वीर्यदान महादान-4
विक्की कुमार
हम दोनों उठे, शावर लिया व कपड़े पहन कर बाहर होटल के गार्डन रेस्टोरेंट में आ गये।
कामना ने गहरे रंग के गॉगल्ज़ पहन लिए थे व सिर पर दुपट्टा भी डाल दिया था।
अब हम गार्डन के एक कोने में बैठ गये कि किसी की हम पर नजर आसानी से ना पड़ सके।
आज मुझे लग रहा था कि मैं हनीमून मनाने के लिये निकला हूँ।
जब मैंने यह बात कामना को बताई तो उसनें कहा की आपने मेरे मन की बात छीन ली, मैं भी यही कहने वाली थी।
वह मेरे पास वाली कुर्सी पर ही बैठी थी, जब भी मौका मिलता मैं उसके किसी ना किसी अंग को छूने का प्रयत्न जरूर कर लेता था, यह देखकर वह बड़ी शरारत के साथ मुस्कुरा देती।
खाना खाने में तकरीबन एक घण्टा लगा।
फिर कामना बोली- अभी खाना खाया है, सीधे कमरे में नहीं जायेंगे।
हम करीब आधे घंटे तक हाथ में हाथ डाले घूमते रहे, वह मेरी बाईं ओर चल रही थी, मेरा बायाँ हाथ उसके कंधे के ऊपर से होता हुए उसके स्तनों को छू रहा था। वैसे भी गलियाँ सूनी हो चुकी थ, इक्के दुक्के ही कोई दिखता था। मैं इसके स्तन को टोहता रहता था।
हालांकि कामिनी के स्तन मेरी पत्नी शालिनी के स्तनों, जिन्हें मैं बेटी की दूध की बोतल कहता था, से छोटे थे पर मुझे तो बहुत उत्तेजित कर रहे थे।
अब मैंने कामिनी से कहा- प्रिये रैना बीती जाये रे…
तो उसने मुस्कुराकर कहा- चलो कमरे में, अब ज्यादा नहीं तड़ाफाऊँगी।
रात के दस बज चुके थे, किन्तु अब रात हमारी थी। अब हम दोनों नें जितने भी आसन आते थे, सभी में चुदाई का आनन्द लिया। पूरी रात में हमने चार बार चुदाई की।
मैं अपना लेपटाप भी ले गया था, नेट स्टिक के सहारे नेट से कुछ पोर्न साईट्स भी खोलकर एक दूसरे को उत्तेजित करने की कोशिश की। जब थक कर चकनाचूर हो गये, तो घड़ी पर नजर गई, सुबह के पांच बज चुके थे।
तो हमने तय किया कि चलो अब सो जाते हैं। फिर हम एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर सो गये।
उस रात हम दोनों नें एक दिव्य अनुभव लिया। ऐसा लगा जैसे सुहागरात मनाई हो।
फिर अगले दिन हम दोनों की नींद दोपहर ग्यारह बजे बाद खुली। उठने के बाद वेटर को बुलाकर चाय नाश्ता मंगवाया व फिर भिड़ गये चुदाई समारोह को मनाने में।
इसी प्रकार अगला दिन, शाम व रात भी गुजर गई।
इस प्रकार पूरे दो रात व तीन दिन हम लोगों ने हनीमून मनाया। हमें कहीं बाहर घूमने तो जाना नहीं था, अतः कमरे में ही रहते और बस एक ही काम चुदाई करते रहते।
इस तीन दिनों में अनगिनत बार चुदाई कर हम दोनों नें अपने बरसों के भूखे शरीर को तृप्त कर लिया था।
अब अंत में विदाई की क्रूर घड़ी आ ही गई, हालांकि कामना को छोड़ने की मेरी बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी किन्तु, उसे घर लौटना जरूरी था।
विदा लेते समय मैंने कामना से पूछा- अब कब मिल सकती हो?
