजाई। मैंने घड़ी देखी तो उस वक्त 12:15 हो रहा था, फिर मैंने दरवाजा खोला। मेरे दरवाजा खोलते ही मेरी तो आँखें खुली की खुली रह गई। आज उसने पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उससे मिलती हुई चूड़ी, बिंदी हल्के सिंदूरी रंग की लिपस्टिक और तो और सैंडील भी मैचिंग की थी। मतलब वो ऐसी लग रही थी कि उसे जो देख ले उसका मुंह अपने आप खुल जाए।
उसने कहा- क्या यहीं पर रोक कर रखने का इरादा है या अंदर भी बुलाना है?
मैंने कहा- माफ करना!
और उसे अंदर बुलाया, बैठने को कहा. साथ ही मैंने उसे चाय या पानी के बारे में पूछा तो उसने मना कर दिया और कहा- नहीं, चलो चलते हैं।
मैंने कहा- ठीक है.
जैसे हम घर से बाहर निकले और मैं अपनी गाड़ी स्टार्ट करने लगा, तभी अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई।
हम दोनों भाग कर घर के अंदर आए और बारिश बंद होने का इंतज़ार करने लगे लेकिन बारिश थी कि उसे बंद ही होने का मन नहीं कर रहा था।
मैंने कहा- बारिश तो बंद ही नहीं हो रही है अब बताओ क्या करना है?
माधवी- हाँ यार, सारा मूड खराब हो गया। चलो कोई बाद नहीं आज बारिश के ही मजे लेते हैं।
मैं- मतलब?
माधवी- आज छत पर चल कर बारिश में नहाते हैं।
मैं- तुम जाओ, मुझे बारिश में नहाना पसंद नहीं है।
माधवी- चलो भी, आप बच्चों जैसे नखरे कर रहे हो।
और वो मुझे खींच कर छत पर ले गई और खुले छत पर बिल्कुल एक उन्मुक्त विचारों सी दोनों बाहें खोल कर नहाने लगी। मैं तो बस उसे ही देखे जा रहा था. मुझे बारिश में नहाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता लेकिन आज की बारिश कुछ अलग ही लग रही थी, कुछ तो नई बात थी इसमें।
मैंने चारों तरफ देखा, दूर दूर तक केवल हम दोनों ही छत पर दिख रहे थे। वो अपनी मस्ती में चूर थी और बारिश का पूरा मज़ा ले रही थी। मैं भी बस इधर उधर छत पर टहल रहा था।
माधवी- बारिश में नहाना कितना अच्छा लगता है न?
मैं- पता नहीं, मैं तो आज पहली बार नहा रहा हूँ और ये तो तुम बेहतर बता सकती हो।
माधवी- एक बात बताऊँ मैं आपको कि मुझे ऐसा लग रहा है कि ना जाने कितने सालों से मैं एक पिंजरे में कैद थी और जब से आपसे मिली हूँ आजाद हो गई हूँ। जो जो मैं करना चाहती थी वो सब मैं आपके साथ कर रही हूँ। जीना किसे कहते हैं मैं आज समझी हूँ। आप से मिलने से पहले तो मुझे पता ही नहीं था कि ज़िंदगी इतनी खूबसूरत है। कितने रंग हैं इसमें और जो हर तरह से किसी के भी अरमान सजा सकते हैं।
उसकी बातों में एक अलग सा नशा था और मैं तो बस निःशब्द उसको ही सुने जा रहा था। वो क्या बोल रही थी क्या कह रही थी मुझसे, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन उसको सुनते रहना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. वो बोल भी रही थी और बारिश में नहा भी रही थी।
अभी उसकी बातें चल ही रही थीं कि अचानक उसका पैर उसकी साड़ी में फंस गया और वो मुझ पर आ गिरी और मैं बेसुध उसे ही देख रहा था तो मुझे भी संभालने का मौका नहीं मिला और हम दोनों ज़मीन पर गिर पड़े।
उसका पूरा शरीर मेरे ऊपर था, उसके बाल मेरे चेहरे पर और हम दोनों का चेहरा एक दूसरे के बिल्कुल सामने और लगभग एकदम पास!
