नादान कलियों का दीवाना – Antarvasna
प्रेषक : डॉ. एस. पी. सिंह
बात कई साल पुरानी है लेकिन है बिल्कुल सच्ची। उस समय में बीएससी सैकिंड ईयर में हास्टल में रहकर पढ़ रहा था। मेरी उम्र करीब उन्नीस साल की रही होगी। कालेज में कुछ दिनों की छुट्टियां हो जाने के कारण मै गांव जाने का कार्यक्रम बनाकर हॉस्टल से शहर में आ गया। शहर से हॉस्टल करीब दस किमी दूर बाहर था। शहर में मेरे पिताजी की मौसी रहती थी।
वक्त दोपहर का था, मैंने सोचा क्यों कुछ देर पापा की मौसी के यहां रूक कर फ़िर गांव चला जाए। शहर से गांव ६५ किमी दूर था यही सोचकर मैं उनके घर चला गया। उनके घर पर गया तब पापा की मौसी नहाने की तैयारी कर रही थी। वो इतनी साफ सफाई वाली बुजर्ग महिला थीं कि उन्हें नहाने में दो घंटे से कम नहीं लगते थे। घर पहुंचने पर उन्होंने मेरे हाल चाल पूछे। फ़िर बैठने के लिए कहा। मैं इत्मीनान से उनके यहां बैठ गया।
उस समय उनके घर उनके सिवाय उनकी बड़ी बेटी की दूसरे नंबर की लड़की चेतना थी जोकि रिश्ते में मेरी बहन ही लगती थी। उस समय वह १२वीं कक्षा में पढ रही थी। जिसकी उम्र लगभग १८ साल के आसपास रही होगी। उसके उभार संतरे जैसे थे। चूतड़ों पर भी मांस आ जाने से गदराने लगे थे। चेतना का चेहरा और होठ तो इतने रसीले थे कि कोई भी देखे तो किस करने का मन करने लगे, बड़ी-बड़ी आंखें, कुल मिलाकर उसकी हाईट कम थी परंतु थी अल्हड़ जवानी में कदम रखने को बिल्कुल तैयार। पापा की मौसी को हम लोग भी मौसी ही कहते थे।
मेरे पहुंचने पर चेतना से उन्होंने पानी देने को कहा। चेतना उस समय अंदर वाले कमरे में किवाड़ बंद करके छोटी सी चारपाई पर टीवी देख रही थी। उसने उस समय फ़्रॉक पहन रखी थी, जोकि टाईट होने के कारण उसकी संतरा जैसी चूची और ठोस गदराए चूतड़ों को सेक्सी बना रही थी। उसने मुझे भइया कहकर नमस्ते किया, पहले पानी पिलाया फ़िर चाय बनाकर पिलाई। फ़िर जाकर लेटकर टीवी देखने लगी। मैंने जल्दी से चाय खत्म कर दी।
मौसी ने नहाना शुरू कर दिया। वह बूढ़ी होने के कारण नंगी होकर नहाती थी। यही सोचकर उन्होंने मुझसे कहा कि गांव शाम को चला जाना, दोपहरी हो रही है। चेतना के पास आराम कर ले।
तब तक मेरे दिमाग में चेतना के लिए कोई गलत विचार नहीं थे। मैं मौसी के कहने पर दरवाजा खोलकर कमरे के अंदर चला गया। चेतना चारपाई पर टीवी की तरफ करवट लेकर लेटे हुए टीवी देख रही थी। मैं भी पैन्ट-शर्ट पहने जूते उतार कर चेतना की बगल से लेट गया। उस समय टीवी पर श-थीम नाम का कार्यक्रम चल रहा था जिसमें फ़िल्मी समाचार और जानकारियाँ आ रहीं थीं।
मुझे भी कार्यक्रम देखने का मन हुआ तो मैंने चेतना की तरफ करवट ले ली। क्योंकि चारपाई छोटी थी। इस कारण मेरी छाती चेतना की पीठ और मेरा छह इंच का लंड चेतना की मस्त गदराई गांड से पूरी तरह से सट गया। कार्यक्रम में कुछ फ़िल्मी हीरो-हीरोईन के बारे में गरमा गरम जानकारी मय चित्रों के दिखाई जा रही थी। इसे देखकर मेरा चेतना की गाण्ड से सटा लंड पैन्ट के भीतर से खड़ा होना शुरू हो गया। कुछ ही देर में वह पूरी तरह से खड़ा हो गया। किसी लड़की से इस तरह सटने का यह मेरा पहला अनुभव था।
मेरे लंड के दबाब और कार्यक्रम को देखते हुए चेतना की श्वांसे भी गरम होने लगीं। धीरे-धीरे मैंने चेतना के चूतड़ों पर हाथ फ़िराना शुरू कर दिया। जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो मेरा हौंसला बढ़ गया। इसके बाद मैंने उसके संतरे जैसे चूचों को फ़्रॉक के उपर से सहलाना शुरू कर दिया। इसके बाद चेतना आंखें बंद कर मजा लेने लगी। परंतु मुझे यह डर लग रहा था कि कहीं यह रोने न लगे और मेरी शिकायत कर दे। परंतु उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
इसके बाद मैंने उसकी फ़्रॉक को उसके चूतड़ों से उपर तक सरका दिया और उसकी नंगी चूचियों और चड्डी के भीतर हाथ डालकर उसकी बिना बालों की चूत को सहलाना शुरू कर दिया, वह पूरी तरह से मस्ती में आकर आंखें मूंदे पड़ी रही। यह सब करते हुए मैं उससे पूछता- चेतना ! तो वह सिर्फ हां कहकर चुप हो जाती। मैने जमकर उसकी चूचियों को मसला दबाया। उसकी चूचियां बहुत सख्त थी। जैसे भीतर मांस की कोई गांठ हो।
मैं इस दौरान उससे पूछता- चेतना मजा आ रहा है?
