सविता बहन की रिबन कटाई
दोस्तो, मेरा नाम सविता अग्रवाल है। मैं आपके ही आस पास कहीं रहती हूँ। मेरी उम्र इस वक़्त 30 साल है और मैं एक शादीशुदा बाल बच्चेदार औरत हूँ, ज़िंदगी का हर लुत्फ मैं उठा चुकी हूँ।
इस वक़्त मेरी जवानी अपने पूरी उबाल पर है, अपने आप को हमेशा फिट और रेडी रखना मुझे बहुत पसंद है।
हालांकि मेरा रंग थोड़ा सा सांवला है, मगर फिर भी मैं देखने में बहुत आकर्षक हूँ, मेरी फिगर 36-28-38 है, कद 5’8′ है, पर्सनेलिटी बहुत बढ़िया है, घर परिवार बहुत अच्छा है, मायके और ससुराल दोनों बिजनेस करने वाले घराने हैं, तो घर में हर चीज़ ज़रूरत से ज़्यादा ही मिली।
पैसे खुले होने का फायदा यह होता है कि आपको आज़ादी भी बहुत मिलती है। इसका मुझे यह फायदा मिला कि बचपन से लेकर आज तक मैं किसी चीज़ के लिए नहीं तरसी, घर में सब कुछ था तो इस कारण मैं इंटरनेट की मेहरबानी से उम्र से बहुत पहले जवान हो गई, क्लास में अपनी सभी सहेलियों को सेक्स की नई नई बातें मैं ही बताती थी।
मेरा खुद का मन बहुत करता था सेक्स करने को मगर लड़के तो सब क्लास की टॉप की लड़कियों के दीवाने थे, मुझे भी एक दो लड़के लाईन देते थे, मगर वो मुझे पसंद नहीं थे।
खैर आज मैं आपको अपने पहले सेक्स की कहानी सुनाने जा रही हूँ।
बात तब की है जब मैं सिर्फ 18 साल की कमसिन कली थी, घर में मैं, बड़ा भाई जो मुझसे सिर्फ 2 साल ही बड़ा था और मम्मी और पापा ही थे बस।
घर में हम दोनों भाई बहन का एक ही रूम था जिसमें हम दोनों की पढ़ने की जगह और दो अलग अलग बेड लगे हुये थे।
घर में सबसे छोटी होने के कारण सब मुझे बच्ची ही समझते थे मगर मैं मन ही मन खुद को पूरी जवान समझती थी।
घर में ज़्यादातर मैं एक ढीली सी टी शर्ट और निकर या बरमूडा ही पहनती थी। मेरी फिगर तब 32-26-34 थी तो कुछ भी पहनती थी तो बहुत सेक्सी लगती थी।
कमरे में एक बड़ा सा शीशा लगा था जो अक्सर मुझे कहता था- तुम बहुत सेक्सी हो सवी!
जब कभी मैं अपने रूम में अकेली होती, भाई कहीं बाहर गया होता तो मैं अपने सारे कपड़े उतार कर उस बड़े शीशे से सामने जा खड़ी होती और अपने जवान होते जिस्म को देखती।
यह आदत मुझे बचपन से थी, मैंने अपने बदन को एक एक इंच जवान होते देखा था।
मेरा भाई भी मेरा बहुत हैंडसम था, आज भी है, मेरी क्लास की लड़कियाँ भी उस पर मरती थी, एक दो ने तो मुझे उससे दोस्ती करवाने को भी कहा।
ऐसे ही एक दिन मेरी एक सहेली ने कहा- यार, तेरा भाई इतना हॉट है, सेक्सी है, क्या तेरा दिल नहीं करता कि उसके साथ ही सेक्स करने को?
मैंने कहा- क्या बकवास है यार, वो मेरा भाई है।
वो बोली- तभी देख तो, कितना डेशिंग है।
मैंने भी देखा, मेरा तो भाई था, मगर उसे सेक्स के नज़रिये से मैंने पहले कभी नहीं देखा था।
वो लड़की मेरे भाई पे मरती थी तो अक्सर मुझे पूछती रहती- तेरा भाई क्या घर में चड्डी पहन के घूमता है, क्या तूने उसे कभी नंगा देखा है, उसका लंड कैसा है? वगैरह वगैरा!