मैं उसकी गर्म साँसों को और साथ ही उसकी धड़कनों को बहुत अच्छे से महसूस कर पा रहा था, उसकी धड़कनें बहुत तेज़ थी और हमारी आँखें जो एक बार एक दूसरे से मिली थीं वो हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं।
तभी अचानक बहुत तेज़ बिजली कड़की और वो मेरे इतने पास आ गई जैसे वो मुझमें समा ही जाना चाहती हो। बिजली के कड़कने से मेरा ध्यान भंग हुआ और उसने भी अपनी नज़रें मेरे चेहरे से हटा ली और कुछ देर बाद उठी और नीचे मेरे रूम की तरफ भागती हुई चली गई। उसके कुछ देर बाद मैं भी नीचे गया तो देखा वो उसी हालत में किचन के दरवाजे के पास खड़ी थी और उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी।
सच कहूँ तो मेरा भी हाल उस वक़्त वैसा ही था शायद ये हमारे शरीर की आवश्यकता थी क्योंकि मुझे भी बहुत दिन हो गए थे किसी से संबंध बनाए और उसका मैं कुछ कह नहीं सकता लेकिन उसकी इच्छा से शायद यह उसका पहला मौका था जब वो अपनी मर्ज़ी से किसी के पास इस अवस्था में थी, तभी वो एकदम बेचैन सी लग रही थी।
मैंने फिर भी हिम्मत करके उसके कंधे पर हाथ रखा तो सिमटी हुई सी मुड़ी और मुझे एक झलक देख कर अपनी बाहों का हार मेरे गले में डाल दिया और अपना चेहरा मेरे सीने में छुपाते हुए मुझसे लिपट गई।
आग दोनों ही तरफ बराबर लगी हुई थी और हम चाह भी एक ही चीज रहे थे लेकिन ना जाने क्यों आज पहली बार कुछ करने में संकोच कहूँ या डर पता नहीं क्या था लेकिन लग रहा था, फिर भी हिम्मत करके मैंने उसका चेहरा अपने हाथों से ऊपर की ओर उठाया और उसकी आँखों में देखने लगा.
आज उसकी आँखें सबसे खूबसूरत और दुनिया की सबसे प्यारी आंखें लग रही थी और जो कशिश उसकी आँखों में थी उससे ऐसा लग रहा था कि बस डूब जाऊँ इनमें और इसके अलावा कोई भी चाह बाकी नहीं थी।
अभी मैं उसकी आँखों में ही खोया हुआ था कि अचानक ही ना जाने कब बरबस ही हम दोनों के होंठ आपस में मिल गए और हम ऐसे ही काफी देर तक एक दूसरे को चूमते रहे सबसे अनभिज्ञ।
जैसा आज है वही सबकुछ है, कुछ मिनट तक एक दूसरे को चूमने के बाद जब हम अलग हुए तो उसकी आँखें एकदम लाल हो चुकी थी जिससे साफ पता चल रहा था कि उसकी आँखों में वासना ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है और धड़कनें भी एकदम दुगनी रफ्तार से चल रही थी जो एकदम साफ सुनाई दे रहीं थी। ऐसा लग रहा था कि उसका दिल एकदम से बाहर आ जाएगा।
वो समय कुछ ऐसा हो गया था कि मैं अपने आप को रोकना तो चाहता था लेकिन निसहाय सा कुछ भी नहीं कर पा रहा था।
ना जाने फिर कब हम एक हो गए और एक दूसरे को पागलों की तरह चूमने लगे। चूमते चूमते न जानने कब हम कमरे में आ गए और हमे तो ये भी पता नहीं चला कि हमारे कपड़े कब उतर गए। उस समय ऐसा सैलाब आया हुआ था कि हम दोनों उसमें बस बह जाना चाहते थे।
ये मेरे साथ पहली बार हो रहा था कि मैं एकदम बेसुध सा सबकुछ कर रहा था और मेरा अपने ऊपर कुछ वश नहीं था। सच बताऊँ तो इतना नशा आज से पहले मुझे कभी हुआ भी नहीं था। अपने आप को रोक पाना मेरे हद से कोसों दूर हो गया था।
क्या हो रहा था हम दोनों ही नहीं जान पा रहे थे लेकिन जो हो रहा था उसे आनन्द से अविभूत बस किए जा रहे थे। ना कोई रोक टोक और ना ही कोई विघ्न। हम अब तक तो सातवें आसमान पर पहुँच चुके थे।
ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे और चूमते चाटते कब हमारा शरीर एक हो गया और हम दोनों एक साथ सुख के सागर में गोते लगाने लगे। आज पता चल रहा था कि सही मायने में खुशी यही है और इसके परे कुछ भी नहीं।
काफी समय के बाद जब तूफान रुका तो हम दोनों ही पसीने से भीगे हुये थे और हाँफ रहे थे। काफी देर तक हम दोनों एक दूसरे से चिपके रहे और फिर ना जाने कब हमें एक दूसरे की बांहों में नींद आ गई पता ही नहीं चला।
करीब 3 घंटे बाद हम दोनों की आँख खुली तो पूरे बिस्तर पर हम दोनों निर्वस्त्र पड़े हुये थे। आँख खुलने के बाद भी हम उसी अवस्था में लेटे हुये थे।
काफी देर तक शांत रहने के बाद उसने मुझसे बोला- आपको पता है कि सही मायने में आज पहली बार मैंने संभोग किया है और इसका पूरा सुख लिया है और सही कहूँ तो आज पता चला है कि इसमें कितनी सुखद अनुभूति होती है। आज आपके साथ संभोग करके मुझे आत्मसात हुआ है, आज पहली बार मैं अपने आप से मिली हूँ, आज पहली बार मैंने अपने अस्तित्व को जाना है, आज पता चला कि मेरी भी ज़िंदगी है और उसके भी कुछ सपने हैं। पहले मुझे ये लगता था कि सेक्स दुनिया का सबसे बुरा पहलू है और इससे बस जिंदगियाँ बर्बाद ही होती हैं लेकिन आज इस पल को जी के लगा कि मैं जो भी कुछ सोचती थी वो गलत था.
इतना कहने के बाद वो उठी मेरे माथे पर एक चुम्बन दिया और कहा- अभी चाय बना कर लाती हूँ और फिर अपने कपड़े पहने और किचन में चली गई।
फिर मैंने भी उठा और अपने कपड़े पहना और ड्राइंग रूम में जाकर बैठ गया।
बहुत सारी बातें थी जो मेरे दिमाग में चल रही थी कि आज जो भी हुआ है क्या वो सही था या नहीं, क्या ये हमें करना चाहिए था या नहीं? मैं चाहता तो ये सब रोक सकता था लेकिन मैंने रोका क्यों नहीं? आखिर मेरा उसका रिश्ता क्या है? न हम प्रेमी युगल हैं और ना ही पति पत्नी, तो इस परिस्थिति में हमारा ये करना उचित था या अनुचित?
अभी मैं इन्हीं ख्यालों में खोया हुआ था, तभी माधवी चाय बनाकर लाई, मुझे दी, और मेरे बगल में बैठ कर चाय पीने लगी।
कुछ देर की खामोशी के बाद उसने फिर से कहा- मैं जानती हूँ आपके दिमाग अभी बहुत से सवाल चल रहे हैं और उसका उत्तर मिलना मुश्किल है। मैं ये भी जानती हूँ कि हमारा कोई भी रिश्ता नहीं है और हमने अपनी हदें पार कर ली जबकि अभी हमे मिले कुछ दिन ही हुए हैं. लेकिन हमने कुछ गलत नहीं किया है, शायद हमने एक दूसरे को और अच्छे तरीके से समझा लिया है। आप सच में बहुत अच्छे हैं, आज तक मैं जिस भी आदमी से मिली वो बस मुझे नोचना, खाना या अपने वासना का शिकार ही बनाना चाहते था, लेकिन आज से पहले मैंने आपके साथ पूरी रात बिताई, आपके साथ घूमने भी गई, मूवी भी देखी लेकिन आपने एक बार भी मुझे छुआ नहीं और मैं आपके साथ एक दो दिन में ही सुरक्षित महसूस करने लगी. तभी आज मैं आपके घर आ गई और आज जो कुछ भी हुआ उसमे मेरी भी सहमति थी इसलिए आप ज़्यादा मत सोचिए।
मैं तो बस उसे सुने जा रहा था कि एक नारी कितनी सुलझी हुई होती है और समस्याओं को भी कितनी आसानी से सुलझा लेती है। मेरे लिए तो जैसे अभी कुछ देर पहले जो कुछ भी हुआ था वो गलत था लेकिन उसकी दो बातों ने ही मेरी पूरी सोच बादल कर रख दी।
हमने अपनी चाय खत्म की और मैंने उससे कहा- ये बताओ कपड़े तो तुम्हारे भीग गए हैं तो क्या पहन के घर जाओगी?