तो उसने कहा- उचित समय आने पर मैं खुद बुलाऊँगी पर कुछ समय तक इन्तजार करना ही होगा क्योंकि अगर हम ज्यादा मिले तो प्यार हो जायेगा, व मैं कोई लफड़ा नहीं चाहती।
यह सुनकर मैंने बड़े ही दुखी मन से कामना को विदाई दी।
अब मैं अपने घर लौट आया, किसी को पता भी नहीं चला कि मैं अपनी जिंदगी का एक बड़ा युद्ध जीत कर आया हूँ। युद्ध ! हाँ युद्ध ही तो था वह। ना जाने किन किन कारणों से युद्ध लड़े जाते है, जैसे जर, जोरू, जमीन, पैसे, ताकत इत्यादि के लिये। मैंने भी तो तलवार के बजाय अपना लण्ड हाथ में लेकर, दो इन्च की चूत से अपनी कामाग्नि को शांत करने के लिये युद्ध लड़ा था।
माथेरान से लौटने के बाद तकरीबन दो सप्ताह तक तो मैं कामिनी के ख्यालों में ही खोया रहा, व मुझे इस दौरान शालिनी की चूत की याद ही नहीं आई।
पर आखिरकार कब तक ख्यालों में चुदाई करता रहता, आखिरकार मेरे पप्पू को भी तो असल की मुनिया रानी से मिलने की याद आने लगी। अब फिर मैंने शालिनी को पटाकर चुदाई का आनन्द ले लिया।
पर कहाँ यह शालिनी का बिना नमक मिर्च का सादा खाना, कहाँ वह कामिनी का छप्पन भोग का थाल… दोनों की तुलना भी नहीं हो सकती थी।
अगर मैं कामिनी व शालिनी दोनों की तुलना करता तो खूबसूरती के लिये शालिनी को दस में से दस नम्बर मिलते, कामिनी को सात, किन्तु अगर मैं बिस्तर पर मजे देने के लिये नम्बर देता तो शालिनी को दस में से शून्य ही देता क्योंकि शालिनी की चुदाई में सब कुछ मुझे ही करना पड़ता था, उसका तो सिर्फ एक ही काम करना होता था कि सिर्फ टांगें चौड़ी कर लेटना, उस पर भी जल्दी करो-जल्दी करो… की आवाजें लगती रहती।
वहीं अगर मुझे कामना को अगर चुदाई के लिये अगर मुझे नम्बर देना होते तो मैं बेशक दस में से दस ही देता।
मैंने कामना को धन्यवाद देने के लिये मेल लिखा व पूछा कि क्या हम फिर से मिल सकते हैं। तो उनका बेहद नपा तुला जवाब आया कि, मजा तो उसे भी बहुत आया किन्तु जब भी अवसर होगा वे मुझे मेल करके बतायेगी।
अब कामना की मर्जी, वह मेरे लिये एक बीता हुआ कल थी, उसकी याद में मैं पागल नहीं हो सकता था। शालिनी मेरा वर्तमान थी जो मेरे हाथ में नहीं आ रही थी, निश्चित रूप से अब मुझे अपना भविष्य खोजना था।
फिर कुछ दिनों बाद जब मेरा लण्ड ज्यादा परेशान करने लगा तो मैंने शालिनी को फिर समझाने की कोशिश की ताकि मैं फिर घर से बाहर कोई चूत ढूंढने से बच जाऊँ, मेरा काम घर में ही हो जाये पर वह तो समझ कर भी ना समझ ही बनी रहती थी।
मैंने इन्टरनेट पर फिर कुछ साईट खंगाली, कई डेटिंग साईट्स को भी खोजा पर कुछ हासिल नहीं हुआ।
फिर एक दिन मेरे दिमाग में आया कि जैसे कामना जी ने मुझे खोज निकाला था, ठीक वैसे ही मैं भी किसी को खोज निकालूं, जो मजबूत हो, टिकाऊ हो, थोड़े लम्बे समय तक चले।
अरे आप कन्फ्युज ना होइए, मैं हवाई चप्पल की नहीं वरन एक अदद चूत की बात कर रहा हूँ।