मगर उसकी बातें मेरे दिल पे असर करने लगी थी, मैं भी अपने भाई को किसी और ही नज़र से देखने लगी थी, और यह बात मेरे भाई ने भी नोटिस की थी कि मेरे देखने का नज़रिया बदलने लगा है, मगर उसने कभी कुछ कहा नहीं।
एक दिन भाई नहा कर बाथरूम से निकला, मैं उस वक़्त नीचे नाश्ता करने गई थी, माँ ने कहा- जा अपने भाई को भी बुला ला!
मैं भाई को बुलाने ऊपर कमरे में गई, उस वक़्त भाई कमरे में बड़े शीशे के सामने खड़ा था, मैंने जब दरवाजा खोला तो देखा, भाई बिल्कुल नंगा खड़ा शीशे के सामने अपने मसल बना बना के देख रहा था, उसका लंबा सा भूरा लंड उसके सामने लटक रहा था।
मेरी तरफ भाई की पीठ थी मगर मैं शीशे में से उसका लंड देख रही थी। भाई को इसका कोई पता न था, मगर अचानक उसकी निगाह शीशे में से मुझ पर पड़ी।वो एकदम से हड़बड़ा गया और भाग कर तौलिया उठा कर लपेट लिया।
मैं भी उसे बाहर से नाश्ते के लिए बुला कर हँसती हुई नीचे आ गई।
मगर उसके लंबे लंड ने मेरी चूत के मुँह में पानी ला दिया।
हमने साथ नाश्ता किया मगर एक दूसरे से आँख नहीं मिला रहे थे। मगर अब मुझे इस बात की बहुत इच्छा हो रही थी कि मैं भाई का लंड अपने हाथ में पकड़ कर देखूँ, उससे खेलूँ, प्यार करूँ, ब्लू फिल्मों की हीरोइन की तरह मुँह में लेकर चूसूँ और अपनी छोटी सी कुँवारी चूत में लेकर चुदवाऊँ।
मगर ये सब इतना आसान नहीं था तो मैंने इसके लिए अपने दिमाग से एक स्कीम सोची।
मैंने सोचा कि अगर मुझमें सेक्स करने की चाह है तो भाई तो मुझसे बड़ा है, उसमें भी ज़रूर होगी। क्यों न अगर मैं अपने भाई को अपने कुँवारे हुस्न के जलवे दिखाऊँ तो हो सकता है कि वो मुझ पर मोहित हो जाए और मुझे अपने लंड का तोहफा दे दे।
तो अपनी स्कीम के अनुसार मैं घर में अपने कमरे में खासकर बहुत ही छोटी छोटी निकर पहन कर रखती ताकि भाई मेरी सुंदर सेक्सी टाँगों को देख सके, जो टी-शर्ट्स पहनती वो बड़े गले की होती और टी शर्ट के नीचे कोई ब्रा या अंडरशर्ट न पहनती ताकि जब कभी भी मैं झुकूँ या किसी भी और पोज में उसके सामने आढ़ी टेढ़ी होऊँ तो वो मेरे कच्चे नींबू जैसे बूब्स के दर्शन कर सके।
वो देखता तो था मगर बात इस से आगे नहीं बढ़ पा रही थी तो मैंने कुछ और करने की सोची।
एक दिन बहुत बारिश हुई।
रात को जब मैं सोने गई, तो मैंने सिर्फ अपनी टी शर्ट के नीचे एक पेंटी पहन रखी थी।
बाहर बहुत बादल गरज रहे थे और बिजली भी बहुत चमक रही थी। मौसम बड़ा सुहावना था, मेरा मूड भी बहुत रोमानी था। अपने बिस्तर में लेटी मैं अपनी चूत से खेल रही थी कि बहुत ज़ोर से बिजली चमकी।
मैं डर गई।
मैं उठी और जाकर भाई के बेड के पास खड़ी हो गई।
‘भाई…’ मैंने उसे पुकारा।
‘क्या है?’ उसने पूछा।
‘मुझे बहुत डर लग रहा है!’ मैंने डरने के नाटक करते हुये कहा।
‘तो मैं क्या करूँ?’ वो थोड़ा रूखेपन से बोला।
‘मैं यहाँ तुम्हारे पास लेट जाऊँ?’ मैंने कहा।
उसने पहले मुझे देखा और फिर बोला- आजा लेट जा।
मैं उसके साथ लेट गई, मगर वो मुझे से थोड़ा फर्क रख के लेटा था और मुझे छू नहीं रहा था। मगर उसकी साँसों की आवाज़ मैं सुन पा रही थी।
मैंने नीचे को देखा, मगर अंधेरे में मुझे उसके लंबे लंड का कुछ पता नहीं चल रहा था, बसअंदाज़ा सा था कि मेरे हाथ से करीब 6 इंच दूर ही उसका लंड है।
