जवानी चार दिनों की-1
लेखक : राज कार्तिक
दोस्तो, मैं राज एक बार फिर से आपके पास अपनी मस्ती की दास्ताँ लेकर आया हूँ। कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है। जैसे भगवान पहले छप्पर फाड़ कर देता था इस बार भी दिया। कहानी की शुरुआत तब हुई जब मैं अपने एक दोस्त की शादी में जालंधर (पँजाब) गया था।
तो दोस्तों हुआ कुछ यूँ था…
22 नवम्बर की रात को मैंने दिल्ली से जालंधर जाने के लिए बस पकड़ी। रात का सफर थोड़ा सुविधाजनक भी था क्यूंकि लम्बा सफर था। दिल्ली बस स्टैंड से निकलने के बाद करीब आधे घंटे में बस करनाल बाईपास पर पहुँची तो कुछ सवारियाँ बस में चढ़ी। मैंने देखा की उन सवारियों में दो महिलायें थी। मेरे बगल में एक सीट खाली थी तो मन में सोचा कि इन में से अगर एक मेरे पास बैठ जाए तो सफर का आनन्द आ जाए।
भगवान ने मेरी मुराद पूरी की और वो करीब पच्चीस छब्बीस साल की गदराए बदन की मालकिन मेरे पास आकर बैठ गई। मैं तो उसको देखता ही रह गया। क्या फुरसत से घड़ा था ऊपर वाले ने उसको। एक एक अंग जैसे सांचे में ढाल कर चिपकाया गया था। सबसे पहले नजर चेहरे पर गई। एकदम गोरा रंग, बड़ी बड़ी गोल गोल आँखें, सुतवाँ नाक और गुलाब की पंखुड़ियों जैसे गुलाबी गुलाबी होंठ जो उसकी खूबसूरती को चार चार चंद लगा रहे थे।
नजर जैसे ही थोड़ा और नीचे गई तो दिल धाड़-धाड़ बजने लगा। दिल की धड़कने तेज हो गई जब मेरी नजर उस हसीना की छाती की शोभा बढ़ाती उसकी चूचियों पर गई। आप तो जानते ही हैं कि मैंने पहले ही बहुत सी चू्तों और चूतवालियों को चखा हुआ है पर यकीनन यह उन सबसे ऊपर के दर्जे की खूबसूरत क़यामत थी।
अभी मैं उसकी खूबसूरती में ही खोया हुआ था कि टिकट कंडेक्टर टिकट काटने आ गया। मेरे अंदर यह लालसा जाग गई कि देखूँ यह क़यामत कब तक मेरे सानिध्य को सुशोभित करेगी। और जब उसने जालंधर के दो टिकेट माँगे तो मैं ऊपर वाले की मेहरबानी पर नतमस्तक हो गया।
सफर शुरू हुआ, बस अपनी गति से चल रही थी पर मेरे दिल की धड़कन उस से कहीं ज्यादा तेज चल रही थी। मैं तो उस हसीना की खूबसूरती में खोया हुआ था, तभी वो मुझ से मुखातिब होकर बोली– आप कहाँ तक जा रहे हैं?
“मैं जालंधर तक जा रहा हूँ !” मैंने जवाब दिया।
फिर तो जैसे बातचीत का सिलसिला चल निकला। बातों ही बातों में उसने बताया कि वो भी जालंधर एक शादी में शामिल होने जा रही है। बातों बातों में कब पानीपत आ गया पता ही नहीं चला। पानीपत से बस चली तो रात के करीब ग्यारह बज चुके थे। तभी उसने मुझसे मेरा मोबाइल माँगा क्यूंकि उसके मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई थी। उसने एक नम्बर मिला कर बात की और बताया कि वो सुबह चार बजे तक पहुँच जाएगी।
उसने मुझे मेरा फोन वापिस किया और बोली– आपका नाम राज है?
“हाँ.. आपको कैसे पता?”
“क्या आप विक्रम की शादी में जा रहे हैं?”
“हाँ.. पर आपको यह सब कैसे पता?”
मैं हैरान था कि तभी मैंने फोन में डायल किया हुआ नम्बर देखा तो उस हसीना ने विक्रम का ही नम्बर डायल किया हुआ था। मुझे सारा माजरा समझ में आ गया था।
“आप विक्रम की क्या लगती हैं?”
“विक्रम मेरे मामा जी का बेटा है” उसने जवाब दिया।
“ओह… तो आप विक्रम के बुआ की बेटी महक हैं?”