फिर मैंने भी अपना एक एड बनाकर एक लोकल वेब साईट पर डाल दिया। आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन सी साईट्स हैं जो ऐसे विज्ञापन पब्लिश करती है, जी हाँ अनेको जैसे विवा स्ट्रीट, लोकेन्टो, एड पोस्ट…
फिर अगले दो दिन बाद मुझसे किसी महिला के बजाय एक युगल ने सम्पर्क किया, जो मेरे संग सेक्स करने में रुचि रखता था।
अब यह तो मेरे लिये एक अजीब सा प्रस्ताव था। पहले तो मुझे लगा कि वे स्वेपिंग चाहते होंगे, मैंने उन्हें माफी का पत्र लिख दिया कि मैं अकेला हूँ क्योंकि मुझे पता था की शालिनी के बारे में तो ऐसा सोचना ही असंभव होगा कारण जब वह मेरे साथ ही सेक्स नहीं कर पा रही तो अदल बदल की तो बात सोच भी नहीं सकता हूँ।
मैं तो यह समझ ही नहीं पाया कि जब मैं उन दोनों के बीच में मैं अकेला कहाँ फ़िट होऊँगा। यही जानने के लिये मैंने उस मेल का जवाब दिया।
तो पता चला कि संजय (47) व नीता (38) दोनों पिछले 16 वर्षों से एक खुशहाल शादीशुदा जीवन जी रहे हैं किन्तु पिछले कुछ समय से संजय सेक्स में नीता की भूख को शांत नहीं कर पाता है, कारण दोनों के बीच उम्र का फ़र्क व दूसरे संजय का कुछ समय से शीघ्र पतन हो जाता है, नतीजन नीता की चूत छटपटाती रहती है।
वे दोनों दिल्ली के आसपास कहीं रहते थे, संजय एक बैंक में मैनजर था व नीता हाउसवाईफ थी। दोनों के बच्चे भी थे।
तो दोनों आपसी रजामंदी से सेक्स के लिये मुझसे सम्पर्क कर रहे हैं। फिर हमारे बीच मध्य आगे और मेल का आदान प्रदान हुआ, तो मैंने यह पूछा कि नीता के साथ सेक्स कैसे करना होगा, क्या मुझे उसे अकेले ही चोदना होगा या संजय भी उस दौरान वहाँ उपस्थित होगा।
उन दोनों का भी यह पहला अनुभव था। तो उनका यही कहना था कि पहले तो संजय एक तरफ बैठा रहेगा व नीता मेरे साथ सेक्स करेगी, फिर कुछ समय बाद अगर संजय अपने आपको सेक्स करने लायक महसूस करेगा तो वह भी शामिल हो जायेगा।
कुल मिलाकर प्रस्ताव ठीक लगा, किन्तु इसमें कई किन्तु-परन्तु थे, जैसे की नीता तो ठीक है मुझे संजय के सामने नंगा होना पड़ेगा, जो मुझे थोड़ा सा अजीब लग रहा था, किन्तु मैंने सोचा कि जब उन दोनों को कोई आपत्ति नहीं है तो फिर मुझे क्यों।
दूसरे वे मेरे कोई परिचित तो हैं नहीं जिससे मैं शर्म करूँ, हमें तो अपना काम कर लौट जाना है।
फिर एक दिन हमारे बीच वीडियो चेटिंग हुई, मैंने देखा कि वे दोनों स्मार्ट व सभ्य हैं। नीता की उम्र संजय के मुकाबले में कम लगती है। वह जामुनी रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी।
दोनों ने सेक्स के विषय पर खुलकर चर्चा की। उनका कहना था कि वर्क लोड बहुत रहने के कारण संजय का सेक्स के दौरान शीघ्र स्खलन हो जाता है जिससे नीता प्यासी रह जाती है। हालांकि इसका इलाज भी चल रहा है, पर फिर भी उन दोनों की आपसी सहमति से यह निर्णय लिया क्योंकि एक अनजान से चुदाई कराने कराने में कोई नुकसान नहीं है, काम किया व अपने अपने रास्ते पर निकल लिये।