मैं उसके लंड के बारे में सोचते सोचते फिर से अपनी पेंटी में हाथ डाल कर अपनी चूत का दाना मसलने लगी।
धीरे धीरे मेरी गर्मी बढ़ने लगी और मैंने अपनी टी शर्ट पूरी ऊपर उठा दी, जिससे मेरे दोनों बूब्स बाहर आ गए।
जब भी बिजली चमकती तो रोशनी में मैं अपने नंगे बदन को देख सकती थी और यह सोच रही थी कि भाई जो बिल्कुल मेरे साथ लेटा है, वो भी देख रहा होगा।
मगर भाई की तरफ से कोई हरकत नहीं हो रही थी।
चूत का दाना सहलाते सहलाते मेरा तो पानी छूट गया। चूत से निकालने वाले पानी से मेरी पेंटी सारी गीली हो गई थी।
मैं चुपके से उठी और बाथरूम में गई, वहाँ जाकर मैंने अपनी चूत पानी से साफ की, दूसरी पेंटी उठा कर पहनी और वापिस आई।
जब मैं बेड के पास पहुँची तो देखा कि भाई बिल्कुल सीधा लेटा हुआ था और उसका बरमूडा ऊपर को उठा हुआ था। मतलब यह था कि भाई ने मुझे देखा था और मेरे नंगे बदन को देख कर उसका लंड तन गया था।
मैं फिर से चुपचाप उसकी बगल में लेट गई, मगर इस बार मैं ऐसे लेटी जैसे मुझे ठंड लग रही हो और मैं भाई से सट कर लेटी तो वो बोला- क्या हुआ?
मैंने कहा- भाई, ठंड लग रही है।
वो उठा और उठ कर अलमारी से कंबल निकाल लाया।
हम दोनों कंबल ले कर लेट गए, मैंने भाई की तरफ पीठ की और बिल्कुल उसके पेट के साथ अपनी पीठ चिपका कर लेट गई।
इसका फायदा यह हुआ कि भाई का लंड बिलकुल मेरे चूतड़ों से सट गया।
भाई थोड़ा सा पीछे को हटा तो मैं भी और पीछे हट गई। मतलब मैंने भाई को इशारे में बता दिया कि तेरे लंड के मेरे चूतड़ों से सटने पर मुझे कोई ऐतराज नहीं।
भाई ने भी अपनी बाजू मेरे ऊपर से घुमा ली और मुझे अपने आगोश में ले लिया, उसकी नाक बिल्कुल मेरे कान के पास थी, उसकी साँसों की गर्मी और तेज़ी मैं बहुत साफ सुन रही थी।
उसका लंड जो पहले थोड़ा सा ढीला सा लग रहा था, अब एकदम से पत्थर की तरह सख्त हो चुका था।
मैंने जानबूझ कर अपनी कमर इस तरह हिलाई कि अपनी गाँड को मैं उसके लंड पे रगड़ रही हूँ।
उसको अच्छा लगा होगा, मगर मुझको बहुत मज़ा आया।
मेरे इस तरह से गाँड घिसाने से वो भी मेरे साथ लग कर लेट गया। मगर उसके बाद भी उसने कुछ नहीं किया, जबकि मैं तो कहानी को और आगे बढ़ाना चाहती थी।
तो जब अगली बार बिजली चमकी तो मैं उसका हाथ पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया जैसे मैं डर गई होऊँ, मगर असल में मैंने अपना बूब उसके हाथ में पकड़ाया था।
मेरी यह तरकीब काम कर गई, थोड़ी देर बाद मुझे लगा जैसे भाई ने मेरे बूब पर अपनी पकड़ बनाई हो और मेरे छोटे से बूब को पूरी तरह से अपने हाथ में पकड़ लिया, पहले धीरे धीरे, फिर थोड़ा और ज़ोर से उसने मेरा बूब दबाया, मगर मैं ऐसे नाटक कर रही थी, जैसे बहुत गहरी नींद में सो रही हूँ।
उसके बाद भाई ने मेरे एक के बाद एक दोनों बूब धीरे धीरे दबा कर देखे।
मैं मन ही मन जप रही थी- भाई, मुझे चोद दो, भाई मेरी चूत चाट लो, भाई मुझे अपना लंड चुसवा दो।
मगर ये सब मेरे मन में ही था।
उसके बाद भाई उठा और बाथरूम में चला गया। मुझे लगा शायद वो गर्म हो गया है और बाथरूम में अपनी मुट्ठ मारने गया होगा।
अब बहन को तो चोद नहीं सकता।