माधवी- आज का मौसम देखकर ही मुझे लग गया था कि आज बारिश हो सकती है इसलिए मैं एक और ड्रेस अपने बैग में रख लाई थी।
मैं- अच्छा तो पूरी तैयारी के साथ निकली थी।
और हम दोनों ही हंसने लगे।
अभी 4:30 हो रहे थे. माधवी ने खाना बनाया और हम दोनों ने साथ बैठ कर खाना खाया और फिर बैठ कर बातें करने लगे।
बहुत सारी बातें हुई और उसने भी मुझे अपने बारे में और भी बातें बताई।
बातें करते करते समय का पता ही नहीं चला। मैंने घड़ी देखी तो उसमें 6:30 बज रहे थे. मैंने माधवी से कहा- तुम तैयार हो जाओ, मैं तुमको तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ।
वो मेरी बात पर सहमति जताते हुए उठी और तैयार होने चली गई और मैं बालकनी में आकर सिगरेट पीने लगा।
उसके बाद मैंने भी अपने कपड़े पहने।
अब तक वो तैयार हो चुकी थी और फिर हम दोनों उसके घर के लिए निकले, अभी कुछ ही दूर गए थे कि फिर से तेज़ बारिश शुरू हो गई। और हम दोनों मेरे घर वापस आ गए और मैंने माधवी से कहा- थोड़ी देर देखते हैं, अगर बारिश रुकी तो मैं तुम्हें घर छोड़ दूँगा नहीं तो फिर तुम अपने घर बता देना।
उसके बाद हम दोनों बैठ कर बातें करने लगे। हमारी बातें तो खत्म हो जा रही थीं पर बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, रात के 8 बज चुके थे।
मैंने माधवी से कहा तो उसने अपने घर फोन कर के कह दिया कि वो बारिश के कारण नहीं आयेगी और अपने एक सहेली के घर ही रात में रुक जाएगी और कल सीधे ऑफिस से घर आ जाएगी।
फिर वो पूरी रात और पूरा दिन हमने साथ बिताया। रात में हम एक साथ एक ही बिस्तर पर सोये और हमारे बीच में 2-3 बार शारीरिक सम्बन्ध भी बने और फिर हम दोनों दूसरे दिन पूरा दिन घूमे और मैंने उसको कुछ गिफ्ट भी दिया।
वो बहुत खुश नज़र आ रही थी।
उसके बाद शाम को मैंने उसे उसके घर छोड़ दिया।
उस दिन के बाद भी हम कई बार मिले और हमने साथ में अच्छा समय भी बिताया। उसके बाद मेरे बहुत समझाने पर उसने दूसरी शादी कर ली और अब वो अपने पति के साथ बहुत खुश है।
आज भी हमारी कभी कभी बात हो जाती है, उसका पति भी मेरे बारे में जानता है और कभी कभी हम साथ में मिलते भी है खाते पीते एंजॉय भी करते हैं।
इस एक लड़की (माधवी) की कहानी ने मुझे बहुत बड़ी शिक्षा दे दी और उससे मिलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि दुनिया में अगर भगवान ने कुछ अच्छा बनाया है तो वो है नारी। चाहे वो किसी भी रूप में हो किसी भी परिस्थिति में हो वो हमेशा ही सबका भला चाहती है।
चाहे परिस्थिति कैसी भी हो उससे बेहतर जीना कोई और नहीं जानता।
तो दोस्तो, यहाँ पर मेरी कहानी एक नारी की व्यथा कथा पूरी होती है.
आशा करता हूँ आपका का प्यार और आभार मुझे मिलता रहेगा। आप सभी पाठकों से निवेदन है कि अगर आपको मेरी लेखिनी पसंद आई तो मुझे लिखना ना भूलें, और साथ ही भाभियों और आंटियों से अनुरोध है कि अगर उनको मेरी इस कहानी में कहीं भी अपनी कोई छाप मिलती है तो अपने विचार मुझे ईमेल ज़रूर करें और अगर मुझसे कुछ बातें करके अपना अनुभव बांटना चाहती है तो मुझे लिखना न भूलें। मुझे आपके पत्रों का इंतजार रहेगा।
इसी के साथ आप सभी का सहृदय धन्यवाद।
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