तो वह हूं कहकर सिर हिला देती थी। मैने अपनी पैन्ट की चेन खोलकर लंड बाहर निकाल लिया। इसके बाद पीछे से उसकी चूत और गांड पर फ़िराने लगा वह मारे उत्तेजना के गर्म-गर्म श्वांसे छोड़ने लगी। उसकी चड्डी इतनी ढीली थी कि मैं चड्डी को सरकाकर लण्ड को उसकी चूत में डालने का प्रयास करने लगा। साथ ही साथ उसकी चूचियों से भी जमकर खेल रहा था। इसी दौरान कई बार उसको चूमा और उसके रसीले औंठ भी चूसे। पर वह बिना कोई हलचल किए आंखे बंद किए चुपचाप करवट लिए लेटी रही।
मैं बार-बार उसकी चूत में लंड डालने का प्रयास कर रहा था। क्योंकि चेतना का भी इतनी उम्र में यह पहला अनुभव रहा होगा। चूत में लण्ड डालने का प्रयास करते समय मेरे दिमाग में यह बात बार बार आ रही थी कहीं पूरा लण्ड घुस गया तो इसकी चूत न फट जाए और तेज दर्द के यह चिल्लाने लगे। यही कारण था कि मैं चाह कर भी लंड चेतना की चूत में घुसाने के लिए पूरा जोर नहीं लगा पा रहा था। परंतु मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी चूत में उपर से जा रहा था।
मैं जबरदस्त मजे में आ गया चेतना की श्वांसे गहरी हो गई। मैं चूचियों को मसलते हुए उसके मुँह पर अपना मुंह रगड़ते हुए लंड का सुपाड़ा तेजी से उसकी चूत में आगे पीछे करने लगा। कुछ ही देर में मेरा पानी निकलने को हुआ। मैंने सोचा अगर पानी ऐसे ही चूत के ऊपर छोड़ा गया तो चेतना की चड्डी खराब हो जाएगी। इससे कहीं मौसी को मालूम चल गया तो बदनामी के साथ पिटाई भी होगी। इस कारण मैंने अपना पूरा का पूरा पानी चेतना की चूत में से लंड निकाल कर अपने अंडरवीयर के भीतर छोड़ दिया और ऐसे ही चेतना से लिपटे-लिपटे लेटा रहा।
लेकिन कुछ देर बाद मेरा लंड़ फ़िर खड़ा हो गया तो मैने फ़िर से चेतना की चूत में लंड डालने का प्रयास किया तो उसने करवट ले कर ऐसे दिखाने लगी जैसे उसे कुछ मालूम नहीं है और सोकर जगी है। तब तक मौसी की आवाज आ गई और वह उठकर बाहर चली गई। कुछ ही देर बाद मैं भी वहां से गांव चला आया।
मेरे मन में चेतना की असफल चुदाई का दृश्य बार-बार कोंधता रहा। इसके बाद मैं कई बार वहां गया लेकिन हर बार चेतना मुझसे नजरें छुपाकर दूर-दूर रहने लगी। कुछ वर्षों बाद चेतना के घर वालों ने कम उम्र में उसकी शादी भी कर दी। लेकिन दुर्भाग्य से वह दो साल के भीतर एक बेटी को लेकर विधवा हो गई। विधवा होने के बाद भी उसके ससुर ने उसका विवाह करा दिया।
चेतना अब कभी भी मिलती है तो मुझसे नजरें चुराती है। जबकि आज भी मासूमियत भरी जवानी को मैं चोदना चाहता हूं।
दोस्तों अंतरवासना के लिए यह मेरी पहली सच्ची कहानी है। मुझे कालेज लाइफ से ही मासूम नादान लड़कियां बहुत अच्छी लगती हैं। और मैं जब भी मौका लगता है कभी चूतड़ों पर तो कभी चुचियों पर हाथ फ़िरा कर मजा लेने से नहीं चूकता हूं।
दोस्तों मैं छात्र जीवन में मासूम चिकने लड़कों की गाण्ड मारने का भी बहुत शौकीन रहा हूं और मैने दर्जनों लड़कों की जमकर गांड मारी है। और अब अपनी बीबी की भी गांड मारता हूं। ऐसी कई और मेरी सच्ची कथाएँ हैं जिसमें मैंने अपनी चचेरी बहन दीपा, चचरे भाई की मासूम लड़की मोनी, चेतना की मौसी की लड़की पारूल से कैसे मजा लिया है के बारे में विस्तार से बतांऊगा।
यह कहानी आपको कैसी लगी मुझे मेल करें।
#नदन #कलय #क #दवन #Antarvasna