मगर बाथरूम में मेरी चड्डी सामने ही पड़ी थी, मैंने सोचा अगर बाथरूम में भी गया होगा तो मेरी चूत के पानी से भीगी चड्डी को उठा कर सूंघेगा या अपने लंड पे घिसाएगा, हो सकता है अपना माल मेरी चड्डी में ही छुड़वा दे, अगर ऐसा हुआ तो मैं अपनी चड्डी को भी चाट जाऊँगी।
मगर दो मिनट बाद ही भाई बाहर आ गया और वो बाथरूम के दरवाजे में ही खड़ा था और मुझे घूर रहा था।
मैं सीधी होकर लेट गई और मैंने जान बूझ कर अपनी टीशर्ट बिल्कुल ऊपर उठा ली और अपनी दोनों चूचियाँ बाहर निकाल दी।
बाथरूम की लाइट में भाई को मेरा नंगा बदन चाहे न दिखा हो मगर मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी।
1-2 मिनट देखने के बाद भाई आया और आकर मेरे साथ फिर से लेट गया, इस बार उसने बिना किसी हिचक के मेरे सीने पे अपना हाथ रखा और जब उसने देखा के मैंने अपनी टी शर्ट पूरी ऊपर उठा रखी है तो उसने अपना सर कंबल के अंदर कर लिया और मेरे दोनों बूब्स को अपने हाथों में पकड़ लिया और बारी बारी से दोनों निप्पल चूसे।
‘आह…’ मेरे तो जैसे बदन में बिजलियाँ दौड़ने लगी।
बूब्स चूसते चूसते, भाई ने सारा कंबल उतार दिया, बाथरूम से आने वाली रोशनी में मेरा कुँवारा बदन देखने लगा, फिर उसने मेरी टाँगों को चूमा, मेरी जांघों पे हाथ फेरा और चिकनी जांघों को अपनी जीभ से चाट गया।
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मैं तड़प उठी, गुदगुदी से!
उसने बड़े प्यार से मेरी छोटी सी चड्डी उतार दी, मेरी कमर, पेडू और चूत के आस पास चूमा, चाटा, मैं तो तड़प तड़प कर बेहाल थी।
भाई बोला- अब सोने का नाटक मत कर, मैं जानता हूँ तू जाग रही है, उठ जा!
उसने कहा तो मैंने भी अपनी आँखें खोलने में ही बेहतरी समझी।
भाई ने मेरी आँखों में देखा और अपने हाथों से मेरी दोनों टाँगो को चौड़ा करके अपना मुँह मेरी चूत से लगा दिया।
‘क्या बात? तेरी चूत पे एक भी बाल नहीं है?’ उसने पूछा।
मैंने कहा- भाई, तुम्हारे लिए ही शेव करके चिकनी की है।
‘अच्छा, बहुत चतुर हो तुम तो?’ कह कर भाई ने मेरी सारी चूत को अपने मुँह में ले लिया और अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर तक घुमा दी।
बहुत ही मज़ा आया।
वो सर्रप सर्रप मेरी चूत चाट रहा था और मैं बेहाल से बदहाल होती जा रही थी। मैंने अपनी टी शर्ट उतार के फेंक दी।
भाई ने भी अपनी टी शर्ट और बरमूडा उतार दिया।
मैंने पहली बार किसी का लंड इतनी पास से देखा, मैं उठ कर बैठ गई, पहले लंड को हाथ में पकड़ के देखा, भाई ने मुझे और नीचे झुकाया और उसका लंड मेरे होठों को छू गया।
मैंने भी उसका लंड मुँह में ले लिया, थोड़ी देर चूसा।
उसके बाद भाई ने मुझे सीधा करके बेड के बीचों बीच लेटा दिया और खुद मेरे ऊपर लेट गया, बहुत भारी था।
मैंने अपनी टाँगें फैला कर उसकी कमर के गिर्द लपेट दी, उसने अपना लंड मेरी चूत पर सेट किया।
‘पहले कभी किया है?’ भाई ने पूछा।
‘नहीं…’ मैंने कहा।
‘कुछ लिया है इसमें?’ उसने फिर पूछा।
‘नहीं, कभी नहीं बस कभी कभी उंगली वगैरह डाल लेती हूँ।’ मैंने उसे बताया।
‘फिर तो तुझे बहुत दर्द होने वाला है।’ उसने कहा।
मैंने भी कह दिया- अब जब सोच ही लिया कि करना है तो दर्द की क्या परवाह!