शीघ्र ही वह समय आ ही गया जब हमारे मिलन तय हो गया। वे दोनों व मैं भी चाहता था कि किसी शांत व सुकून भरी जगह मिला जाये तो हमने शिमला के नजदीक ही एक रिसोर्ट में मिलना तय किया।
उन दोनों के बच्चों को उन्होंने दादा-दादी के यहाँ छोड़ दिया, अतः उन्हें शहर से बाहर जाने में कोई समस्या नहीं थी।
हमने शनिवार को सुबह शिमला पहुँचना व रविवार की रात को वापसी का तय किया ताकि ऑफ़िस की छुट्टी की भी समस्या ना रहे।
पहले तो मैंने प्रस्ताव रखा था कि दिल्ली से शिमला साथ साथ ही चलें पर संजय-नीता ने ना कर दिया कि यहाँ हमारे बहुत परिचित हैं, अतः वे कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते है।
मैंने भी बात की नजाकत को समझते हुए सीधे शिमला में मिलने की हामी भर दी।
मैंने दिल्ली का ऑफ़िस का काम निकाल लिया व फिर शुक्रवार को दिन भर दिल्ली में काम किया व शाम को शिमला के लिये ट्रेन से प्रस्थान किया।
संजय ने रिसोर्ट पहले से बुक करा दिया था, मैं वहाँ पहुचकर नहा धोकर तैयार हो गया क्योंकि मैं रातभर सोते हुए ही आया था, कारण मुझे पता था कि आज दिन व रात काफी मेहनत करना होगी क्योंकि नीता की चूत भी एक लम्बे अरसे से प्यासी होगी जिसकी प्यास बुझाने के लिये मुझे निश्चित रूप से अपने लण्ड का बहुत पानी पिलाना होगा।
फिर सुबह के करीब दस बजे मेरे मोबाईल पर नीता का फोन आया कि ‘वेलकल टू शिमला।
इसके साथ ही दरवाजे पर ठकठक हुई और वे दोनों मुस्काराते हुए अंदर आ गये।
हमने हग किया व फिर नीता ने कहा- क्यों ना हम बाहर गार्डन में चलकर नाश्ता लेते हुए बातचीत करें।
पता चला कि वे दोनों तो कल सुबह से ही यहाँ आ गये थे।
जब मैंने यह पूछा कि वे एक दिन पहले क्यों आ गये तो नीता ने बड़े ही शातिराना अंदाज दाईं आँख मारकर मुस्काराते हुए जवाब दिया- मैं शिमला घूमना चाहती थी और आपके आ जाने के बाद शायद हम कमरे से बाहर नहीं निकल पायें इसलिये हम एक दिन पहले आ गये व कल पूरा दिन घूमे फिरे।
वे ठीक मेरे नजदीक के कमरे में ही ठहरे थे, उन्होंने सुबह मुझे अंदर आते हुए भी देखा था किन्तु डिस्टर्ब नहीं किया, क्योंकि यह तय था कि हम तैयार होकर सुबह का नाश्ता साथ में लेंगे।
नीता बहुत खूबसूरत लग रही थी, गोरा रंग, कद पांच फीट चार इन्च, कन्धे तक कटे हुए बाल, हरे रंग की साड़ी, लो-कट सेक्सी ब्लाउज।
मेरा लण्ड तो उसे देखकर ही फड़फाड़ाने लगा पर फिर मेरे मन ने उसे यह कहकर समझाया कि कुछ देर के लिये चुप हो जा मेरे भूखे प्यासे मुन्ना राजा, यह सजधज सब तेरे लिये ही तो है, जल्दी ही तेरा मुनिया रानी से तेरा मिलन होगा।
कहानी जारी रहेगी।
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