“नहीं… महक मेरी छोटी बहन का नाम है.. मैं पायल हूँ… महक वो आगे बैठी है।” उसने अपना परिचय दिया।
फिर काफी देर तक हम बातें करते रहे और करीब साढ़े बारह बजे बस पिपली बस स्टैंड पर रुकी और ड्राईवर चाय पीने चला गया। पायल उठी और मुझे बोली- प्लीज, मेरे साथ चलो, मुझे टॉयलेट जाना है।
बाहर अँधेरा था तो मैं उसके साथ चल दिया। बाथरूम की तरफ गए तो देखा उस पर ताला लटका हुआ था। मैंने उसे कहा कि वो उधर अँधेरे में जाकर फ्रेश हो ले।
पहले तो वो डर के मारे मना करती रही पर फिर वो मुझ से थोड़ी दूरी पर ही अपनी सलवार और पेंटी नीचे करके पेशाब करने लगी। हल्की हल्की लाइट में उसके गोरे गोरे कूल्हे संगमरमर की तरह चमक उठे थे जिन्हें मैं देखता ही रह गया।
पेशाब करने के बाद मैंने पानी की बोतल से उसके हाथ धुलवाए। उसकी गोरी गोरी गांड देख कर मेरे लण्ड में भी तनाव आ गया था और मुझे भी पेशाब का जोर हो गया था सो मैंने उसे बस में जाने को कहा और ठीक उसी जगह पर जाकर लण्ड बाहर निकाल कर पेशाब करने लगा। जब पेशाब करके वापिस मुड़ा तो देखा वो वहीं पर खड़ी थी।
“गई नहीं अभी तक…?”
“नहीं… बस तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी।”
“क्यों…?”
“तुमने भी तो मेरा इंतज़ार किया था…!”
मैंने उसकी आँखों में देखा तो वो हल्के से मुस्कुराई। उसकी मुस्कुराहट देख कर मैं भी मुस्कुराए बिना ना रह सका।
फिर साथ साथ चलते चलते हम दोनों चाय के स्टाल पर गए और तीन चाय लेकर बस में चढ़ गए। बस में भीड़ अभी भी कम नहीं हुई थी। अक्सर देर रात वाली बसों में लम्बी दूरी की सवारियाँ ही होती हैं। करीब बीस मिनट के बाद बस एक बार फिर चल पड़ी।
कुछ दूर चलने के बाद पायल नींद की झपकी लेने लगी और बार बार आगे की तरफ गिर रही थी। मैंने थोड़ा साहस दिखाते हुए उसका सर पकड़ कर अपने कंधे पर रख लिया। उसने एक बार आँख खोल कर मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुरा कर आँखें बंद कर ली। बस अपनी गति से चलती जा रही थी। बाहर का मौसम ठंडा हो गया था पर पायल का स्पर्श मेरे अंदर गर्मी भरता जा रहा था। मैंने एक बार महक की तरफ देखा। वो भी नींद के आगोश में जा चुकी थी। लगभग आधी से ज्यादा सवारियाँ अब तक या तो सो चुकी थी या फिर नींद की झपकियाँ लेते हुए झूल रही थी।
शायद मैं ही अकेला ऐसा था जिसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी।
मैंने पायल के नींद में खोये मासूम से चेहरे को देखा तो मेरा मन हुआ कि मैं अभी एक प्यारा सा चुम्बन दे दूँ, पर जल्दबाजी ठीक नहीं थी। फिर भी मैंने थोड़ा साहस और किया और अपना हाथ पायल के कंधे पर रख कर उसको थोड़ा सा अपनी ओर खींचा तो पायल भी मुझ से लिपटती चली गई।
कुछ देर बाद बस अम्बाला रुकी। पायल ने आँखें खोली और बाहर देखने लगी पर मैंने देखा कि उसने मेरा हाथ नहीं हटाया था। बस दुबारा चली तो उसने फिर से अपना सर मेरे कंधे पर रख लिया और आँखें बंद कर ली पर फिर अचानक उठी और बोली- राज, मुझे ठण्ड लग रही है।
उसके बैग में शाल थी तो उसने वो निकाल कर अपने ऊपर ओढ़ ली और फिर से मेरे कंधे पर सर रख कर बैठ गई।
“राज… तुम्हें नींद नहीं आ रही है…?”
“आप जैसी खूबसूरत और हसीन लड़की अगर बगल में हो तो किस कमबख्त को नींद आएगी।”
उसने एक मुक्का मारा और मेरे कान के पास फुसफुसाते हुए बोली,”शैतान !”
मेरी बात सुन कर उसके होंठों पर जो मुस्कान आई उसने मेरे हौंसले को कई गुणा बढ़ा दिया। मामला लगभग पट चुका था और अब तो मुझे जल्दी से जालंधर पहुँचने का इंतज़ार था। मेरे हाथों का दबाव अब पायल के कंधे पर थोड़ा और ज्यादा बढ़ गया था और कुछ ही देर में मेरा हाथ नीचे के तरफ सरकने लगा जिसे शायद पायल ने भी महसूस कर लिया था।
“लगता है तुम्हे भी ठण्ड लग रही है…!” वो मेरे कान में फुसफुसाई और बिना मुझसे पूछे ही उसने अपनी शाल मुझ पर भी ओढ़ा दी।
मैंने हाथ बढ़ा कर अपना हाथ उसके हाथ पर रखा तो उसने भी मेरा हाथ पकड़ लिया। अब कोई गुंजाइश नहीं बची थी। मैं कुछ देर उसका हाथ सहलाता रहा और फिर मेरा हाथ आगे बढ़ने लगा और उसके गोल गोल मस्त मुलायम ब्रा में कसी हुई चूचियों पर पहुँच गया।
कहानी जारी रहेगी।
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