मेरी दिलेरी देख कर उसने कहा- तो ले फिर!
कह उसने अपना लंड मेरी चूत के अंदर को धकेला।
सच में यह तो बहुत दर्दनाक था, उसका मोटा सुपारा मेरी कुँवारी चूत का छोटा सा मुँह फाड़ के अंदर घुस रहा था।
जितना मैंने सोचा था, यह तो उससे ज़्यादा दर्दनाक था, मेरी तो जान निकल गई मगर मेरे रोकते रोकते उसका सुपाड़ा मेरी चूत में घुस चुका था।
‘भाई बहुत दर्द हो रहा है, बहुत मोटा है तुम्हारा!’ मैंने रोते हुए कहा।
वो बोला- अब इतना दर्द तो सहना ही पड़ेगा, और अभी गया कहाँ है, अभी तो पूरा अंदर डालूँगा, फिर देखना!
‘भाई आराम से!’ मैंने कहा।
उसने थोड़ा सा अपना लंड पीछे को किया, मुझे लगा बाहर निकलेगा, मगर थोड़ा सा पीछे करके उसने फिर से ज़ोर लगाया और थोड़ा और अंदर तक अपना लंड मेरे अंदर घुसेड़ दिया।
मैं तो फूट फूट कर रो पड़ी मगर उसने मेरा भाई होते हुये भी मुझे पर कोई तरस नहीं दिखाया, मैं रोती रही और वो थोड़ा सा पीछे को करता और उसके बाद और अंदर तक डाल देता।
मेरे रोने बिलखने को बिना देखे उसने अपना पूरा लंड मेरी छोटी सी कुँवारी चूत में डाल दिया।
मुझे ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने बड़ा सा कीला ठोक कर मेरी पेशाब करने वाली जगह बंद कर दी हो।
कुछ देर वो अंदर डाले लेटा रहा रहा, फिर बोला- अब आगे शुरू करूँ?
‘अब और कितना डालोगे, पेट तक तो पहुँच गया है।’ मैंने कहा।
‘अरे अब अंदर नहीं डालने का, बस आगे पीछे ही करना है, बड़ा मज़ा आएगा।’ वो बोला।
मैंने सर हिला कर हाँ कह दी।
उसके बाद उसने अपनी कमर आगे पीछे चलानी शुरू की और क्या चुदाई की मेरी।
जितना मुझे दर्द हो रहा था, उतना ही इस बात की संतुष्टि थी कि मैंने भी सेक्स करके देख लिया।
भाई करीब 10 मिनट तक मुझे रौंदता रहा। मैं नीचे लेटी उसको मुझे भोगते हुये देखती रही।
उसका जोश वाकई लाजवाब था, मेरे जिस्म के सारे अंजर पंजर उसने ढीले कर दिये और फिर वो अपने शिखर पर पहुँच कर झड़ गया। उसके लंड से निकालने वाले वीर्य के फव्वारे मैं अपने अंदर गिरते महसूस कर रही थी।
झड़ने के बाद वो मेरी बगल में लेट गया, उसका तना हुआ लंड अब धीरे धीरे ढीला पढ़ने लगा था।
मैं उठ कर बाथरूम में गई।
जब मैंने बाथरूम में जाकर देखा तो मैं तो डर गई, मैंने भाई को पुकारा।
‘क्या हुआ?’ उसने आते ही पूछा।
मैंने उसे अपनी टाँगें दिखाई, जिन पर खून लगा हुआ था।
वो हंस पड़ा- अरी बेवकूफ़, आज तेरी पहली चुदाई थी, तेरा कुंवारापन आज खत्म, तुमने अपनी वर्जिनिटी खो दी है, अब तुम कुँवारी नहीं रही!
वो तो हंस रहा था मगर मुझे अपनी टाँगों पे लगा खून देख कर रोना आ रहा था।
जब मैं धो धा कर अंदर गई, तो देखा बेड की चादर पर भी खून का दाग था।
फिर रात के डेढ़ बजे चादर धोई।
तो ऐसे हुई मेरी पहली चुदाई, इसके बाद मैंने बहुत मज़े ले ले कर अपनी जवानी को भोगा, कैसे आपको आने वाली कहनियों में बताती रहूँगी।
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